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लाइसेंस में अंग्रेजों का अड़ंगा, सरदार पटेल का प्लान... ऐसे हुई थी अमूल कंपनी की शुरुआत?

सरदार पटेल ने किसानों को समझाया कि उन्हें सरकार से कॉपरेटिव बनाने की अनुमति लेनी चाहिए. अगर अंग्रेजी हुकूमत इसके लिए अनुमति नहीं देती है, तो उन्हें ठेकेदारों को दूध देना बंद कर देना चाहिए. किसान एकजुट हुए और दूध को बेचने के लिए एक कॉपरेटिव की नींव पड़ी. नाम रखा गया कैरा जिला कॉपरेटिव दूध उत्पादक संगठन.

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कैसे हुई थी अमूल डेयरी की शुरुआत?
कैसे हुई थी अमूल डेयरी की शुरुआत?
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 15 दिनों तक हड़ताल पर बैठे किसान
  • किसानों को नहीं मिल पा रहा था सही दाम

बात 76 वर्ष पुरानी है. तब अंग्रेजों के खिलाफ भारत की आजादी का आंदोलन अपने अंतिम दौर में था. स्वतंत्र भारत की सुगबुगाहट तेज होने लगी थी. लेकिन आजादी की लड़ाई से इतर गुजरात के कैरा जिला के किसान एक बड़ी समस्या से जूझ रहे थे. गाय और भैंस का दूध बेचकर अपना घर-बार चलाने वाले किसान दलालों के बीच फंसे थे. उन्हें दूध का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा था और दलाल उनके ही दूध को बेचकर मोटा पैसा बना रहे थे. दूध का कारोबार ठेकेदारों और दलालों के बीच फंसा था.

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चूंकि किसानों के पास दूध को लंबे समय तक रखने की व्यवस्था नहीं थी, इसका फायदा मिडिल मैन उठा रहे थे. वे किसानों से औने-पौने दाम पर दूध खरीदकर महंगे दामों पर बेच रहे थे. एक समय ऐसा आया जब खुद के साथ हो रहे शोषण के खिलाफ कैरा के किसानों भीतर चिंगारी सुलगनी शुरू हो गई. इस चिंगारी को सरदार वल्लभभाई पटेल ने हवा दी. चिंगारी आग बनी. किसान एकजुट हुए और दूध को बेचने के लिए एक कॉपरेटिव की नींव पड़ी. नाम रखा गया कैरा जिला कॉपरेटिव दूध उत्पादक संगठन, जिसके दूध और तमाम प्रोडक्ट्स आज अमूल (Amul) के नाम से दुनिया के कई देशों में बिक रहे हैं.

किसानों का गुस्सा फूटा

अमूल के बनने की कहानी किसानों के संघर्ष की कहानी है. उनके त्याग और विद्रोह की कहानी है और कहानी है ऐसे तीन शख्स की, जिन्होंने किसानों के साथ मिलकर देश में दूध की नई धारा बहा दी. शुरुआत 1945 से करते हैं. कैरा के कम पढ़े-लिखे किसान इस बात को समझ चुके थे कि उनके के साथ अन्याय हो रहा है. लेकिन किसानों का गुस्सा उस वक्त फूट पड़ा, जब गवर्मेंट ऑफ बॉम्बे ने बॉम्बे मिल्क स्कीम की शुरुआत की.

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इस स्कीम के तहत दूध को गुजरात के आणंद से 427 किलोमीटर दूर बॉम्बे (अब मुंबई) ट्रांसपोर्ट करना था. लेकिन इसे आणंद से मुंबई लेकर जाना आसान नहीं था, क्योंकि दूध के खराब होने का खतरा अधिक था. ऐसे में एक ही स्थिति में दूध ट्रांसपोर्ट किया जा सकता था. जब उसे आणंद में ही पाश्चुराइज किया जाता.

इसके बाद गवर्मेंट ऑफ बॉम्बे ने पॉलसन लिमिटेड से एग्रीमेंट किया. इसके तहत उसे आणंद से बॉम्बे रेगुलर बेसिस पर मिल्क सप्लाई करना था. ये सिस्टम किसानों को छोड़कर बाकी सभी के लिए मुनाफे का सौदा साबित हुआ. लेकिन किसी ने दूध उत्पादकों के लिए कीमत तय करना जरूरी नहीं समझा. लिहाजा इस स्कीम के बाद भी किसानों का हाल बेहाल ही रहा. इसके बाद किसानों के भीतर इस सिस्टम के खिलाफ चिंगारी पनपने लगी.

सरदार पटेल ने दिया सुझाव

इसी क्रम में एक दिन किसानों का समूह सरदार पटेल से मदद मांगने पहुंचा. सरदार पटेल 1942 से ही देश में किसानों के कॉपरेटिव को बढ़ावा दे रहे थे. त्रिभुवन दास पटेल के नेतृत्व में कैरा के किसान अपनी परेशानी लेकर पटेल के पास पहुंचे. सरदार पटेल ने उनकी समस्या को सुना और किसानों को खुद की एक कॉपरेटिव सोसाइटी खोलने का सुझाव दिया. उन्होंने कहा कि इस कॉपरेटिव सोसाइटी का खुद का पाश्चुराइजेशन प्लांट होगा. इससे वो बॉम्बे स्कीम के लिए सीधे दूध की सप्लाई कर पाएंगे.

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सरदार पटेल ने किसानों को समझाया कि उन्हें सरकार से कॉपरेटिव बनाने की अनुमति लेनी चाहिए. अगर अंग्रेजी हुकूमत इसके लिए अनुमति नहीं देती है, तो उन्हें ठेकेदारों को दूध देना बंद कर देना चाहिए. साथ ही पटेल ने किसानों से साफ कर दिया कि हो सकता है इसके लिए उन्हें हड़ताल भी करना पड़े. इस वजह से किसानों को कुछ नुकसान भी झेलना पड़ेगा. अगर किसान नुकसान को झेलने के लिए तैयार हैं, तो वो उनके साथ खड़े रहेंगे.

सरदार वल्लभभाई पटेल (फाइल फोटो)
सरदार वल्लभभाई पटेल (फाइल फोटो)

हड़ताल पर बैठे किसान

किसानों ने सरदार पटेल की बात मान ली. पटेल ने अपने भरोसेमंद सहयोगी मोरारजी देसाई को कैरा भेजा. देसाई को एक कॉपरेटिव सोसाइटी तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. इसके लिए उन्होंने 4 जनवरी 1946 को समरिखा गांव में एक मीटिंग बुलाई. इसमें तय हुआ कि कैरा जिले के सभी गांव में एक-एक मिल्क सोसाइटी बनाई जाएगी. वो सभी एक यूनियन को अपने दूध की सप्लाई करेंगी. सरकार को इस यूनियन से दूध खरीदने के लिए अनुबंध करना होगा. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने कॉपरेटिव बनाने की मंजूरी नहीं दी. लिहाजा किसान हड़ताल पर बैठ गए. 15 दिनों तक चली हड़ताल के दौरान कैरा जिला से एक बूंद दूध भी बाहर नहीं गया. आणंद से बॉम्बे तक दूध की सप्लाई ठप हो गई.

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कॉपरेटिव की पड़ी नींव

किसानों की हड़ताल के चलते बॉम्बे मिल्क स्कीम खत्म होने की स्थिति में पहुंच गई. जब हालात बिगड़े, तो बॉम्बे के मिल्क कमिश्नर कैरा पहुंचे. किसानों की मांग को स्वीकार कर लिया और यहीं शुरुआत हुई कैरा जिला कॉपरेटिव दूध उत्पादक संगठन की. 14 दिसंबर 1946 को इसे आधिकारिक रूप से रजिस्टर किया गया. 1948 से कैरा जिला कॉपरेटिव दूध उत्पादक संगठन ने बॉम्बे स्कीम के लिए दूध की सप्लाई शुरू की. तब सिर्फ दो गांव के कुछ किसान हर दिन 250 लीटर दूध इकट्ठा कर रहे थे. बॉम्बे मिल्क मार्केट के होने से किसानों को दूध को बेचने के लिए मार्केट मिला गया.

अमूल नाम की शुरुआत

साल 1948 तक 400 से अधिक किसान गांवों की कॉपरेटिव सोसाइटी से जुड़ चुके थे. लेकिन किसानों की बढ़ती संख्या की वजह से कॉपरेटिव की मुश्किलें बढ़ने लगीं. दूध अधिक जमा होने लगा. बॉम्बे के मिल्क मार्केट में दूध की खपत की क्षमता सीमित थी. ऐसे में जमा दूध के खराब होने के खतरा बना रहता. तब इस कॉपरेटिव में एंट्री हुई डॉ. वर्गीज कुरियन की. कुरियन ने मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री हासिल की थी.

इसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था. त्रिभुवन दास पटेल ने उन्हें कॉपरेटिव से जुड़कर किसानों की मदद करने को कहा. इसके बाद कुरियन ने कैरा जिला कॉपरेटिव को लगभग अपनी पूरी उम्र दे दी. वो डॉ. वर्गीज कुरियन ही थे, जिन्होंने कैरा जिला कॉपरेटिव का नाम बदलकर 'अमूल' रखा.

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 डॉ. वर्गीज कुरियन (फाइल फोटो
डॉ. वर्गीज कुरियन (फाइल फोटो

पहला मिल्क पाउडर प्लांट

कुरियन ने अमूल की मार्केटिंग और तकनीक में कई बदलाव किए. एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 1952 तक अमूल 20,000 लीटर दूध का प्रबंधन कर रहा था. कुरियन इस बात को समझ रहे थे कि आने वाले समय में दूध की मात्रा बढ़ेगी. तब प्रबंधन मुश्किल हो जाएगा. इसके लिए उन्होंने न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में ट्रेनिंग ली. क्वालिटी की टेस्टिंग और बिक्री के मॉडल को भी विकसित किया. फिर अमूल ने जोरदार उड़ान भरनी शुरू कर दी.

साल 1955 में डॉ. कुरियन के दोस्त एच एम दलाया ने भैंस की दूध से स्किम्ड मिल्क पाउडर और कंडेस्ट मिल्क बनाने का तरीका खोज निकाला. इससे पहले सिर्फ गाय के दूध से ही ये पाउडर तैयार होता था. इस खोज ने भारतीय दूध उद्योग को पंख लगा दिए. आणंद में अमूल ने भारत का पहला मिल्क पाउडर प्लांट स्थापित किया. इसके बाद अमूल साल 1956 में प्रतिदिन एक लाख लीटर दूध की प्रोसेसिंग करने लगा.

तिकड़ी ने दिखाया कमाल

आगे चलकर डॉ जीएच विलस्टर ने अमूल में भैंस की दूध से चीज (Cheese) बनाने की शुरुआत की, जिसने अमूल के मार्केट को और विस्तार दिया. त्रिभुवन दास पटेल, डॉ. वर्गीज कुरियन और एचएम दालाया की तिकड़ी ने इस डेयरी को सफलता की राह पकड़ा दी. धीरे-धीरे इसका विस्तार आस पास के जिलों में होने लगा. राज्य के बाकी के कॉपरेटिव की प्रतिस्पर्धा से अलग हटने के लिए साल 1973 में गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (GCMMF) की स्थापना हुई. ये आगे चलकर दूध कॉपरेटिव का सर्वोच्च संगठन बना, जिसे आमतौर पर अमूल के नाम से ही जाना जाता है.

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कितना बड़ा है अमूल का नेटवर्क

गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड, आज की तारीख में भारत का सबसे बड़ा खाद्य उत्पाद मार्केटिंग संगठन है. इसका वार्षिक कारोबार (2021-22)  6.2 बिलियन डॉलर का रहा है. ये हर दिन 18,500 गांव की दूध सहकारी समितियों से 26.3 मिलियन लीटर दूध खरीदता है. अमूल से गुजरात के 36 लाख किसान जुड़े हैं.

AMUL
अमूल

अमूल 80 डेयरी प्लांट को ऑपरेट करता है. देश के 28 राज्य और 222 जिलों में अमूल का नेटर्वक फैला है. अमूल के पास आज 10,000 डीलरों और 10 लाख खुदरा विक्रेताओं का एक डीलर नेटवर्क है. यह भारत में इस तरह के सबसे बड़े नेटवर्क में से एक है. इसके प्रोडक्ट में दूध, दूध पाउडर, स्वास्थ्य पेय पदार्थ, घी, मक्खन, पनीर, पिज्जा पनीर, आइसक्रीम, पनीर, चॉकलेट और पारंपरिक भारतीय मिठाई आदि शामिल हैं.

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