मोदी सरकार भारतीय खाद्य निगम (FCI) के गोदामों में रखे चावल का कुछ हिस्सा निजी क्षेत्र को सौंपने की तैयारी कर रही है. देश में एथेनॉल के उत्पादन को बढ़ाने के लिहाज से यह कदम उठाया जा रहा है. लेकिन जानकार इसके दुष्परिणामों को लेकर काफी सचेत कर रहे हैं.
सरकार की योजना के मुताबिक एफसीआई के गोदामों में रखे अनाज को सब्सिडाइज रेट पर निजी डिस्टिलरीज को दिया जाएगा, ताकि वे इससे एथेनॉल का उत्पादन कर सकें. यह चावल डिस्टिलरीज को 2,000 रुपये प्रति क्विंटल की किफायती दर पर दिया जाएगा, जबकि अगर कोई राज्य सरकार भी पीडीएस के अलावा अतिरिक्त चावल खरीदना चाहती है तो उसे कम से कम 2200 रुपये क्विंटल का रेट देना पड़ता है.
क्या है सरकार की योजना
सरकार ने 78,000 टन चावल निजी इंडस्ट्री को देने का फैसला किया है. यह चावल किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदकर गरीबों में बांटने के लिए रखा गया था.
खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने पिछले महीने बताया था कि भारत सरकार ने एथेनॉल उत्पादन के लिए 78,000 टन चावल आवंटित करने का फैसला किया है. यह चावल 20 रुपये किलो की सब्सिडी वाली दर पर दिया जाएगा. डिस्टिलरीज इसका इस्तेमाल एथेनॉल उत्पादन के लिए करेंगी, जिसकी पेट्रोल में ब्लेंडिंग की जाएगी.
सरकार पेट्रोलियम आयात के बोझ को कम करने के लिए पेट्रोल में एथेनॉल मिलाने के चलन को बढ़ावा दे रही है. सरकार चीनी उत्पादकों और डिस्टिलरीज को सस्ते दर पर लोन भी मुहैया कर रही है. यही नहीं, उन्हें कई पर्यावरण मानकों से भी छूट दी गई है.
इस साल 30 अप्रैल को दो अलग-अलग आदेश में खाद्य एव सार्वजनिक वितरण विभाग ने यह व्यवस्था की है. सरकार ने जिन 418 इंडस्ट्रियल यूनिट को सस्ते चावल देने का फैसला किया है, उनमें से 70 से ज्यादा उत्तर प्रदेश में हैं.
असल में एफसीआई के गोदाम अनाज से भरे हुए हैं. सरकार ने कोरोना काल में गरीब कल्याण योजना के तहत काफी राशन मुफ्त बांटे हैं और इस साल भी राशन दिया जाएगा. सरकार को लगता होगा कि राशन पर्याप्त होने की वजह से इसे इंडस्ट्री को दे देना सही है. इसके संग्रहण के लिए सरकार को काफी रकम खर्च करनी पड़ती है और कई जगह अनाज सड़ जाने की भी घटनाएं पिछले वर्षों में देखी गईं. हालांकि सच्चाई यह भी है कि देश में प्रति व्यक्ति अनाज की उपलब्धता पिछले कई दशकों से ठहरी हुई है.
मोदी सरकार ने साल 2025 तक देश में पेट्रोल के 20 फीसदी हिस्से तक एथेनॉल ब्लेंडिंग करने का लक्ष्य रखा है. अभी यह करीब 8.5 फीसदी है. गौरतलब है कि 2020 -21 में भारत सरकार का तेल आयात बिल करीब 55 अरब डॉलर (करीब 4.09 लाख करोड़ रुपये) का था. अगर 20 फीसदी का एथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्य हासिल हुआ तो इससे सरकार को हर साल 30,000 करोड़ रुपये की आयात बिल में बचत होगी.
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (CCEA) ने दिसंबर 2020 में इस प्रस्ताव को मंजूरी दी थी कि चावल, गेहूं, जौ, मक्का, गन्ना आदि से एथेनॉल उत्पादन के लिए वित्तीय मदद दी जाए. खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने इसके बाद डिस्टिलरीज के लिए इसके बाद इंट्रेस्ट सबवेंशन स्कीम का ऐलान किया.
चावल की जगह चीनी से बनाना सही है?
जानकार कहते हैं कि चावल की जगह सरप्लस शुगर यानी चीनी से एथेनॉल बनाना ज्यादा उपयुक्त विकल्प है. सरकार ने अगले शुगर सीजन के लिए 35 लाख टन चीनी को एथेनॉल उत्पादन में लगाने का फैसला किया है. सरकार 2025 तक इसे बढ़ाकर 60 लाख टन करना चाहती है. भारत में हर साल 50 से 60 लाख अतिरिक्त यानी जरूरत से ज्यादा चीनी का उत्पादन किया जा रहा है.
क्यों उठ रहे सवाल
जानकार कहते हैं कि गरीबों के लिए आरक्षित रखे गए अनाज को निजी क्षेत्र को देना इस वजह से ठीक नहीं है, क्योंकि भारत में गरीबी का स्तर अभी भी काफी ज्यादा है. अभी सरकार को इस तरह के खाद्य सुरक्षा उपाय में किसी तरह की कमी करना वाजिब नहीं है.
कृषि एक्सपर्ट देवेंद्र शर्मा ने सरकार के इस कदम को गैरजरूरी बताया. उन्होंने कहा कि हमें तय करना होगा कि हमारी प्राथमिकता देश को भूख से मुक्त करने की है या एथेनॉल ब्लेडिंग जैसे चीजों की. उन्होंने कहा, 'यह शर्मनाक है कि अब भी दुनिया के एक-चौथाई भूखे लोग भारत में रहते हैं. यह तब है जब कि हमारे सरकारी गोदाम अनाज से भरे पड़े हैं. आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है?'
एफसीआई के गोदामों में अनाज की पर्याप्त उपलब्धता पर उन्होंने कहा, 'अगर ऐसा न होता तो कोरोना काल में हमारी सरकार गरीबों को राहत कैसे दे पाती. तब तो हमें दो तरह की महामारी से निपटना पड़ता. एक कोरोना से और दूसरी भुखमरी से. इस महामारी ने ऐसे भंडारों की महत्ता को और जरूरी साबित किया है.'
अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की स्टेट ऑफ वर्किंग रिपोर्ट 2021 में बताया गया है कि कोरोना काल में देश में ग्रामीण गरीबी 15 फीसदी और शहरी गरीबी 20 फीसदी बढ़ गई है. जानकारों का कहना है कि सरकार को एफसीआई के गोदामों में रखे अनाज को उन लोगों को देना चाहिए जो गरीब हैं, लेकिन उनके पास राशन कार्ड नहीं है. यानी सभी गरीबों को अनाज सरकार को देना चाहिए.
गौरतलब है कि भारत का हंगर इंडेक्स में काफी निचला स्थान है. इसमें 117 देशों की सूची में भारत का स्थान 94वां है. इस इंडेक्स में भारत पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका से भी पीछे है.