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Explainer: क्या था वाजपेयी सरकार में विनिवेश 'घोटाला', जिसमें अब दर्ज होगा मामला?

एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम को जोरशोर से आगे बढ़ाया था, लेकिन इस पर घपलों और घोटालों के तमाम आरोप लगे. विनिवेश के समर्थक यह तर्क देते हैं कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं, देश चलाना है इसलिए सरकार को सार्वजनिक कंपनियों से विनिवेश करके अलग हट जाना चाहिए.

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व मंत्री अरुण शौरी (फाइल फोटो: Getty Images)
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व मंत्री अरुण शौरी (फाइल फोटो: Getty Images)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 1991 में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने शुरू किया था विनिवेश
  • अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने दी इसे तेज रफ्तार
  • वाजपेयी सरकार का विनिवेश कार्यक्रम विवादों में रहा

विनिवेश (Disinvestment) के तहत सरकारी होटल को कौड़ियों के भाव बेचने के एक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी सहित पांच लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया है. एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने विनिवेश कार्यक्रम को जोरशोर से आगे बढ़ाया था, लेकिन इस पर घपलों और घोटालों के तमाम आरोप लगे. आइए जानते हैं कि क्या होता है विनिवेश और वाजपेयी सरकार पर क्यों लगते हैं आरोप? 

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क्या होता है विनिवेश 

विनिवेश असल में किसी कंपनी में निवेश की उलटी प्रकिया होती है. जब किसी कारोबार या इंडस्ट्री में सरकार या कोई कंपनी पैसा लगाती है तो उसे निवेश कहते हैं. लेकिन जब किसी कारोबार से सरकार या कंपनी अपना हिस्सा बेचकर पैसा निकालती है तो उसे विनिवेश कहते हैं.  

विनिवेश प्रक्रिया के जरिए सरकार अपने शेयर किसी और को बेचकर संबंधित कंपनी से बाहर निकल जाती है और इस तरह से हासिल रकम का इस्तेमाल दूसरी योजनाओं में किया जाता है. अब हर साल सरकार विनिवेश के बड़े लक्ष्य रखती है. जैसे इस साल ही सरकार ने विनिवेश से 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा जुटाने का लक्ष्य रखा है. विनिवेश या तो किसी निजी कंपनी के हाथ किया जा सकता है या फिर उनके शेयर पब्लिक में जारी किए जा सकते हैं. 

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क्या हैं तर्क 
विनिवेश के समर्थक यह तर्क देते हैं कि सरकार का काम कारोबार करना नहीं, देश चलाना है इसलिए सरकार को सार्वजनिक कंपनियों से विनिवेश करके उनसे अलग हट जाना चाहिए. बिजनेस में सरकार की भूमिका कम से कम होनी चाहिए. उदाहरण के लिए सरकार घड़ी, स्कूटर और ब्रेड क्यों बनाए? ऐसी कंपनियों पर सरकार पैसा क्यों खर्च करे? इन पैसों को विकास कार्य में लगाया जाए. 

निजीकरण और विनिवेश में अंतर होता है

यह बात समझनी होगी कि किसी कंपनी के निजीकरण और विनिवेश में अंतर होता है. निजीकरण में सरकार अपनी बहुल यानी 51 फीसदी हिस्सेदारी निजी क्षेत्र को बेच देती है और उस पर उसका प्रभुत्व खत्म हो जाता है. लेकिन विनिवेश में सरकार अपनी कुछ ही हिस्सेदारी बेचती है और कंपनी पर उसका प्रभुत्व बना रहता है. 

वाजपेयी सरकार ने दी रफ्तार 

सार्वजनिक कंपनियों के विनिवेश की प्रक्रिया तो मनमोहन सिंह के नब्बे के दशक में वित्त मंत्री रहने के दौरान ही शुरू हो गई थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने इसे जबरदस्त रफ्तार दी. वाजपेयी ने 1999 में अपनी सरकार में विनिवेश मंत्रालय के तौर पर एक नया मंत्रालय ही बना दिया जिसके मंत्री अरुण शौरी बनाए गए थे. इसका मंत्रालय का काम निजीकरण के प्रस्तावों को फटाफट मंजूरी देना था. इसलिए इसके साथ ही विनिवेश (डिसइन्वेस्टमेंट) के लिए एक कैबिनेट कमिटी का भी गठन किया गया ताकि इन प्रस्तावों को जल्द मंजूरी दी जा सके. 

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शौरी के मंत्रालय ने वाजपेयी के नेतृत्व में भारत एल्यूमिनियम कंपनी (बाल्को), हिंदुस्तान जिंक, इंडियन पेट्रोकेमिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड और विदेश संचार निगम लिमिटेड जैसी सरकारी कंपनियों को बेचने की प्रक्रिया शुरू की थी.अटल सरकार ने मॉडर्न फूड इंडस्ट्रीज को हिंदुस्तान यूनिलीवर को बेचने का फैसला लिया. आईटी फर्म सीएमसी लिमिटेड को बेच दिया गया. कई सरकारी होटल बेच दिये गये. 

क्या है विवाद 

भारत में विनिवेश प्रक्रिया शुरू से ही विवादों में रही है. असल में इसमें घोटालों की काफी गुंजाइश रहती है. वाजपेयी सरकार के दौरान किये गये कई विनिवेश में भी घपलों और घोटालों के जबरदस्त आरोप लगे, जिनकी अभी तक जांच चल रही है. वाजपेयी सरकार को इसके लिए तीखे विरोध का भी सामना करना पड़ा. बाल्को के निजीकरण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वाजपेयी जी के फैसले को बरकरार रखा.

होटलों की बिक्री पर सबसे ज्यादा विवाद 

सबसे ज्यादा विवाद रहा कई फाइव स्टार होटल कौड़ियों के भाव बेचने को लेकर. वाजपेयी सरकार ने घाटे में चल रहे कई सरकारी होटल को निजी क्षेत्र को दे दिया. इनमें नई दिल्ली में स्थित रंजीत होटल, कुतब होटल और होटल कनिष्क, कोवलम अशोक बीच रिजॉर्ट, कोलकाता का होटल एयरपोर्ट अशोक तथा उदयपुर का लक्ष्मी विलास होटल शामिल था. नई दिल्ली का रंजीत होटल बहुत कम दाम में अनिल अंबानी समूह को बेच दिया गया. 

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ऐसे ही एक मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी सहित पांच लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया है. वर्ष 2002 में जब केंद्रीय विनिवेश मंत्री के रूप में अरुण शौरी कार्यरत थे तब उनके मंत्रालय ने उदयपुर के लक्ष्मी विलास होटल को महज साढ़े सात करोड़ रुपए में ललित ग्रुप को दे दिया था. यूपीए सरकार ने अपने कार्यकाल के दौरान सीबीआई से इस मामले की जांच शुरू करवाई थी. सर्वे में सामने आया कि इस होटल की कीमत 252 करोड़ रुपए से भी ज्यादा है. 

मुंबई के हवाई अड्‌डे के पास स्थित सेंटोर होटल को साल 2002 में वाजपेयी सरकार ने बेच दिया. इस होटल को 115 करोड़ रुपए में बत्रा हॉस्पिटैलिटी ने खरीदा था. उसने चार महीने के भीतर ही इसे सहारा समूह को 147 करोड़ रुपए में बेच दिया. यानी इतने कम समय में उसने 32 करोड़ रुपये का मुनाफा कमा लिया. 

 

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