भारत की दूसरी सबसे बड़ी IT कंपनी इंफोसिस को 32,403 करोड़ रुपये का GST डिमांड मिला है. रॉयटर्स की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह डिमांड इंफोसिस द्वारा 2017 से शुरू होने वाले पांच साल की अवधि में अपनी विदेशी ब्रांचेज से मिले सर्विस से रिलेटेड है. टैक्स डॉक्यूमेंट में बताया गया है कि इंफोसिस ने अपनी विदेशी ब्रांचेज को खर्च के तौर पर रिवार्ड दिया, जिस कारण कंपनी को रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म (RCM) के तहत इन IGST का पेमेंट करने के लिए उत्तरदायी माना जाएगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, इंफोसिस पर जीएसटी के तौर पर जुलाई 2017 से 2021-22 तक 32,403.46 करोड़ रुपये का बकाया है. आरसीएम सिस्टम के अनुसार, आपूर्तिकर्ता के बजाय माल या सेवाओं के रिसीवर को टैक्स का भुगतान करना होगा. इस खबर के आते ही इंफोसिस के शेयर तेजी से गिर गए. गुरुवार को यह स्टॉक 1.10 प्रतिशत गिरकर 1,847.65 रुपये पर बंद हुआ.
कंपनी ने कहा नहीं है कोई बकाया
इधर, एक्सचेंज फाइलिंग में इंफोसिस ने जानकारी दी कि उसने सभी बकाया चुका दिए हैं और कहा कि डीजीजीआई द्वारा दावा किए गए खर्चों पर जीएसटी लागू नहीं है. कंपनी ने कहा, "इंफोसिस ने अपने सभी जीएसटी बकाए का भुगतान कर दिया है और इस मामले में केंद्र और राज्य के नियमों का पूरी तरह से पालन कर रही है."
"कंपनी का मानना है कि नियमों के अनुसार, इन खर्चों पर जीएसटी लागू नहीं है. इसके अतिरिक्त, जीएसटी काउंसिल की सिफारिशों पर सेंट्रल इनडायरेक्ट टैक्स और सीमा शुल्क बोर्ड द्वारा जारी हाल के परिपत्र के अनुसार, भारतीय यूनिट को विदेशी ब्रांचेज द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं जीएसटी के अधीन नहीं हैं. यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि जीएसटी भुगतान आईटी सर्विस के निर्यात के खिलाफ क्रेडिट या रिफंड के लिए पात्र हैं.
डाक्यूमेंट में पेमेंट नहीं करने का दावा
दस्तावेज में कथित तौर पर बताया गया था कि इंफोसिस ने भारत से अपने निर्यात चालान के हिस्से के रूप में अपनी विदेशी शाखाओं द्वारा किए गए खर्चों को शामिल किया था. इन निर्यात मूल्यों के आधार पर, कंपनी ने पात्र रिफंड की गणना की. बेंगलुरु के जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय (DGGI) के अधिकारियों द्वारा एकत्र की गई खुफिया जानकारी से संकेत मिलता है कि इंफोसिस ने अपनी विदेशी शाखाओं से सेवाओं के आयात पर RCM के तहत IGST का भुगतान नहीं किया था.
पूर्व इंफोसिस सीएफओ मोहनदास पई ने सोशल मीडिया पर लिखा ''अगर यह नोटिस सही है तो यह अपमानजनक है- टैक्स आतंकवाद का सबसे बुरा मामला. भारत सेवा निर्यात जीएसटी के तहत नहीं है. क्या अधिकारी अपनी इच्छानुसार व्याख्या कर सकते हैं?"