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चुनाव है, तो नेताजी गली-गली घूमेंगे, हरेक वोटर पर हरेक पार्टी की नजर होगी. वैसे लोकतंत्र के लिए चुनाव एक पर्व है, और लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) तो महापर्व से कम नहीं. गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे बैनर-पोस्टर और बड़े-बड़े होर्डिंग्स से पट जाते हैं. वोटर्स को लुभाने के लिए गीत-संगीत का तड़का भी लगाया जाता है, छोटे-बड़े पर्दे के सितारों की भी मदद ली जाती है. ये सबकुछ केवल एक-एक वोट के लिए किया जाता है.
चुनाव में पैसे को पानी की तरह बहाया जाता है, दरअसल, ये आम धारणा है. लेकिन हकीकत में एक-एक वोट का हिसाब-किताब होता है. एक वोट के लिए कितना खर्च हो रहा है. सबका लेखा-जोखा रखा जाता है. ये आज की बात नहीं है, जब से चुनाव प्रणाली की शुरुआत हुई है तब से, आजादी के बाद से अबतक के हिसाब मौजूद हैं. हालांकि समय के बाद चुनाव के लिए खर्च भी बढ़े हैं और तरीके भी.
EVM पर बड़ा खर्च
पहले बैलट पेपर के जरिए वोटिंग होती थी, अब ईवीएम के जरिए मतदान हो रहा है. टेक्नोलॉजी में विस्तार की वजह से वोटिंग के तरीके बदले हैं. 2004 से हर लोकसभा चुनाव EVM के जरिये हो रहा है. आज के समय में चुनाव आयोग के लिए निष्पक्ष और सुचारु ढंग से चुनाव कराना महंगा हो गया है. क्योंकि एक बड़ा फंड EVM खरीदने और उसके रख-रखाव पर जाता है.
अगर चुनावी खर्च की बात की जाए तो इसकी मुद्रास्फीति सूचकांक के आधार पर तय होती है. बीते वर्षों में सेवाओं और वस्तुओं की कीमतों में हुई वृद्धि के आधार पर खर्च की सीमा तय की जाती है. देश में आजादी के बाद साल 1951 में पहला आम चुनाव हुआ था. इस चुनाव में करीब 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुआ था. चुनाव आयोग के मुताबिक 1951 कुल 17.32 मतदाता थे,जो साल 2019 में बढ़कर 91.2 करोड़ हो गए थे. आयोग के मुताबिक 2024 के चुनाव में 98 करोड़ मतदाता अपने मत का इस्तेमाल करेंगे.
मोदी सरकार पहली बार 2014 में सत्ता में आई थी. चुनाव आयोग के मुताबिक इस चुनाव को कराने में करीब 3870 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इससे पहले 2009 लोकसभा चुनाव में 1114.4 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. 2009 के मुकाबले में 2014 में चुनावी खर्च करीब तीन गुना बढ़ गया. वहीं पिछला चुनाव, यानी 2019 में चुनावी खर्च करीब 6600 करोड़ रुपये रहा था.
एक वोट के लिए कितना खर्च?
आजादी के बाद 1951 में पहला आम चुनाव हुआ था, इसमें 10.5 करोड़ रुपये चुनाव पर खर्च किए गए थे. इस बार 18वीं लोकसभा के लिए चुनाव होंगे. इस चुनाव में करीब 98 करोड़ मतदाता हिस्सा लेंगे. मतदाताओं की संख्या के हिसाब से यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव होने वाला है. अब एक वोट के लिए खर्च का हिसाब निकालें तो पता चलता है कि देश में पहली बार जब 1951 में आम चुनाव हुए थे, तब करीब 17 करोड़ वोटर्स ने भाग लिया था. उस वक्त हरेक मतदाता पर 60 पैसे का खर्च आया था. जबकि इस चुनाव में कुल 10.5 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.
वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 6600 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि कुल मतदाता की संख्या करीब 91.2 करोड़ थी. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में यह खर्च बढ़कर 72 रुपये प्रति वोटर पहुंच गया था. साल 2014 के चुनाव में प्रति मतदाता खर्च करीब 46 रुपये था. इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में 17 रुपये प्रति वोटर, और 2004 के चुनाव में 12 रुपये प्रति वोटर खर्चा आया था. देश में सबसे कम खर्च वाला लोकसभा चुनाव 1957 में हुआ था, तब चुनाव आयोग ने सिर्फ 5.9 करोड़ रुपये खर्च किए थे, यानी हरेक मतदाता तब चुनाव खर्च सिर्फ 30 पैसे आया था.
राजनीतिक दलों की ओर से बीते कुछ वर्षों में चुनाव के दौरान धन-बल का ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है. इस पर भी चुनाव आयोग ने नकेल कसी है. साथ ही EVM और वीवीपैट जरिये मतदान से चुनाव में पारदर्शिता आई है.
चाय-समोसे तक का दाम तय
एक सवाल उठता है कि क्या सही में चुनाव के दौरान पैसा पानी की तरह बहाया जाता है? इसका जवाब है कि नहीं... चुनाव आयोग निर्धारित करता है कि एक उम्मीदवार अधिकतम कितना खर्च कर सकता है. जिसमें हर तरह की खर्च के लिए राशि निर्धारित होती हैं, और कीमतें भी तय रहती हैं. चुनाव लड़ रहे हर उम्मीदवार को सार्वजनिक बैठक, रैली, विज्ञापन, पोस्टर, बैनर, वाहन, चाय, बिस्किट, समोसे और गुब्बारे तक का खर्च शामिल होता है. उम्मीदवार एक-एक खर्च का हिसाब देना पड़ता है.
एक रिपोर्ट के मुताबिक एक कप चाय की कीमत 8 रुपये और एक समोसे की कीमत 10 रुपये निधारित है. बिस्कुट 150 रुपये किलो, ब्रेड पकौड़ा 10 रुपये पीस, सैंडविच 15 रुपये पीस और जलेबी की कीमत 140 रुपये किलो तय की गई है. मशहूर गायक की फीस 2 लाख रुपये तय है या भुगतान का असली बिल लगाना होता है. ग्रामीण इलाके में कार्यालय के लिए उम्मीदवार 5000 रुपये महीने खर्च कर सकता है. जबकि शहर में यह राशि 10,000 रुपये है.
लोकसभा चुनाव 2024 में एक उम्मीदवार अधिकतम 95 लाख रुपये तक खर्च कर सकता है. इनमें चुनाव प्रचार, वाहन, खाना-पानी, टेंट और बैनर-पोस्टर तक शामिल है. चुनाव के दौरान गायकों और सोशल मीडिया पर दिए गए विज्ञापन का भी हिसाब होता है. फिलहाल विधानसभा चुनाव के लिए ये रकम प्रति उम्मीदवार के लिए अधिकतम 40 लाख रुपये निर्धारित है. इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भी खर्च अधिकतम 95 लाख रुपये, 2014 के लोकसभा चुनाव में 70 लाख रुपये, 2009 के चुनाव में 25 लाख रुपये, और 2004 के लोकसभा चुनाव में 25 लाख रुपये खर्च का दायरा था. देश के पहले चुनाव यानी 1951 में एक उम्मीदवार अधिकतम 25 हजार रुपये तक खर्च कर सकता था.
कौन उठाता है लोकसभा चुनाव का खर्च?
देश में आम चुनाव का खर्च केंद्र सरकार उठाती है. इसमें इलेक्शन कमीशन के प्रशासनिक कामकाज से लेकर, चुनाव में सिक्योरिटी, पोलिंग बूथ बनाने, ईवीएम मशीन खरीदने, मतदाताओं को जागरूक करने और वोटर आईडी कार्ड बनाने जैसे खर्चे शामिल हैं. चुनाव आयोग के मुताबिक साल-दर-साल EVM खरीद के खर्चे में भी इजाफा हुआ है. 2019-20 के बजट में ईवीएम खरीदने और मेंटिनेंश के लिए 25 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था. वहीं 2023-24 के बजट में यह राशि बढ़कर 1891.8 करोड़ रुपये तक पहुंच गई.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट 2024 में चुनाव खर्च के लिए 2442.85 करोड़ रुपये आवंटन किया था. इसमें 1000 करोड़ रुपये को लोकसभा चुनाव में खर्च किए जाएंगे. ईवीएम के लिए बजटीय आवंटन 34.84 करोड़ रुपये है. साल 2014 में चुनाव आयोग ने 3.82 लाख बैलट पेपर और 2.5 लाख मशीन खरीदी थी. एक EVM की जीवन अवधि करीब 15 साल होती है.साल 2018 और 2013 में चुनाव आयोग ने 13 लाख बैलट यूनिट और 10 लाख कंट्रोल यूनिट और खरीदी थी.
दरअसल चुनाव से जुड़े खर्चे चुनाव आयोग और कानून मंत्रालय दोनों को दिए जाते हैं. ईवीएम मशीन की खरीद जैसे चुनावी खर्च कानून मंत्रालय के बजट में आते हैं.
नेताओं की गतिविधियों पर नजरें
लोकसभा चुनाव के दौरान किसी के पास 50 हजार से ज्यादा नकदी मिलने पर उसका स्रोत और मकसद बताना होता है. स्रोत या उद्देश्य नहीं बताने पर राशि जब्त की जा सकती है. यही नहीं, चुनाव के दौरान किसी व्यक्ति के पास 10 लाख रुपये या इससे अधिक राशि मिलती है तो तुरंत इसकी सूचना आयकर विभाग को दी जाती है. 10 हजार रुपये से अधिक कीमत के पोस्टर, निर्वाचन सामग्री, ड्रग्स, मदिरा, हथियार या उपहार मिलते हैं, जिनका उपयोग प्रलोभन के लिए किया जा सकता है. उन्हें भी जब्त किया जा सकता है. अब तक दो लाख रुपये तक की रकम लेकर चलने पर उसका प्रमाण पत्र, बैंक रिकॉर्ड या रुपये के लेनदेन का ब्योरा लेकर चलना होता था.लेकिन अगर, अब इस राशि का दायरा बढ़ाकर दस लाख रुपये कर दिया है.