मॉल में खरीदारी करने का कल्चर देने वाले कारोबारी की आर्थिक हालत बेहद खराब हो चुकी है. ये कारोबारी भारी कर्ज में डूबा हुआ है. हालत ये है कि अब इन्हे मुंबई के अपने सबसे पुराने मॉल को भी बेचना पड़ा है. हम बात कर रहे हैं फ्यूचर ग्रुप (Future Group) के मालिक किशोर बियानी के बारे में, जो महामारी के वक्त से ही भारी संकट में फंस चुके हैं.
कर्ज संकट से जूझ रहे फ्यूचर ग्रुप के प्रमोटर किशोर बियानी (Kishore Biyani) ने अपने मॉल को बेचकर बड़े बकाये का भुगतान किया है. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, फ्यूचर ग्रुप ने 476 करोड़ रुपये का वन टाइम सेटलमेंट किया है. कंपनी ने बंसी मॉल मैनेजमेंट कंपनी के लेंडर्स को 571 करोड़ रुपये का बकाया दिया है. यह रकम लेंडर्स के लिए 83 फीसदी का बकाया वसूली है.
हाथ से गया मुंबई का सबसे पुराना मॉल
रिपोर्ट के मुताबिक K रहेजा कॉर्प ने मॉल को खरीदने की डील सोमवार को पूरी की. के रहेजा कॉर्प ने बैंकों को सीधे भुगतान किया, जिसके बदले में मॉल कंपनी को ट्रांसफर कर दिया गया. यह मॉल मुबंई का सबसे पुराना मॉल है, जिसका मालिकाना हक बियानी परिवार के पास था, लेकिन अब K रहेजा कॉर्प ने एसओबीओ सेंट्रल मॉल को खरीद लिया है. यहीं से बिग बाजार की शुरुआत हुई थी, जिसके बाद देश भर में Big Bazaar के स्टोर्स खोले गए थे. बिग बाजार कम दाम में प्रोडक्ट बेचती थी, जिसके बाद ज्यादातर लोग मॉल से खरीदारी के लिए अट्रैक्ट हुए थे.
कोविड में खराब हुई मॉल की हालत
मुंबई का सोबो मॉल (SOBO Mall) कोविड के दौरान पूरी तरह से बंद हो चुका था. इस मॉल में अभी भी 1.5 लाख वर्ग फुट एरिया लीज पर देने के लिए खाली है, लेकिन कोविड के बाद से ज्यादातर शॉप बंद होने से किराए पर लेने के लिए कोई खरीदार मिल नहीं रहे हैं, जिस कारण इसे चलाने वाली कंपनी बंसी मॉल मैंनेजमेंट पर 571 करोड़ का कर्जा हो गया. ऐसे में इस मॉल को अब बेचना पड़ा है.
कंपनी पर बैंकों का कितना कर्ज?
इस कंपनी पर केनरा बैंक का 131 करोड़ रुपये का बकाया है, जबकि पंजाब नेंशनल बैंक (PNB) का 90 करोड़ रुपये. इसके अलावा, यूनियन बैंक का फ्यूचर ब्रांड पर 350 करोड़ रुपये का बकाया है.
अर्श से फर्श पर कैसे पहुंचे बियानी?
कपड़ा कारोबारी के घर में जन्में बियानी ने साल 1980 के दशक में स्टोन वॉश डेनिम फैब्रिक को बेचने से अपना कारोबारी सफर शुरू किया था. हालांकि इसके बाद ये रिटेल बिजनेस में उतर गए और 1987 में मैन्स वियर प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी की शुरुआत की, जिसका नाम 1991 में बदलकर पैंटालून फैंशन इंडिया लिमिटेड रख दिया गया. साल 1992 में इस कंपनी का आईपीओ आया था, जबकि 1994 में देशभर में स्टोर्स खुलने शुरू हो गए.
बेशुमार दौलत के थे मालिक
फ्यूचर ग्रुप के तहत 2002 में बिग बाजार की शुरुआत हुई, जिसे 2003 तक कई शहरों तक स्टोर्स के जरिए फैला दिया गया. यह एक ऐसी स्टोर थी, जो सस्ते कीमत पर सामान बेचने के लिए जानी जाती थी. इस कारण देखते ही देखते देशभर में इसके स्टोर्स खुलने लगे. फ्यूचर ग्रुप के चेन के बढ़ने के साथ ही बियानी ने भी खूब तरक्की की. आलम ये रहा कि ये भारत के टॉप 100 अमीरों की लिस्ट में शामिल हो गए. इन्हें रिटेल का किंग तक कहा जाने लगा. इनका नेटवर्थ 2017 में 2.8 अरब डॉलर था, जो 2019 में घटकर 1.8 अरब डॉलर हो गया.
दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही कई कंपनियां
हालांकि इनपर संकट 2008 के आर्थिक क्राइसिस के बाद आया. जिससे उबरने के लिए बियानी ने पैंटालून में कुल हिस्सेदारी आदित्य बिरला ग्रुप को बेच दी, लेकिन इसके बाद भी फ्यूचर ग्रुप पर करीब 6 हजार करोड़ रुपये का बकाया था. 2019 तक ये कंपनी चलती रही और अमेजन से एक डील के दौरान कुछ हिस्सेदारी बेचकर कर्ज चुकाया गया, लेकिन कोरोना आने के बाद कंपनी पूरी तरह से कर्ज में डूब गई और आलम ये है कि फ्यूचर ग्रुप की कई कंपनी अब दिवालिया प्रक्रिया से गुजर रही है.