कोविड-19 के बाद भारत ने G-20 में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था (Economy) का तमगा हासिल कर लिया है. लेकिन प्री-कोविड दौर में दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ने वाली इकॉनमी रहा चीन अब भी रिकवरी की रफ्तार हासिल करने के लिए कड़ी मशक्कत करने के बावजूद इस मोर्चे पर लगातार असफल हो रहा है. अब तो हालत ये हो गई है कि भारत से मुकाबला करने के लिए मालदीव और पाकिस्तान जैसे छोटे देशों में किया गया भारी भरकम निवेश चीन के वर्ल्ड फैक्ट्री के ताज के लिए खतरा बन गया है.
वहीं दिलचस्प बात ये है कि जिस पाकिस्तान में चीन ने अरबों डॉलर का निवेश किया वो आज खुद कंगाल होने की कगार पर खड़ा है. अब मालदीव में 2 अरब डॉलर निवेश करके चीन ने भारत का दखल कम करने का जो कुचक्र रचा है, वो भी भारत की नाराजगी के बाद मालदीव पर भारी पड़ने की आशंका बढ़ गई है.
आर्थिक संकट खत्म करने के लिए चीन ने घटाई ब्याज दर
चीन ने 10 महीने में पहली बार प्रमुख ब्याज दर में कमी की है. दरअसल, पोस्ट कोविड रिकवरी की रफ्तार को बढ़ाने के लिए चीन (China) ने ये कदम उठाया है. लेकिन अगर यहां से भी ग्रोथ रेट में तेजी नहीं आई तो फिर चीन के लिए आने वाले दिन काफी मुश्किल भरे साबित होंगे. अब चीन के पास इंटरेस्ट रेट घटाने की गुंजाइश भी कम हो गई है. चीन का ये आर्थिक संकट काफी हद तक ब्याज दरों की नीतियों की ही देन है. ड्रैगन ने पहले तो सेविंग्स पर काफी कम ब्याज दरें रखी थीं और अपने चहेते कारोबारियों को सस्ते कर्ज बांटे थे. चीन की सरकार की इन नीतियों और सेविंग्स के कम ब्याज की वजह से लोगों ने पैसे को बैंक में जमा करने की जगह घर में बचाना शुरू कर दिया. इससे वहां पर कंज्यूमर स्पेंडिंग घट गई और अपनी क्षमता से कम डिमांड का असर वहां के उत्पादन पर पड़ना शुरू हो गया.
निवेश की ऊंची दर ने बिगाड़ा ड्रैगन का खेल!
चीन में GDP के 40 फीसदी के बराबर रकम निवेश की जा रही है. निवेश के लिहाज से ये बेहद बड़ा आंकड़ा है. खासकर चीन की औसत उम्र में हो रही बढ़ोतरी के मद्देनजर ये खराब फैसला माना जा सकता है. 2000 के दशक की शुरुआत में ये रेट चीन की युवा आबादी के लिहाज से बेहतर था. लेकिन अब बूढ़े होते चीनियों के बीच इतने बड़े निवेश से आउटपुट हासिल करना आसान नहीं है. ऐसा नहीं है कि ये संकट चीन को दिखाई नहीं दे रहा था. लेकिन ये संकट कुछ ऐसा था कि इसने आने में तो देरी की लेकिन जब आया तो इतनी तेजी से फैला कि चीन की सरकार के पास इसे संभालने के लिए वक्त और मौके ही नहीं बचे. कुछ साल तक चीन ने अपने रियल एस्टेट सेक्टर (Real Sector Estate) के बुलबुले के सहारे इस थामने की कोशिश की, लेकिन जब ये फूटा तो फिर केवल रियल एस्टेट ही नहीं देश की इकॉनमी भी गहरे संकट में फंस गई.
चीन से निवेशकों का मोहभंग हुआ
चीन की अर्थव्यवस्था (China Economy) पर आए संकट का असर धीमी होती विकास दर के तौर पर सामने आया. हालांकि इसमें भी कहा जा रहा है कि जिस हिसाब से वहां पर समस्याओं का अंबार लग गया है, उसे देखते हुए चीन के ग्रोथ रेट के आंकड़ों पर भरोसा करना मुश्किल है. चीन में इस समय युवाओं की बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. वहां पर विदेशी निवेश लगातार घट रहा है. चीन की मुद्रा युआन कमज़ोर होती जा रही है और निर्यात में भी गिरावट आ रही है. चीन की आर्थिक समस्याओं का केंद्र इसका रियल एस्टेट सेक्टर है. लोगों ने वहां पर किसी भी दूसरे निवेश की जगह प्रॉपर्टी में पैसा लगाया. लेकिन वहां पर कर्ज मिलने में मुश्किल आने से रियल एस्टेट मार्केट डूबने की कगार पर पहुंच गया. संपत्ति के लिहाज से मालामाल होने वाले लोग घरों के दाम घटने से बर्बाद होने लगे जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान डेवलपर्स को हुआ. कुछ समय पहले तक रियल एस्टेट चीन की कुल संपत्ति का लगभग एक तिहाई होता था. लेकिन इसकी वैल्यूएशन कम होने से चीन को जबरदस्त नुकसान हुआ है.
रोजगार संकट से चीन के युवा निराश
चीन में लाखों ग्रैजुएट्स नौकरी खोजने में जुटे हैं. शहरी क्षेत्रों में 'व्हाइट कॉलर जॉब' की तलाश करना तो एक पहाड़ पर चढ़ने के जैसा बन गया है. देश में 16 साल से 25 साल के बीच के 21 फीसदी से ज्यादा युवा काम तलाश रहे हैं. वहां पर रोजगार का संकट इस कदर गहरा गया है कि बेरोजगारी के आंकड़े तक जारी करने बंद कर दिए गए हैं. चीन की इस आफत की वजह वहां की सरकार की कई नीतियां हैं. एक तरफ जहां विकसित पश्चिमी देशों की अर्थव्यवस्था की बैकबोन लोगों का किया जाने वाला ख़र्च है वहीं चीन इस मॉडल से इत्तेफाक नहीं रखता और इसे फिजूलखर्ची मानता है.
चीन के नीति निर्माताओं की गलती!
वैसे भी कागज़ों पर चीन की इकॉनमी ने जो दम दिखाया है वैसा असल में है भी नहीं. अभी भी ये एक विकासशील देश है जहां पर विकास करने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं जो चीन के नीति निर्माताओं के गलत फैसलों के चलते ठोकर खा रही हैं. चीन की औसत सालाना आय 12,850 डॉलर है और यहां के लगभग 40 प्रतिशत लोग अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में ही निवास करते हैं. चीन ने पिछले कुछ समय से जारी अपने खराब आर्थिक हालात को छिपाने के बाद पिछले साल पहली बार माना था कि वहां पर आर्थिक संकट जारी है. चीन के राष्ट्रपति ने कारोबार जगत के संघर्ष और नौकरी के सकंट की बात कबूली थी. शी जिनपिंग ने 10 साल में पहली बार आर्थिक चुनौतियों का जिक्र किया था.