scorecardresearch
 

'रेवड़ी' के चक्कर में बिगड़ सकता है महाराष्ट्र-झारखंड का खेल, जानिए चुनावी वादे कैसे पड़ेंगे भारी?

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव के नतीजे आने के बाद अब दोनों ही राज्यों में चुनावी वादे पूरा करना बड़ी चुनौती साबित होने वाली है. एनालिस्ट ने कहा है कि इससे दोनों ही राज्यों की फाइनेंशियल हेल्थ पर असर पड़ सकता है.

Advertisement
X
महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी वादों को पूरा करना चुनौती
महाराष्ट्र-झारखंड में चुनावी वादों को पूरा करना चुनौती

महाराष्ट्र और झारखंड में चुनावी नतीजे आ चुके हैं. एक ओर जहां Maharashtra में बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की है, तो वहीं झारखंड में एक बार फिर से हेमंत सोरेन की JMM को जीत हासिल हुई है. भले ही दोनों पार्टियों ने अपने-अपने राज्यों में सत्ता पर कब्जा जमा लिया हो, लेकिन चुनाव के दौरान किए गए वादे इन दोनों राज्यों की फाइनेंशियल हेल्थ बिगाड़ने वाले साबित हो सकते हैं. एक्सपर्ट्स का कहना है कि पहले से जारी कई योजनाओं में लाभ बढ़ाने और लाभार्थियों की संख्या बढ़ाने के बारे राजकोषीय दबाव बनाने वाले साबित हो सकते हैं.  

Advertisement

इन स्कीम्स ने किया दोनों राज्यों में कमाल
महाराष्ट्र और झारखंड में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों के साथ ही लोकलुभावनवाद और फ्रीबीज फिर से प्रचलन में नजर आ रही है, जो राज्यों की वित्तीय स्थिति को खतरे में डाल सकती है. जहां भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन ने अपनी 'लड़की बहिन योजना' के दम पर Maharashtra Election में जोरदार जीत दर्ज की, तो वहीं झारखंड में सत्तारूढ़ इंडी गठबंधन ने 'मैया सम्मान योजना' और एग्रीकल्चर लोन माफी समेत अपनी कई जनकल्याणकारी योजनाओं को लेकर जनादेश पाया है. 

चुनावी वादों पर एक्सपर्ट्स ने चेताया
एक्सपर्ट्स ने इस जीत के बाद चेतावनी देते हुए कहा है कि बेहद पॉपुलर \Ladki Bahin Yojna' के तहत मिलने वाला मासिक भत्ता बढ़ाने समय चुनाव पूर्व किए गए वादों को लागू करने से महाराष्ट्र के वित्त पर अधिक राजकोषीय दबाव पड़ सकता है. मैक्वेरी कैपिटल (Macquarie Capital) ने सोमवार को एक नोट जारी कर कहा कि इस राजकोषीय नीति का नतीजा यह होगा कि महाराष्ट्र का राजकोषीय घाटा राज्य के लिए निर्धारित 3% के तय लक्ष्य से अधिक हो जाएगा और इसे पूरा करने के लिए राज्य को पूंजीगत व्यय में कटौती करनी होगी.

Advertisement

कैसे और कितना बढ़ेगा महाराष्ट्र पर बोझ? 
अपने नोट में मैक्वेरी कैपिटल ने आगे कहा कि चुनाव पूर्व अपने वादों के तहत महाराष्ट्र के महायुति गठबंधन ने 'लड़की बहिन योजनाट के तहत प्रति लाभार्थी मौजूदा 1,500 रुपये से बढ़ाकर 2,100 रुपये करने का वादा किया था. इस हिसाब से चालू वित्त वर्ष के लिए महाराष्ट्र के लिए कुल पूंजीगत व्यय परिव्यय 835 अरब रुपये होने का अनुमान है और लड़की बहिन योजना का इसमें हिस्सा करीब 350 अरब रुपये होगा. विधानसभा चुनावों में महिला वोटर की बढ़ती संख्या का श्रेय भी सरकार की इस योजना के तहत मिलने वाले लाभ में बढ़ोतरी को माना जा रहा है, एनालिस्ट ने कहा कि जहां इस योजना से सिर्फ 1 करोड़ लोगों को लाभ मिलना है, वहीं इसके लिए किए गए आवेदनों की संख्या करीब ढाई गुना बढ़ गई है. 

मैक्वेरी कैपिटन ने चेतावनी देते हुए कहा कि कुल मिलाकर, FY2025 की दूसरी छमाही में (ICRA के मुताबिक) पूंजीगत व्यय में केंद्र सरकार के स्तर पर 52% और राज्य स्तर पर 40% की उल्लेखनीय वृद्धि की जरूरत होगी, क्योंकि वित्त वर्ष 2025 की पहली छमाही में क्रमशः 15% और 10% की गिरावट देखी गई है.

झारखंड में भी हालत कुछ ऐसे ही
महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि झारखंड में भी कुछ ऐसा ही हाल देखने को मिल सकता है. Jharkhand में 'मैया सम्मान योजना' है, जिसके तहत पात्र महिलाओं के खातों में 1,000 रुपये प्रति माह ट्रांसफर किए जाते हैं, जिसे 2500 रुपये करने का वादा किया गया है, इस योजना का लाभ फिलहाल 50 लाख से ज्यादा महिलाओं को मिल रहा है. इसके साथ ही 1.8 लाख किसानों को 4 अरब रुपये की एग्रीकल्चर लोन माफी का भी वादा किया गया है. इन्हें लागू करने में सरकार पर वित्तीय बोझ काफी बढ़ जाएगा.

Advertisement

Emkay Global की मानें तो झारखंड के लिए MSY के तहत 2,500 रुपये प्रति माह की बढ़ोतरी का मतलब 90 अरब रुपये (जीएसडीपी का 1.9%) व्यय होगा, जबकि वित्त वर्ष 25 में शुरू में 60 अरब रुपये (GSDP का 1.3%) का बजट रखा गया था. एनालिस्ट ने कहा है कि राज्यों को रेवेन्यू जुटाने की बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के साथ, रेवड़ी कल्चर की राजनीति राजकोषीय दबाव को बढ़ाएगी. 

Live TV

Advertisement
Advertisement