फाइनेंसियल ईयर 2022-23 में शेयर बाजार (Share Market) में रिटेल निवेशकों की दिलचस्पी कम हुई. इस दौरान कम डीमैट अकाउंट (Demat Account) खुले हैं. इसके पीछे के कारण मार्केट में जारी उतार-चढ़ाव, मिड कैप और स्मॉल कैप शेयरों में कम रिटर्न, कड़े मार्जिन सिस्टम, अच्छे IPO की कमी और आईटी कंपनियों में हुई छंटनी है. इसके अलावा स्लोडाउन और FII की बिकवाली ने भी सेंटिमेंट को प्रभावित किया है. वित्त वर्ष 2014 के बाद यह पहली बार है, जब डीमैट अकाउंट के नेट ग्रोथ में गिरावट आई है.
कितने डीमैट अकाउंट खुले?
NSDL और CDSL के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में करीब 2.5 करोड़ डीमैट अकाउंट ओपन हुए. यानी हर महीने औसतन करीब 20 लाख खाते खुले. 12 महीनों में डीमैट खातों की संख्या में 27 फीसदी का इजाफा हुआ है. इस बढ़ोतरी के साथ डीमैट खातों की संख्या 8.97 करोड़ से बढ़कर 11.44 करोड़ हो गए. हालांकि, वित्त वर्ष 22 में डीमैट खातों की संख्या 63 फीसदी बढ़ी थी.
मार्केट के जानकारों का कहना है कि आकर्षक प्राइस वाले आईपीओ का नहीं खुलना, डेट इन्वेस्टमेंट पर बेहतर ब्याज दर और विदेशी निवेशकों की बिकवाली की वजह से निवेशकों का रुझान कम हुआ है. वित्त वर्ष 2020-21 और 2021-22 का अधिकतर समय निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित हुआ था, क्योंकि कोविड महामारी के निचले स्तर पर पहुंचे स्टॉक में तेजी आई थी.
महंगाई ने भी किया प्रभावित
रूस-यूक्रेन के बीच जंग ने ग्लोबल सप्लाई चेन को बुरी तरह से प्रभावित किया. इस वजह से पूरी दुनिया में महंगाई तेज बढ़ोतरी हुई. फिर इस पर काबू पाने के लिए केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में इजाफा करना शुरू कर दिया. इसके चलते भी निवेशकों का सेंटिमेंट प्रभावित हुआ.
ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के अनुसार, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) दोनों के इक्विटी कैश सेगमेंट में कंबाइंड एवरेज डेली टर्नओवर वित्त वर्ष 23 में 20 प्रतिशत से अधिक घटकर 57,522 करोड़ रुपये हो गया, जो एक साल पहले 72450 करोड़ रुपये था.
ऐसा रहा मार्केट का हाल
FY23 में सेंसेक्स मामूली 0.7 प्रतिशत बढ़ा, जबकि निफ्टी में 0.6 प्रतिशत की गिरावट आई. बीएसई मिडकैप और स्मॉलकैप में क्रमश: 0.2 फीसदी और 4.46 फीसदी की गिरावट आई. Primedatabase.com के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय कॉरपोरेट्स ने FY23 में मेनबोर्ड इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) के जरिए 52,116 करोड़ रुपये जुटाए. यह राशि पिछले वर्ष में 53 आईपीओ द्वारा जुटाए गए एक लाख करोड़ रुपये के आधे से भी कम है.