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अब गौशाला से मिलेगी इकोनॉमी को 'खाद', मोदी सरकार की ये है तैयारी

सरकारी थिंकटैंक इस बात की संभावनाओं पर गौर कर रहा है कि दूध के अलावा गायों के क्या आर्थिक फायदे हो सकते हैं. आयोग का मानना है कि गोबर का इस्तेमाल खाद तैयार करने में किया जा सकता है, जो ऑर्गेनिक फार्मिंग को भी बढ़ावा देगा.

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गौशाला इकोनॉमी पर चल रहा काम
गौशाला इकोनॉमी पर चल रहा काम
स्टोरी हाइलाइट्स
  • गौशालाओं का अध्ययन कर रही है नीति आयोग की टीम
  • गौमूत्र और गोबर का होगा कमर्शियल यूज

एक समय था, जब भारत की इकोनॉमी (Indian Economy) की रीढ़ गायों पर निर्भर थी. जो अब इतिहास की बात हो चुकी है, लेकिन मोदी सरकार (Modi Govt) इसे नए जमाने के हकीकत में बदलने का प्रयास कर रही है. सरकारी थिंकटैंक नीति आयोग (NITI Aayog) इन दिनों इस बात को लेकर बहुत व्यस्त है कि कैसे गायों और गौशालाओं को इकोनॉमिक ग्रोथ का इंजन (Economic Growth Engine) बनाया जा सकता है. नीति आयोग को इस बात में काफी संभावनाएं दिख रही हैं और जल्दी ही इसका रोडमैप सामने आने वाला है.

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नीति आयोग के अधिकारी ने दी ये जानकारी

नीति आयोग के इस प्रयास को लेकर मीडिया के कुछ हलकों में खबरें चल रही हैं. इस बाबत संपर्क करने पर आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि ये खबरें बेबुनियाद नहीं हैं. दरअसल आयोग के सदस्य रमेश चंद की अगुवाई में अधिकारियों की एक टीम वृंदावन में कई गौशालाओं (Vrindavan Gaushala) का दौरा कर चुकी है. इसके अलावा अधिकारियों की यह टीम अन्य राज्यों में भी गौशालाओं तक पहुंचकर इकोनॉमिक पहलुओं की तलाश कर रही है.

सरकार को विस्तार से रिपोर्ट देगा आयोग

उन्होंने बताया कि आयोग जल्दी ही इस बारे में विस्तार से एक रिपोर्ट सरकार को सौंपने वाला है. इसमें यह बताया जाएगा कि किस तरह से गायें और गौशालाएं प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के गोल को अचीव करने में मदद कर सकते हैं. इस रिपोर्ट पर काम कर रही टीम का मानना है कि गौमूत्र और गोबर के कई कमर्शियल यूज (Commercial Use of Cow Dung & Urine) हो सकते हैं. खासकर खाद यानी उर्वरक (Fertilizers) के मामले में इनसे बिलकुल ऑर्गेनिक (Organic) विकल्प मिल सकता है. 

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ऑर्गेनिक फार्मिंग को मिल सकता है बूस्ट

नीति आयोग की टीम गौशाला इकोनॉमी (Gaushala Economy) के इस विजन को साकार करने के लिए उन गायों पर ध्यान दे रही है, जो दूध देना बंद कर देती हैं. ऐसी गायें पशुपालकों को बोझ लगने लगती हैं, लेकिन अगर इनसे आर्थिक फायदे होने लगें तो ये भी किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकती हैं. अगर गौमूत्र व गोबर का कमर्शियल यूज बड़े स्तर पर संभव हो पाया तो गौशालाओं और पशुपालक किसानों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है. आयोग का मानना है कि यह ऑर्गेनिक फार्मिंग के लिए भी बड़ा बूस्ट साबित होगा.

गौमूत्र और गोबर के कई कमर्शियल यूज

आयोग के अधिकारी ने बताया कि खाद के अलावा भी गौशालाओं के बाईप्रॉडक्ट के कई अन्य इस्तेमाल संभव हैं. उन्होंने कहा कि पहले से ही फार्मा और हर्बल सेक्टर (Pharma & Herbal Sector) में गौमूत्र की डिमांड है. इसी तरह गोबर को भी कई तरीके से कमर्शियल यूज में लाया जा सकता है. उदाहरण के लिए उन्होंने गिनाया कि गोबर से बने कंडों का इस्तेमाल शवदाह करने में किया जा सकता है. इससे लकड़ी की कम जरूरत पड़ेगी और यह अंतत: पर्यावरण के लिए मददगार साबित होगा.

संभावनाएं दिखा रहा ये आंकड़ा

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नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (NDDB) के आंकड़ों के अनुसार, 2019 तक भारत में गोवंशी पशुओं (Bovines) की संख्या 30 करोड़ से ज्यादा थी. इनमें 8 करोड़ से अधिक ऐसी गायें शामिल हैं, जो दूध देने के काबिल हैं. इस हिसाब से देखें तो अभी देश में ऐसी गायों और गोवंशी पशुओं की संख्या काफी ज्यादा है, जिनसे दूध का उत्पादन संभव नहीं है. यह बड़ा आंकड़ा नीति आयोग को बड़ी संभावनाएं दिखा रहा है.

 

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