भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक रिश्ते एक बार फिर सुर्खियों में हैं. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अचानक अमेरिका की यात्रा शुरू की है, जिसका मकसद टैरिफ विवाद को सुलझाना और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है. ये दौरा ऐसे नाजुक वक्त में हो रहा है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नए टैरिफ लगाने की घोषणा की है. ये टैरिफ भारत के ऑटो, कृषि और दूसरे क्षेत्रों को प्रभावित कर सकते हैं.
सरकारी सूत्रों के अनुसार गोयल ने अपनी पहले से तय बैठकें रद्द कर इस यात्रा को प्राथमिकता दी, जिससे अमेरिकी अधिकारियों के साथ सीधी बातचीत हो सके. चीन, कनाडा और मेक्सिको पर अमेरिका टैरिफ लगा चुका है. फिलहाल भारत इससे बचा हुआ है. अनुमान लगाया जा रहा है कि दो अप्रैल से भारत पर भी टैरिफ लागू करने की योजना है. इसलिए गोयल की यात्रा बेहद महत्त्वपूर्ण मानी जा रही है. वह ट्रंप प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात करेंगे. अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रेयर और वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लटनिक से भी केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल मुलाकात करेंगे. बातचीत के दौरान भारत बाहरी टैरिफ को कम करने और द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) को आगे बढ़ाने को प्राथमिकता देगा. कहा जा रहा है कि पीयूष गोयल का ये दौरा 8 मार्च तक जारी रहेगा.
पीएम मोदी-ट्रंप की फरवरी में हुई थी मुलाकात
पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा में दोनों देशों ने 2025 तक एक व्यापार समझौते पर सहमति जताई थी जिसका लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 बिलियन डॉलर तक पहुंचाना है. लेकिन अब टैरिफ की नई चुनौती ने इस लक्ष्य पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
टैरिफ से भारत को नुकसान
अमेरिकी टैरिफ से भारत को सालाना 7 अरब डॉलर का नुकसान होने की आशंका है. इससे ऑटोमोबाइल, कृषि और औद्योगिक उत्पादों को सबसे ज्यादा नुकसान होने की आशंका है. ऐसे में अमेरिका की टैरिफ नीति ने भारत में चिंता की लहर पैदा कर दी है. सिटी रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन टैरिफ से भारत को हर साल करीब 7 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है. ऑटो सेक्टर, जो भारत की अर्थव्यवस्था का एक मजबूत स्तंभ है और कृषि उत्पाद, जो लाखों किसानों की आजीविका से जुड़े हैं, सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं. ये इसलिए भी खास है क्योंकि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार तेजी से बढ़ रहा है. जनवरी तक इसमें 8 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है. लेकिन अगर टैरिफ लागू होते हैं तो ये बढ़ोतरी रुक सकती है.
दूसरी तरफ अमेरिका का दावा है कि भारत के हाई टैरिफ उसके उद्योगों को नुकसान पहुंचाते हैं. पीयूष गोयल इस यात्रा में इन दावों का जवाब देने और टैरिफ पर पूरी जानकारी मांगने की तैयारी में हैं. केंद्रीय मंत्री ने यात्रा से पहले कहा कि दोनों देश रियायतें और शुल्क में कटौती की पेशकश कर सकते हैं, ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे की पूरक हैं.
टैरिफ पर भारत का रुख
अमेरिकी औद्योगिक उत्पादों पर भारत में टैरिफ में कटौती की संभावना है. लेकिन कृषि उत्पादों पर टैरिफ घटाने के लिए भारत तैयार नहीं है और किसानों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी. हालांकि ऑटोमोबाइल और केमिकल्स पर राहत की संभावना है. भारत पहले ही कई सामानों पर टैरिफ कम कर चुका है. ऐसे में ये रणनीति व्यापारिक संतुलन बनाए रखेगी और अमेरिका के साथ संबंधों को भी मजबूत करेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की सख्त टैरिफ नीति से केमिकल, मेटल्स, ज्वेलरी और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं. जाहिर है इससे भारत की कूटनीति और समझौता करने की क्षमता की परीक्षा होगी.
इस बीच भारत ने हाई-एंड मोटर साइकिलों पर टैरिफ 50 फीसदी से घटाकर 30 फीसदी कर दिया गया है, बॉर्बन व्हिस्की पर टैरिफ 150 फीसदी से घटाकर 100 फीसदी किया जा चुका है. जबकि बजट में भी कई प्रोडक्ट्स पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाने का ऐलान किया गया था.
व्यापार सौदे से फायदा
व्यापार वार्ता भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकती है. अगर भारत और अमेरिका के बीच समझौता होता है तो टैरिफ विवाद खत्म होने के अलावा ये दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को भी नया आयाम देगा. लेकिन अगर बातचीत विफल होती है तो भारत को वैकल्पिक बाजारों की तरफ रुख करना पड़ सकता है. यूरोप, ASEAN और मध्य पूर्व जैसे क्षेत्र भारत के निर्यात के लिए नए अवसर बन सकते हैं. ट्रंप प्रशासन की चीन के खिलाफ 60% टैरिफ की योजना भी भारत के लिए एक मौका हो सकती है क्योंकि इससे भारत ग्लोबल सप्लाई चेन में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है.
कूटनीति की अग्निपरीक्षा
पीयूष गोयल की ये यात्रा भारत की व्यापारिक कूटनीति का एक शानदार उदाहरण है. इससे दो देशों के बीच व्यापारिक तनाव कम होगा और एक ऐसी राह निकल सकती है जो दोनों पक्षों के हितों का सम्मान करेगी. आने वाले दिनों में इस वार्ता का नतीजा भारतीय अर्थव्यवस्था और वैश्विक व्यापार पर गहरा असर डालेगा. ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत इस चुनौती को अवसर में बदल पाएगा?