देश में कोयला संकट की वजह से जहां बिजली की आपूर्ति में अड़चन आने की आशंका जाहिर की जा रही है. वहीं इससे स्टील (Steel) से लेकर ऑयल रिफाइनरी (Oil Refinery) तक के कई उद्योगों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
गौरतलब है कि कोयला भारत में प्रमुख ईंधन है. करीब 70 फीसदी बिजली का उत्पादन कोयले से ही होता है. देश में भीषण कोयला संकट अब भी जारी है. रिकॉर्ड प्रोडक्शन के बाद भी ऐसे हालात बन गए हैं. देश में 135 पावर प्लांट ऐसे है, जहां कोयले से बिजली बनाई जाती है और सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि इनमें से 18 प्लांट में कोयला पूरा खत्म हो चुका है, यानी यहां कोयले का स्टॉक ही नहीं है.
हालांकि, केंद्र सरकार लगातार दावा कर रही है कि देश में कोई संकट नहीं है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश में कोयला संकट की बात को निराधार बताया था.
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए नुकसान
बिजली संकट बढ़ा तो यह देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए भारी पड़ सकता है, जो कि अभी बड़ी मुश्किल से कोरोना संकट से उबर रहा था. आयातित कोयले की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है. इसकी वजह से लोहा, स्टील, एल्युमिनियम जैसे कमोडिटी का उत्पादन लागत काफी बढ़ गया है और इनके उत्पादन पर विपरीत असर पड़ सकता है.
महंगे हो सकते हैं प्रोडक्ट
ICRA के कॉरपोरेट सेक्टर रेटिंग्स में असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट और सेक्टर हेड रिताब्रता घोष कहते हैं कि मौजूदा हालात की वजह से घरेलू स्पांज आयरन उत्पादक बढ़ी हुई लागत का बोझ ग्राहकों पर डाल सकते हैं.
घोष ने बताया, 'जुलाई से अक्टूबर के बीच घरेलू कोयला की कीमतें 15 फीसदी बढ़ गई हैं, जबकि आयातित कोयले की कीमत में करीब 61 फीसदी का जबरदस्त इजाफा हुआ है और यह रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं.' आइए जानते हैं किस सेक्टर पर क्या विपरीत असर हो सकता है:
स्टील
बड़े स्टील उत्पादकों के पास अपने कैप्टिव पावर प्लांट हैं, इसलिए अभी उनको किसी बिजली संकट का सामना नहीं करना पड़ रहा. लेकिन जानकारों का कहना है कि अगर कोयले की मौजूदा तंगी को दूर नहीं किया गया तो अगले दो महीने में उनकी भी हालत खराब हो सकती है. यही नहीं यदि स्मेल्टिंग कार्यों में लगी छोटी मिलों को यदि बिजली आपूर्ति में बाधा आई तो उन्हें उत्पादन में कटौती का सामना करना पड़ सकता है.
ऑयल रिफाइनरीज
भारत में कोयले के बाद प्राकृतिक गैस बिजली उत्पादन के सबसे बड़े स्रोत हैं. कोयले की कमी का असर यह होगा कि गैस की मांग बढ़ेगी यानी रिफाइनरीज के लिए डिमांड काफी बढ़ सकती है. स्टील की तरह ही भारत में बड़े तेल रिफाइनरीज के पास अपना कैप्टिव पावर प्लांट है, इसलिए कोयले की कमी का उन पर असर नहीं होगा. लेकिन उन्हें मांग पूरी करने के लिए LNG का आयात बढ़ाना होगा और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन दिनों LNG काफी महंगा चल रहा है. इस तरह कोयला संकट का असर तेल एवं गैस की कीमतों पर पड़ सकता है.
प्लास्टिक एवं सिंथेटिक रबर उत्पादन के छोटे कारखानों के पास अपनी पावर यूनिट नहीं होती तो बिजली कटौती की स्थिति में वे डीजल जनरेटर का इस्तेमाल करेंगे. इससे उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी.
फ्रोजेन फूड
रेफ्रिजरेट की जरूरत वाला फ्रोजेन फ्रूड इंडस्ट्री बिजली संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकता है. ग्रिड बिजली कटौती की स्थिति में यह इंडस्ट्री डीजल जनरेटर पर भरोसा कर सकती है, लेकिन डीजल की ऊंची लागत की वजह से उनकी लागत काफी बढ़ जाएगी और मुनाफा प्रभावित होगा. बिजली कटौती की स्थति में पॉल्ट्री, मीट और डेयरी इंडस्ट्री को भी इसी तरह के हालात का सामना करना पड़ सकता है.
ईंट भट्ठा
देश में ज्यादातर ईंट भट्ठों में ईंधन के रूप में आयातित कोयले का इस्तेमाल किया जाता है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयला कीमतों में तेजी आने से ईंट भट्ठों को घरेलू कोयले पर निर्भर रहना पड़ सकता है. इसमें देश में कोयला आपूर्ति पर दबाव और बढ़ेगा.
(www.indiatoday.in के इनपुट पर आधारित)