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देश को लूटने वाले कॉरपोरेट को दिये लाखों करोड़ रुपये, तो किसानों की मदद क्यों नहीं: मोल्ला 

अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव हनन मोल्‍ला ने कहा कि किसान काफी गरीब तबके से आते हैं, इसलिए उनकी किसी को चिंता नहीं है. केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ देश के कई संगठनों से जुड़े किसान आंदोलन कर रहे हैं, जिनमें वामपंथी संगठन भी शामिल हैं. 

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वामपंथी संगठन भी हैं किसानों के साथ
वामपंथी संगठन भी हैं किसानों के साथ
स्टोरी हाइलाइट्स
  • किसान आंदोलन में कई वामपंथी संगठन शामिल
  • इनमें अखिल भारतीय किसान सभा भी है
  • AIKS महासचिव मोल्ला ने उठाये सरकार पर सवाल

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता और अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS) के महासचिव हनन मोल्‍ला कहा कि हमारा देश कॉरपोरेट को अगर 6-7 लाख करोड़ रुपये का लोन दे सकता है, जो एनपीए में बदल जाता है, तो किसानों की मदद क्यों नहीं की जा सकती?

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गौरतलब है कि केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ देश के कई संगठनों से जुड़े किसान आंदोलन कर रहे हैं, जिनमें वामपंथी संगठन भी शामिल हैं. 

देश को लूट रहे कुछ लोग 

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मोल्ला ने कहा, 'हम ऐसे लोगों को 6-7 लाख करोड़ रुपये दे रहे हैं जो इसे नॉन परफॉर्मिंग एसेट में बदलकर देश को लूटते हैं और बैंकों एवं सरकार के साथ धोखाधड़ी करते हैं. तो सरकारी खजाना किसानों को उनका अस्तित्व बचाने के लिए क्यों नहीं दिया जा सकता?' 

खासकर पंजाब, हरियाणा, यूपी के किसान दिल्ली से राज्यों को जोड़ने वाली सीमाओं पर धरना दे रहे हैं. किसानों का कहना है कि वे तीनों नए कृषि क़ानूनों को वापस लेने की अपनी मांग से पीछे नहीं हटेंगे.

 इसे देखें: आजतक LIVE TV 

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केंद्र सरकार से किसान नेताओं की कई दौर की वार्ता का कोई हल नहीं निकला है और अब किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है. किसान आंदोलन में मोल्ला का संगठन अखिल भारतीय किसान सभा भी शामिल है. 

किसानों की चिंता किसी को नहीं! 

मोल्ला ने कहा, 'दुर्भाग्य से किसान काफी गरीब तबके से आते हैं, इसलिए उनकी किसी को चिंता नहीं है. पहले मध्यम वर्ग गरीबों के समर्थन में मुखर रहता था, लेकिन नव-उदारवादी नीतियों के प्रभाव में वे अपने लिए बेहत जीवन चाह रहे हैं और आम आदमी के जीवन को बर्बाद कर रहे हैं.' 

मोल्ला ने इस बात पर जोर दिया कि किसानों का मुद्दा वाम दलों की राजनीतिक गतिविधियों के केंद्र में है. उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बंगाल और केरल के वाम संगठन भी अपने स्तर पर किसान आंदोलन में शामिल हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि कृषि लागत कई गुना बढ़ गई है लेकिन किसानों को उनकी फसल की उचित कीमत नहीं मिल रही है. 

 

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