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सिर्फ 20% ग्राहकों के दम पर दौड़ रही है देश की Economy! आबादी के बड़े हिस्से पर कोरोना का असर

UBS Survey में सामने आया है कि जिस विवेकाधीन खर्च की वजह से देश की इकोनॉमी (Economy) रफ्तार पकड़ती है, उसको बढ़ाने में देश के 20 फीसदी अमीर लोग सबसे आगे हैं. इस आबादी का ग्रामीण क्षेत्रों की 59 फीसदी विवेकाधीन खरीदारी में हाथ है, तो शहरी क्षेत्रों की 66 फीसदी खपत इनकी वजह से हो रही है.

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अमीर आबादी कर रही इकोनॉमी को सपोर्ट
अमीर आबादी कर रही इकोनॉमी को सपोर्ट

कोरोना काल (Corona Period) से एक बात लगातार दोहराई जा रही है कि देश में अमीर (Rich) ज्यादा अमीर हुए हैं. हाल ही में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट में भी यही कहा गया था कि भारत में अमीरों और कम आय वर्ग के बीच अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है. अब एक नई रिपोर्ट में UBS Survey के हवाले से कहा गया है कि महामारी के इन 2 बरसों में अमीरों की आर्थिक सेहत तो सुधरी है. लेकिन कम आय वर्ग के लिए ये पीरियड बेहद मुश्किल भरा साबित हुआ है और ये लोग अभी तक कोरोना के झटकों से उबरने की जद्दोजहद में लगे हुए हैं.  

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विवेकाधीन खर्च से बढ़ती है इकॉनमी!
UBS के सर्वे की बात करें तो महामारी काल में अमीरों के और ज्यादा अमीर होने का दावा करते हुए कहा गया है कि देश में डिमांड  (Demand) को बढ़ाने में केवल 20 फीसदी आबादी ही बड़ा रोल निभा रही है. यानी जिस डिस्क्रिशनरी यानी विवेकाधीन खर्च की वजह से देश की इकोनॉमी (Economy) रफ्तार पकड़ती है, उसको बढ़ाने में ये 20 फीसदी लोग सबसे आगे हैं. इस आबादी का ग्रामीण क्षेत्रों की 59 फीसदी विवेकाधीन खरीदारी में हाथ है, तो शहरी क्षेत्रों की 66 फीसदी खपत इनकी वजह से हो रही है. यूबीएस सिक्योरिटीज का कहना है कि कोरोना से देश के संपन्न ग्राहकों की इनकम काफी हद तक बेअसर रही है.

अमीर बढा रहे हैं विवेकाधीन खर्च!
यूबीएस के सर्वे (UBS Survey) में शामिल आधे से ज्यादा लोगों ने पिछले तीन महीने में योजना के मुताबिक या उससे भी ज्यादा मात्रा में सोना या ज्वैलरी खरीदी है. सर्वे में शामिल से इतने ही लोग अगले दो साल में घर खरीदने (Home Buy) और कार या दोपहिया वाहन खरीदने (Car and Bike Buy) की योजना बना रहे हैं. सर्वे के नतीजों से साफ है कि देश के अमीर ग्राहक डिमांड (Custmers Demand) को बरकरार रखे हुए हैं और इस बार के फेस्टिव सीजन में भी यो लोग जमकर खरीदारी करेंगे. 

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70% को इनकम बढ़ने की उम्मीद
सर्वे में शामिल 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने इस बात की उम्मीद है कि अगले साल उनकी इनकम (Income) बढ़ेगी और फेस्टिव सीजन (Festive Season) में वो अपना खर्च बढ़ा सकते हैं. 20 फीसदी लोगों ने ऑनलाइन शॉपिंग (Online Shopping), स्वास्थ्य सुविधाओं, ऑनलाइन मनोरंजन, राशन जैसे घरेलू सामान पर पिछले साल जितना ही खर्च करने की उम्मीद जताई है. वहीं महज 9 फीसदी लोगों ने ही अपने त्योहारी खर्च में कमी का अनुमान जाहिर किया है.

सरकार को उठाना होगा कदम
इस बार त्योहारों में बिक्री बढ़ने की एक बड़ी वजह ये भी है कि 2 साल बाद कोरोना के साये से दूर त्योहारों को खुलकर मनाया जा रहा है. लेकिन त्योहारों के बाद अगर एक बार फिर से अर्थव्यवस्था का बोझ 20 फीसदी उच्च आय वर्ग के ही कंधों पर आ गया तो भारत का सबसे तेजी से बढ़ती इकोनॉमी का ताज छिन सकता है. ऐसे में केवल इन 20 फीसदी लोगों की दम पर इकोनॉमी की रफ्तार को बढ़ाना मुमकिन नहीं होगा.

अब जबकि कई रिपोर्ट्स में अमीर और गरीब की खाई बढ़ने की आशंका जताई जा चुकी है तो फिर सरकार को कम आय वर्ग के लिए कुछ सोचना होगा. अगर ये अंतर इसी तरह बढ़ता रहा तो ना केवल आर्थिक विकास दर को झटका लगेगा, बल्कि सामाजिक समस्याएं भी इस अंतर के बढ़ने से पैदा हो सकती हैं.

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