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कभी अमेरिका से आती थी, अब आप भी बर्फ जमाकर कमा सकते हैं लाखों-करोड़ों

अभी भले ही बर्फ कोई अनोखी चीज नहीं हो और घर-घर में उपलब्ध हो, लेकिन एक जमाने में यह लग्जरी थी और सिर्फ अमीरों को मिल पाती थी. कुछ सौ साल पहले तो अमेरिका से जहाज में लदकर बर्फ भारत आती थी. पढ़िए पूरी रोचक कहानी...

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अमेरिकी बिजनेसमैन ने कमाए करोड़ों (Photo: Wikimedia Commons)
अमेरिकी बिजनेसमैन ने कमाए करोड़ों (Photo: Wikimedia Commons)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • अमेरिका से आने में लगते थे 4 महीने
  • रास्ते में ही पिघल जाती थी काफी सारी बर्फ

अभी मार्च महीना आधा ही बीता है, लेकिन पारा चढ़ने लगा है. गर्मियां शुरू होते ही बर्फ और आइसक्रीम (Ice & Icecream) की डिमांड भी बढ़ जाती है. गर्मियों में बर्फ का इस्तेमाल कई प्रकार के शीतलपेय बनाने से लेकर खाने-पीने की चीजों को ठंडा रखने में किया जाता है. इसके अलावा भी बर्फ के कई अन्य इस्तेमाल हैं. आज भले ही रेफ्रिजरेटर (Fridge) के चलते घर-घर बर्फ उपलब्ध है, लेकिन एक समय में यह लग्जरी चीज थी और सिर्फ अमीरों के लिए ही थी.

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आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि कुछ सौ साल पहले भारत में अमेरिका से बर्फ आती थी. एक अमेरिकी बिजनेसमैन ने तो सिर्फ भारत में बर्फ बेचकर करोड़ों की दौलत बना ली थी. अभी भी यह काफी प्रॉफिटेबल बिजनेस है, जिसमें छोटा इन्वेस्टमेंट कर लाखों की कमाई की जा सकती है.

जहाज से आता बर्फ, लगते थे इतने महीने

यह कहानी 18वीं सदी के साथ शुरू होती है, जब अमेरिकी बिजनेसमैन फ्रेडरिक ट्यूडर (Frederic Tudor) ने कैरेबिया से लौटने के बाद बर्फ का बिजनेस डालने का निर्णय लिया. उन्होंने महज 23 साल की उम्र में 1806 में इसकी शुरुआत की और बाद में उन्हें 'बोस्टन्स आइस किंग (Boton's Ice King)' नाम से जाना गया. ट्यूडर को इस बिजनेस में बड़ी सफलता तब हाथ लगी जब बोस्टन के एक व्यापारी सैमुएल ऑस्टिन (Samuel Austin) ने भारत में बर्फ एक्सपोर्ट करने का प्रस्ताव दिया. साल 1833 में 12 मई को बोस्टन से Tuscany जहाज 180 टन बर्फ लेकर कोलकाता के लिए रवाना हुआ. सितंबर महीने में जब यह कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) पहुंचा, तब तक काफी बर्फ पिघल गई थी और महज 100 टन ही बची हुई थी. हालांकि इसके बाद भी ट्यूडर को काफी फायदा हुआ.

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पुराने जमाने की आइस फार्मिंग (Photo: Wikimedia Commons)
(Photo: Wikimedia Commons)

भारत में बर्फ बेचकर ट्यूडर ने की इतनी कमाई

ट्यूडर ने बिजनेस में प्रॉफिट का स्वाद चखने के बाद भारत में तीन जगहों कोलकाता, मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) और चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में स्टोरेज बनवाया, जिसे आइस हाउस (Ice House) नाम से जाना गया. बाद में जब स्ट्रीम प्रोसेस से बर्फ जमाने की तकनीक का ईजाद हुआ तो ट्यूडर का यह बिजनेस बंद हो गया. चेन्नई में उस जमाने का आइस हाउस आज भी मौजूद है. हालांकि अब उसे विवेकानंद इल्लम के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि ट्यूडर को भारत में बर्फ बेचने से उस समय 2.20 लाख डॉलर से ज्यादा मुनाफा हुआ था, जो पर्चेजिंग पावर के आधार पर आज के हिसाब से 80 लाख डॉलर यानी 61 करोड़ रुपये से ज्यादा है.

कभी बर्फ का घर था अभी का विवेकानंद हाउस (Photo: Wikimedia Commons)
कभी बर्फ का घर था अभी का विवेकानंद हाउस (Photo: Wikimedia Commons)

अभी इतने खर्च से शुरू कर सकते हैं बर्फ का बिजनेस

अभी के समय में बर्फ के बिजनेस की बात करें तो यह सीजनल होने के बाद भी काफी प्रॉफिटेबल है. इसे छोटे स्केल पर भी शुरू किया जा सकता है, इस कारण प्लांट बनाने में भारी-भरकम इन्वेस्टमेंट की जरूरत नहीं होती है. 1 टन कैपेसिटी वाली आइस ब्लॉक मेकिंग मशीनें 2 लाख रुपये से मिलने लगती हैं. आइस ब्लॉक मेकिंग मशीने बेचने वाली कंपनियां खुद ही इन्हें इन्सटॉल करने की सर्विस भी प्रोवाइड करती हैं, जिसके लिए 1 लाख रुपये के आस-पास का चार्ज करती हैं. इसके अलावा अन्य जरूरी रॉ मटीरियल्स पर 50 हजार रुपये के आस-पास का खर्च आता है.

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कंपनियां दावा करती हैं कि इस बिजनेस में अगर अधिक क्षमता वाली मशीनें लगाई जाएं और 5 से 6 लाख रुपये का टोटल इन्वेस्टमेंट किया जाए, तो पहले साल ही 2 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है, जो अगले साल से बढ़कर 5 लाख रुपये सालाना से ज्यादा हो सकता है.

(डिसक्लेमर: किसी भी बिजनेस या इन्वेस्टमेंट में प्रॉफिट की गारंटी नहीं होती है. हर बिजनेस की अपनी खूबियां और खामियां होती हैं. कहीं भी पैसे लगाने से पहले खुद डिटेल में आरएंडडी जरूर करें या किसी एक्सपर्ट की सलाह लें.)

 

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