
बुखार के इलाज में काम आने वाली दवा डोलो (Dolo) कोरोना महामारी (Covid-19) की शुरुआत से लगातार चर्चा में है. कोरोना महामारी के दौरान डोलो की बिक्री में बंपर तेजी देखने को मिली थी. हर किसी को डॉक्टर डोलो-650 (Dolo-650) दवा लिख रहे थे और लोग बड़े पैमाने पर इसका सेवन कर रहे थे. हाल यहां तक हो गया था कि उस दौरान डोलो-650 को भारतीयों का पसंदीदा स्नैक्स बताया जाने लग गया था. अब एक बार फिर से यह दवा और इसे बनाने वाली कंपनी माइक्रो लैब्स लिमिटेड चर्चा में है. दरअसल अब इस बात की कलई खुल रही है कि क्यों डॉक्टर हर किसी को यह दवा लिख रहे थे.
इस कारण डॉक्टर लिख रहे थे डोलो-650
सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के दौरान मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव्स ने गुरुवार को बताया कि यह दवा बनाने वाली कंपनी ने मरीजों को डोलो-650 दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के उपहार (Freebies) दिए थे. फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (Federation of Medical and Sales Representatives Association of India) की पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट संजय पारिख ने सुनवाई के दौरान सेंट्रल बोर्ड ऑफ डाइरेक्ट टैक्सेज (Central Board of Direct Taxes) की एक रिपोर्ट का हवाला दिया. रिपोर्ट के अनुसार, 'डोलो कंपनी ने डोलो-650 दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा के उपहार दिए. डॉक्टर्स मरीजों को गलत डोज प्रेस्क्राइब कर रहे थे.'
मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट हुआ गंभीर
मामले की सुनवाई कर रही बेंच को हेड कर रहे जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) ने इस दौरान अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने बताया कि जब उन्हें कोविड-19 हुआ था, तो उन्हें भी डॉक्टर ने डोलो-650 लेने को कहा था. बेंच में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस एएस बोपन्ना (Justice AS Bopanna) भी शामिल थे. पीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा, 'यह एक गंभीर मुद्दा है. इसे आम मुकदमेबाजी की तरह नहीं देखा जा सकता है. हम इस मामले पर जरूर सुनवाई करेंगे.' अब इस मामले पर अगली सुनवाई 10 दिनों बाद होने वाली है.
डोलो कंपनी के खिलाफ जनहित याचिका
फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने डोलो कंपनी की इस हरकत को लेकर जनहित याचिका (PIL) दायर की है. सुप्रीम कोर्ट में उसी याचिका पर सुनवाई हो रही थी. याचिका में ड्रग फॉर्मूलेशन (Drug Formulation) और दवाओं की कीमतों पर कंट्रोल को लेकर सवाल उठाए गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस जनहित याचिका पर एक सप्ताह के भीतर अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है. याचिका में ये भी मांग की गई है कि कोई खास दवा लिखने के लिए डॉक्टरों को मिलने वाले उपहार को लेकर कंपनियों को जिम्मेदार ठहराया जाए.
कई अन्य दवाओं को लेकर भी चल रही गड़बड़ी
एडवोकेट पारिख ने इस मामले को लेकर आगे बताया कि डोलो महज एक उदाहरण है, क्योंकि यह सबसे ताजा है. उन्होंने कहा, '500 एमजी पैरासिटामोल के लिए ड्रग प्राइसिंग अथॉरिटी कीमतें तय करती है. लेकिन जैसे ही डोज को बढ़ाकर 650 एमजी किया जाता है, यह नियंत्रित कीमत के दायरे से बाहर हो जाता है. इसी कारण 650 एमजी की दवाओं को इतना बढ़ावा दिया जाता है. बाजार में ऐसे कई एंटीबायोटिक्स हैं, जिनकी जरूरत नहीं होने के बाद डॉक्टर उसे खाने की सलाह मरीजों को दे देते हैं. इसे नियंत्रित करने के लिए कानूनी फ्रेमवर्क की सख्त जरूरत है.'
इनकम टैक्स की छापेमारी से खुला मामला
डोलो बनाने वाली कंपनी माइक्रो लैब्स लिमिटेड कई तरह की दवाएं बनाती है और उन्हें बाजार में बेचती है. कंपनी की बुखार की दवा Dolo-650 सबसे ज्यादा लोकप्रिय है. खासकर कोविड-19 के दौरान तो हर कोई इस दवा के नाम से परिचित हो गया और उस दौरान जो भी बुखार की चपेट में आया, उसने यह दवा जरूर ली. कंपनी का कारोबार 50 से ज्यादा देशों में फैला है. कंपनी पहली बार उस समय विवादों के घेरे में आई, जब आयकर विभाग ने 6 जुलाई को 9 राज्यों में स्थित उसके 36 ठिकानों पर छापा मारा.
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने छापेमारी के बाद बताया था कि छापे के दौरान कई दस्तावेज और डिजिटल डाटा प्राप्त हुआ, जिसे जब्त कर लिया गया है. जब्त किए गए सबूतों से पता चला था कि कंपनी ने 'सेल्स और प्रमोशन' के नाम पर डॉक्टरों को कई मुफ्त गिफ्ट बांटे और उन्हें अपने खातों में Unallowable Expense के तौर पर दिखाया. डॉक्टरों को फ्री-गिफ्ट दिए गए, उनमें उनके ट्रैवल एक्सपेंस भी शामिल हैं. डोलो बनाने वाली कंपनी ने इसपर 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए.
कंपनी ने की करोड़ों के इनकम टैक्स की चोरी
आयकर विभाग की छापेमारी में कई अन्य चौंकाने वाली जानकारियां भी सामने आईं. आयकर विभाग की जांच से पता चला कि माइक्रो लैब्स ने करीब 300 करोड़ रुपये की टैक्स चोरी की. कंपनी ने इसके साथ ही आयकर कानून की धारा-194C का उल्लंघन किया. आयकर विभाग को छापे के दौरान 1.20 करोड़ रुपये की अघोषित नकदी और 1.40 करोड़ रुपये की गहने भी मिले थे.
कोरोना काल में डोलो ने बनाया बिक्री का रिकॉर्ड
डोलो-650 की कीमत बहुत ज्यादा नहीं है. अभी इसके 15 टैबलेट वाले एक पत्ते की कीमत करीब 31 रुपये है. इसके बाद भी डोलो-650 ने माइक्रो लैब्स को रिकॉर्डतोड़ कमाई करा दी थी. दरअसल कोरोना महामारी के दौरान इस दवा की बिक्री में इस कदर उछाल आया था कि यह बाजार से गायब हो गई थी. साल 2020 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत होने के बाद डोलो-650 के 350 करोड़ टैबलेट बिक गए थे. कंपनी ने कोरोना काल में सिर्फ डोलो-650 की ही 567 करोड़ रुपये की बिक्री कर दी थी.
डोलो-650 ने दिलाई माइक्रो लैब्स लिमिटेड को सक्सेस
आपको बता दें कि जीसी सुराना ने साल 1973 में दवा कंपनी माइक्रो लैब्स लिमिटेड की शुरुआत की थी. इस कंपनी में अभी करीब 9,200 कर्मचारी काम करते हैं. कंपनी का सालाना टर्नओवर पिछले साल 2,700 करोड़ रुपये रहा था, जिसमें 920 करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट भी शामिल है. कंपनी करीब 50 देशों को अपनी दवाएं एक्सपोर्ट करती है. माइक्रो लैब्स लिमिटेड की सफलता में सबसे ज्यादा योगदान डोलो-650 का ही है. दरअसल पैरासिटामोल बनाने वाली अन्य कंपनियां 500 एमजी वाले फॉर्मूलेशन ही बनाती हैं. डोलो बुखार की अकेली दवा है, जो 650 एमजी में भी आती है. बाजार में उपलब्ध पैरासिटामोल दवा के अन्य लोक्रपिय ब्रांडों में क्रोसिन, पैरासिप, कालपोल, सुमो आदि की गिनती होती है. हालांकि कोरोना काल में डोलो-650 ने सभी अन्य ब्रांडों को मीलों पीछे छोड़ दिया था.