मंदी की आहट की आशंका अब आमद में बदल सकती है. दुनिया भर के आर्थिक जानकारों का कहना है कि आने वाले दिनों में दुनिया में मंदी गहराने वाली है और इसकी सबसे अधिक मार अमेरिका पर पड़ेगी. इसके बाद मंदी यूरोप और ब्रिटेन को अपने लपेटे में ले सकती है. लेकिन इस ग्लोबल मंदी के समय भी भारत मजबूत स्थिति में नजर आ सकता है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दूसरे देशों की तुलना में भारत बेहतर स्थिति में है. वहीं, भारत को वैश्विक मंदी से फायदा हो सकता है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने 'बिजनेस टुडे टेलीविजन' को बताया कि एडवांस्ड इकोनॉमी की स्लो ग्रोथ से भारत को कच्चे तेल और अन्य कमोडिटी की कीमतों को कम करने में मदद मिल सकती है.
सस्ता होगा आयात
अधिकारी ने कहा कि यह एक अच्छा एहसास नहीं है लेकिन इससे सरकार की लागत में काफी कमी आएगी. पश्चिम में मंदी से कमोडिटी और तेल की कीमतें कम हो सकती हैं. अगर वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं विकास के मोर्चे पर संघर्ष करती हैं तो भारत के लिए उर्वरक और कच्चे तेल के आयात की कीमतें घटेंगी.
अधिकारी ने कहा कि एक तरह से हम वैश्विक अर्थव्यवस्था से गंभीर रूप से जुड़े हुए हैं, लेकिन थोड़े अछूते भी हैं. बढ़ती महंगाई दर को लेकर अधिकारी ने कहा कि कोई मुद्रास्फीति पर कैसे अंकुश लगा सकता है? हमें सही समय की प्रतीक्षा करने की जरूरत है, हालात स्थिर हो जाएंगे.
दिखने लगी है झलक
शुक्रवार को क्रूड ऑयल की कीमतों में 3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. मंदी का डर और चीन में फिर से कोविड प्रतिबंधों में इजाफे की वजह से डिमांड प्रभावित हुई है. ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स 2.94 डॉलर या 3.1 फीसदी गिरकर 91.63 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया, जबकि यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड 3.50 डॉलर या 3.9 फीसदी गिरकर 85.61 डॉलर पर पहुंच गया है.
अगर वैश्विक बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतें घटेंगी तो इसका असर भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर दिख सकता है. अगर पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होंगी तो ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी घटेगा. ऐसे में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आ सकती है.
तेल का उत्पादन बढ़ा रहा भारत
इस बीच पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी (Hardeep Singh Puri) ने कहा कि भारत 2030 तक 25 प्रतिशत मांग को पूरा करने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ा रहा है. वर्तमान में भारत प्रतिदिन 50 लाख बैरल पेट्रोलियम की खपत करता है और इसका लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है.
खुदरा महंगाई दर 7 फीसदी के पार
इस सप्ताह जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सितंबर के महीने में भारत में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 7.4 फीसदी पर पहुंच गई. खाद्य महंगाई दर 22 महीने के उच्च स्तर 8.6 प्रतिशत पर पहुंच गई. सब्जियों और फलों के महंगे होने का मुख्य कारण अनियमित बारिश को बताया जा रहा है. सितंबर महीने के आखिरी में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट रेट में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी की थी.
कब आती है मंदी?
जब किसी भी देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगातार छह महीने यानी 2 तिमाही तक गिरावट आती है तो इसे अर्थशास्त्र में आर्थिक मंदी कहा जाता है. वहीं अगर लगातार 2 तिमाही के दौरान किसी देश की जीडीपी में 10 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आती है तो उसे डिप्रेशन कहा जाता है जो भयावह होता है. आर्थिक मंदी जब भी आती है, जनजीवन पर व्यापक असर छोड़ जाती है. इससे जीडीपी का साइज घट जाता है क्योंकि रोजमर्रा की चीजें महंगी हो जाती हैं. लोगों के खर्चे बढ़ जाते हैं.