बाजार की मौजूदा स्थिति के बीच केंद्र सरकार (Central Government) अगले वित्त वर्ष के लिए विनिवेश (Disinvestment) के टार्गेट पर नजरें गड़ाए हुए है. हालांकि, कहा जा रहा है कि सरकार चालू वित्त वर्ष के मुकाबले 2023-24 में विनिवेश का लक्ष्य कम रख सकती है. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सरकार ने विनिवेश का लक्ष्य 65,000 करोड़ रुपये रखा है. अगले वित्त वर्ष के लिए 30,000 करोड़ रुपये से 35,000 करोड़ रुपये के विनिवेश का टार्गेट रख सकती है. एक अधिकारी ने कहा कि विनिवेश को बाजार आधारित होना चाहिए और मौजूदा स्थिति में बैंडविड्थ कम हो रही है. इसलिए लक्ष्यों में भी मॉडरेशन होना चाहिए.
अब तक नहीं पूरा हुआ है लक्ष्य
चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने 65,000 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था. अब इसके पूरा होने की संभावना कम नजर आ रही है. बाजार की स्थितियों के कारण, BPCL की प्रस्तावित बिक्री अमल में नहीं आई. सरकार ने मार्च 2020 में BPCL को बेचने के लिए बोली आमंत्रित की थीं. लेकिन बाद में बिक्री के लिए आए सभी प्रस्ताव को रद्द कर दिया था.
भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) से भी सरकार को उम्मीद से कम ही राजस्व प्राप्त हुआ और IDBI बैंक की बिक्री जून 2023 तक होने की उम्मीद है. बिजनेस टूडे में छपी खबर के अनुसार, एक अधिकारी ने कहा कि हमारा मौजूदा टार्गेट कम नहीं है. उन्होंने कहा कि हम उम्मीद कर रहे हैं कि हिंदुस्तान जिंक (Hindustan Zinc) की बिक्री से आय की पहली किश्त मौजूदा विनिवेश के लक्ष्य में जुड़ेगी.
क्यों पूरा नहीं हुआ लक्ष्य?
वित्त मंत्रालय के एक अन्य अधिकारी ने कहा- 'बड़े और छोटे लक्ष्यों को लेकर पूरा मामला हमारे पहले के निर्धारित लक्ष्यों के कारण है. हमारे शुरुआती टार्गेट अधिक थे और वास्तविक रूप से वे संभव नहीं हो सकते थे. यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि सरकार बाजार की स्थिति के कारण कितना विनिवेश कर सकती है. इसलिए एक मॉडरेट लक्ष्य के साथ ही जाना सही है.'
प्रोसेस में ये डील
कॉनकोर को बेचने और शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के लिए एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट की मांग प्रोसेस में है. पवन हंस की बिक्री, जो अभी रुकी हुई है वो सरकार को मुश्किल से 200 करोड़ रुपये देती. BPCL लक्ष्य को पूरा करने में मदद कर सकती थी, लेकिन फिलहाल उसे लिस्ट से बाहर कर दिया गया है.
फिलहाल विनिवेश से केंद्र सरकार को 24,544 करोड़ रुपये प्राप्त हुए हैं. ये 2022-23 के बजट में पेश किए गए सालाना लक्ष्य का महज 38 फीसदी है. इसका एक बड़ा हिस्सा करीब 20,500 करोड़ रुपये केवल एलआईसी में 3.5 प्रतिशत हिस्सेदारी की बिक्री के माध्यम से हासिल किया गया था.