नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और कोलंबिया यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियाद मजबूत है और कोविड के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की दर से आगे बढ़ सकती है.
बिजनेस टुडे माइंड रश कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ.पनगढ़िया ने ऐसे उपाय भी सुझाए जिन्हें अपनाकर मोदी सरकार आगे इकोनॉमी में तेज सुधार कर सकती है.
उन्होंने कहा कि कोविड टीकाकरण का अभियान तेज करना चाहिए और इकोनॉमी का काफी हद तक सुधार इस टीकाकरण पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि 2020 मार्च में कोविड आ गया. इसकी वजह से जून 2020 की तिमाही में 23.9 फीसदी की गिरावट आई. इकोनॉमी में बुनियादी रूप से कुछ गलत नहीं है, गिरावट की मुख्य वजह कोविड ही है. यूरोप के देशों में भी इकोनॉमी में भारी गिरावट आई है.
जब दूसरी तिमाही में इकोनॉमी खुली तो कुछ सुधार होने लगा. मैन्युफैक्चरिंग पॉजिटिव हो गया है, एग्रीकल्चर तो पहले से बेहतर कर रहा है. बिजली उत्पादन पॉजिटिव हो गया. मैं इकोनॉमी को लेकर आशान्वित हूं. रिजर्व बैंक ने महंगाई के प्रति सही रवैया दिखाया है.
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उन्होंने कहा कि इकोनॉमी में सुधार के लिए सरकार चार चीजें कर सकती है-
1. वैक्सिनेशन अभियान तेज हो
डॉ. अरविंद पनगढ़िया ने कहा कि इकोनॉमी का सुधार काफी हद तक कोविड से रिकवरी पर निर्भर करेगा. इसलिए टीकाकरण पर आक्रामक तरीके से काम करना होगा. भले ही इस पर 8 से 10 अरब अमेरिकी डॉलर (करीब 73,000 करोड़ रुपये) का सरकारी खर्च क्यों न हो. इससे इकोनॉमी में जो सुधार होगा, उससे हर हफ्ते इकोनॉमी में अरबों डॉलर की बचत होगी. टीकों के अप्रूवल प्रॉसेस को भी तेज करना होगा, 50 फीसदी भी इफेक्टिव हो तो उस पर आगे बढ़ना चाहिए.
2. राहत पैकेज दिया जा सकता है
पनगढ़िया ने कहा कि भारत सरकार ने उतने बड़े पैमाने का राहत पैकेज नहीं दिया है, जितना अमेरिका ने. अमेरिका और यूरोपीय देशों ने अपनी जीडीपी के 10 से 12 फीसदी तक खर्च किया है. इसलिए मुझे लगता है कि अभी भारत में जीडीपी के 1-2 फीसदी की राहत दी जा सकती है. अब डिमांड स्टिमुलस दिया जा सकता है. इस पैसे को इकोनॉमी में सुधार के रूप में रिकवर किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले राहत पैकेज पर ज्यादा खर्च न करके समझदारी दिखाई है, क्योंकि उस समय न तो आपूर्ति समुचित थी और न ही मांग, तब कामगार भी काम पर लौटने में सक्षम नहीं थे. इसलिए ज्यादा पैसा खर्च करने का मतलब नहीं था. लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि आपूर्ति को पूरी तरह से बहाल किया जा सकता है. इसलिए इस समय राहत पैकेज देना मांग बढ़ाने में कारगर होगा.
3. सरकारी बैंकों का निजीकरण हो
सरकारी बैंकों का आक्रामक तरीके से निजीकरण का समर्थन करते हुए पनगढ़िया ने कहा कि यह साफ है कि कर्ज के मामले में सरकार के तमाम सपोर्ट के बावजूद बहुत से कारोबार लॉन्ग टर्म में टिकाऊ और मुनाफे योग्य नहीं रह पाएंगे. आगे कंपनियां दिवालियां होंगी तो बैंकों का एनपीए बढ़ता जाएगा और सार्वजनिक बैंकों में इसका जोखिम ज्यादा रहेगा. इसलिए सरकार को काफी पहले ही बैंकों में नए सिरे से पूंजी डालने की कोशिश करनी होगी. कर्ज की समस्या अगर बनी रही तो इकोनॉमिक रिकवरी में इससे ज्यादा अड़चन और कुछ नहीं हो सकता.
4. पीएसयू का निजीकरण तेज हो
पनगढ़िया ने कहा कि सार्वजनिक कंपनियोंं के बड़े पैमाने पर निजीकरण कार्य को आगे बढ़ाना होगा. वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान राजकोषीय घाटा और डेट-जीडीपी रेश्यो बहुत ज्यादा है. सरकार को इसका समाधान करना चाहिए और निजीकरण ही साफतौर पर एक बड़ा कदम हो सकता है.