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बीते 2 महीनों में दुनियाभर के शेयर बाजारों (Share Markets) में गिरावट देखने को मिली है, लेकिन इस मामले में भारतीय शेयर बाजार (Indian Stock Market) सबसे आगे रहा. अमेरिकी फेड रिजर्व (US Fed) की ओर से एक बार फिर ब्याज दरों में इजाफा करने के संकेत मिलने के बाद US Market के साथ भारतीय बाजारों में भी हड़कंप मचा रहा. इसके चलते बुधवार को बीएसई का 30 शेयरों वाला Sensex 60,000 के स्तर के नीचे पहुंच गया. निफ्टी अक्टूबर 2022 के बाद सबसे न्यूनतम स्तर तक लुढ़क गया है. इस अवधि में सेंसेक्स और निफ्टी में 1.5 फीसदी की गिरावट आई है, लेकिन बीते चार कारोबारी दिनों में जो गिरावट आई, उससे ब्रिटेन मार्केट कैपिलाइजेशन (MCap) के मामले में भारत से आगे निकल गया है.
ब्रिटेन बना छठा बड़ा इक्विटी मार्केट
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय शेयर बाजारों में आई गिरावट से ब्रिटेन अब भारत को पीछे छोड़कर दुनिया का छठा सबसे बड़ा इक्विटी मार्केट बन गया है. 29 मई 2022 यानी करीब 9 महीनों में पहली बार ब्रिटेन ने इस मामले में भारत से आगे निकलने में कामयाबी हासिल की है. अगर आंकड़ों के हिसाब से समझें तो ब्रिटेन की प्राइमरी लिस्टिंग्स का संयुक्त मार्केट कैप मंगलवार को 3.11 ट्रिलियन डॉलर हो गया था. जो भारत के मुकाबले 5.1 अरब डॉलर ज्यादा है.
कमजोर पाउंड से ब्रिटेन आकर्षक
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले ब्रिटिश करेंसी पाउंड (Pound) के कमजोर होने से भी ब्रिटेन का शेयर बाजार इन्वेस्टर्स को लुभाने में ज्यादा दमदार साबित हो रहा है. इससे ब्रिटेन का स्टॉक मार्केट निवेशकों के लिए ज्यादा कमाई की वजह बन रहा है. स्मॉल और मिड-कैप कंपनियों से निवेशक बेहतर रिटर्न हासिल करने में कामयाब हो रहे हैं. ब्रिटेन का FTSE 350 Index इस साल 5.9 फीसदी बढ़ा है. ब्लू चिप FTSE 100 पिछले हफ्ते पहली बार 8,000 अंक के पार पहुंच गया.
BSE-NSE का फीका प्रदर्शन
ब्रिटेन के शेयर मार्केट की तुलना में Indian Stock Market का फीका प्रदर्शन निवेशकों को घाटा पहुंचा रहा है. बीते 4 कारोबारी सत्रों के दौरान ही निवेशकों के 7 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो चुके हैं. इन 4 दिनों के दौरान सेंसेक्स 1,500 अंक से ज्यादा लुढ़क चुका है. बुधवार को गिरावट के बाद बीएसई लिस्टेड कंपनियों का कुल मार्केट कैप 3.9 लाख करोड़ रुपये घटकर 261.3 लाख करोड़ रुपये रह गया.
अडानी के शेयरों में गिरावट से बढ़ी मुश्किल
इस साल 2023 में अब तक MSCI इंडिया इंडेक्स में 6.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. अडानी ग्रुप (Adani Group) के शेयरों में बीते 24 जनवरी 2023 को अमेरिकी रिसर्च फर्म Hindenburg की रिपोर्ट पब्लिश होने के बाद से भारी गिरावट आई है, इससे ग्रुप का मार्केट कैप 142 अरब डॉलर तक कम हो गया है. इससे विदेशी निवेशकों में चिंता बढ़ गई है और वे भारतीय बाजारों में निवेश को लेकर ज्यादा सतर्क होते जा रहे हैं. हालांकि अभी चिंता के बादल केवल अडानी ग्रुप तक ही सीमित नजर आ रहे हैं. दूसरी कंपनियों में निवेश को लेकर फिलहाल चिंता की कोई वजह नजर नहीं आ रही है.
अप्रैल-दिसंबर में घटा विदेशी निवेश
Indian Share Market के लिए 2022-23 कुल मिलाकर अच्छा साल साबित नहीं हो रहा है. विदेशी निवेशकों को जहां ब्रिटेन का शेयर मार्केट ज्यादा आकर्षक लग रहा है, वहीं भारतीय शेयर बाजार में उनकी दिलचस्पी कम होती जा रही है. इसके चलते अप्रैल-दिसंबर में भारतीय बाजारों में विदेशी निवेश (Foreign Investment) का आंकड़ा 15 फीसदी लुढ़क गया है. सरकारी डेटा के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 के पहले नौ महीनों में शेयर बाजारों में 36.75 अरब डॉलर का FDI आया है. वहीं अगर इक्विटी में आने वाली सभी FDI को देखें तो ये अप्रैल-दिसंबर 2021 के 60.4 अरब डॉलर के मुकाबले अप्रैल-दिसंबर 2022 में घटकर 55 अरब डॉलर रह गया है यानी लगभग 8% की गिरावट दर्ज की गई. वैसे ये FDI 2020-21 में 19 फीसदी बढ़ने के बाद 2021-22 में 1 फीसदी कम हुआ था.
विदेशी निवेशक हुए सतर्क
FPIs की हिस्सेदारी बढ़ने से डेरिवेटिव्स शॉर्ट बुधवार को 6 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए. विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निफ्टी और बैंक निफ्टी में फ्यूचर और ऑप्शंस की होल्डिंग्स 447,593 कॉन्ट्रैक्ट्स पर पहुंच गई. इसके पहले नोटबंदी के बाद 21 नवंबर 2016 को डेरिवेटिव्स शॉर्ट का पिछला उच्चतम स्तर बना था, जब ये आंकड़ा 512,535 कॉन्ट्रैक्ट्स पर था. इसकी वजह अडानी संकट के साथ ही चीन में फिर से खुलती अर्थव्यवस्था को माना जा रहा है.
US Fed के संकेतों से सहमा बाजार!
विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार में निवेश अप्रैल 2022 से लगातार घट रहा है. इसकी वजह विकसित देशों में मंदी (Recession) की आशंका और अमेरिका में बढ़ती ब्याज दरें (US Interest Rates) हैं. अभी तक भी इस ट्रेंड में बदलाव की कोई ठोस वजह विदेशी निवेशकों को नहीं मिल रही है. अमेरिका में महंगाई (US Inflation) के घटने की दर में सुस्ती के चलते आशंका है कि फेड फिर से ब्याज दरें बढ़ा सकता है. इसके साथ ही मंदी की अनिश्चितता के चलते भी स्टॉक मार्केट्स में उतार-चढ़ाव का असर बने रहने की आशंका है.