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Explainer: चीन सहित 15 देशों ने किया दुनिया का सबसे बड़ा समझौता, जानें-भारत क्यों रहा इससे अलग 

आसियान (ASEAN) के दस देशों और चीन, जापान सहित कुल 15 ​देशों ने एक बड़ा क्षेत्रीय आ​र्थिक समझौता (RCEP) किया है, लेकिन भारत इस समझौते से बाहर रहा. पीएम मोदी ने पिछले साल ही देशहित में इस डील से बाहर रहने का निर्णय लिया था.

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चीन सहित 15 देशों ने किया RCEP समझौता (फोटो: AP)
चीन सहित 15 देशों ने किया RCEP समझौता (फोटो: AP)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • चीन सहित 15 देशों ने किया RCEP समझौता
  • ये दुनिया की सबसे बड़ी डील बतायी जा रही है
  • देशहित को देखते हुए भारत इससे बाहर है

आसियान (ASEAN) के दस देशों और चीन, जापान सहित कुल 15 ​देशों ने एक बड़ा क्षेत्रीय आ​र्थिक समझौता (RCEP) किया है. भारत को भी आमंत्रण था, लेकिन भारत इस समझौते से बाहर रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल ही देशहित में इस डील से बाहर रहने का निर्णय लिया था. आइए जानते हैं कि क्या है यह समझौता और भारत क्यों इससे बाहर है? 

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क्या है आसियान 

आसियान (ASEAN) का पूर्ण रूप है एसोसिएशन ऑफ साउथ ईस्ट एशियन नेशन्स. यह दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का एक संगठन है. आसियान के 10 सदस्य देशों में ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम शामिल हैं. 

भारत है डायलॉग पार्टनर 

भारत सहित दस देश आसियान के डायलॉग पार्टनर हैं. भारत के अलावा इनमें ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, न्यूजीलैंड, रूस, अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं. 

क्या है आरसीईपी

रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) डील एक ट्रेड अग्रीमेंट है जो कि सदस्य देशों को एक दूसरे के साथ व्यापार में कई सहूलियत देगा. आरसीईपी की नींव डालने वाले 16 देशों में भारत भी शामिल था. 

आरसीईपी समझौता के प्रस्ताव में कहा गया था कि 10 आसियान देशों (ब्रुनेई, इंडोनेशिया, कंबोडिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम) और 6 अन्य देशों ऑस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता होगा और सभी 16 देश एक-दूसरे को व्यापार में टैक्स में कटौती समेत तमाम आर्थिक छूट देंगे. लेकिन भारत इससे बाहर रहा. 

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पिछले साल नवंबर में भारत के अलग होने की वजह से इस डील पर दस्तखत नहीं हो पायी थी, लेकिन इस साल भारत को छोड़कर बाकी 15 देशों ने इस डील पर दस्तखत कर लिया है. अगर भारत आरसीईपी डील में भागीदार बनता तो मेंबर देशों में तीसरा सबसे बड़ा देश होता. हालांकि आसियान के अधिकारियों ने कहा कि समझौते में भारत के फिर से शामिल हो सकने के लिए द्वार खुले रखे गए हैं. 

इस समझौते का महत्व इस बात से ही समझा जा सकता है कि इसमें शामिल होने वाले देशों में दुनिया की करीब 30 फीसदी जनसंख्या और वर्ल्ड जीडीपी का करीब 30 फीसदी हिस्सा है. इन देशों में करीब 2.2 अरब उपभोक्ता रहते हैं. इस साल आसियान सम्मेलन की मेजबानी करने वाले वियतनाम के प्रधानमंत्री  न्गुयेन शुआन फुक ने कहा कि यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता है. 

देशहित में पीएम मोदी ने लिया निर्णय 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' पर जोर दिया है, इसे देखते हुए भारत लगातार आसियान से अपने रिश्ते बेहतर करने की कोशिश करता रहा है. लेकिन पिछले साल आसियान द्वारा प्रस्तावित आरसीईपी व्यापार समझौते में भारत शामिल नहीं हुआ था. भारत का कहना था कि यह उसके राष्ट्रीय हितों के अनुकूल नहीं है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2015 में यह निर्णय लिया कि भारत इस समझौते में शामिल नहीं होगा, तो दुनिया चौंक गयी थी. लेकिन प्रधानमंत्री ने कहा कि देशहित में ऐसा करना जरूरी है. 

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RCEP भारत को क्यों स्वीकार नहीं 

असल में आरसीईपी में शामिल होने के लिए भारत को आसियान देशों, जापान, दक्षिण कोरिया से आने वाली 90 फीसदी वस्तुओं पर से टैरिफ हटाना था. इसके अलावा, चीन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से 74 फीसदी सामान टैरिफ फ्री करना था. इसलिए भारत को डर था कि उसका बाजार चीन के सस्ते माल से पट जाएगा. इसी तरह न्यूजीलैंड के डेयरी प्रोडक्ट के भारतीय बाजार में पट जाने से किसानों के हितों को काफी नुकसान पहुंचने की आशंका थी. 

डेयरी उद्योग बर्बाद होने की चिंता

आरसीईपी के तहत मुक्त व्यापार करार में डेयरी उत्पाद को शामिल करने का प्रस्ताव है, जिसका किसान विरोध कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि अगर आरसीईपी लागू हो गया और बाहर से दूध का आयात किया गया तो भारत के दूध के किसान पूरी तरह से तबाह हो जाएंगे.

पिछले साल देश के किसान संगठनों ने रीजनल कंप्रेहेंसिव इकनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) में भारत के शामिल होने का विरोध किया था. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति की चिंता है कि अगर भारत आरसीईपी की संधि में शामिल होता है तो देश के कृषि क्षेत्र पर बहुत बुरा असर पड़ेगा. इतना ही नहीं भारत का डेयरी उद्योग पूरी तरह से बर्बाद हो जाएगा.

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किसानों का कहना है कि ये संधि होती है तो देश के एक तिहाई बाजार पर न्यूजीलैंड, अमेरिका और यूरोपीय देशों का कब्जा हो जाएगा और भारत के किसानों को इनके उत्पाद का जो मूल्य मिल रहा है, उसमें गिरावट आ जाएगी. इसी मद्देनजर देश में करीब 250 किसान संगठन इसका विरोध कर रहे थे. 

किसान संगठनों का कहना है कि भारत में ज्यादातर किसानों के पास 2 से 4 गाय हैं, जिनके दूध से उनका परिवार चलता है. वहीं, दूसरी ओर न्यूजीलैंड के किसानों के पास 1000-1000 की संख्या में गाय हैं. आरसीईपी समझौता होने से 90 फीसदी वस्तुओं पर आयात शुल्क जीरो हो जाएगा. इससे भारतीय उद्योगों और किसानों की कमर पूरी तरह टूट जाएगी.

अब क्या होगा 

अब जब भारत इस समझौते से बाहर है सबसे बड़ी चिंता यह है कि भारत अपने 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को कैसे आगे बढ़ाये, क्योंकि इस समझौते से आसियान देशों के रिश्ते चीन, जापान जैसे दूसरे देशों से मजबूत होंगे. 

 

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