देश की मैन्यूफैक्चरिंग एक्टिविटी में इस साल फरवरी के मुकाबले मार्च में थोड़ी सुस्त ग्रोथ देखने को मिली. सोमवार को जारी एक सर्वे में यह बात कही गई है. इस मासिक सर्वे के मुताबिक, कीमतों में उछाल की वजह से नए ऑर्डर और आउटपुट में सितंबर के बाद सबसे धीमी दर से ग्रोथ देखने को मिली. इस सर्वे में कहा गया है कि ऑप्टिमिज्म दो साल के निचले स्तर पर है.
फरवरी के मुकाबले धीमी ग्रोथ
S&P Global द्वारा कम्पाइल मैन्यूफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) मार्च में 54 पर रहा, जो फरवरी 2022 में 54.9 पर रहा था. हालांकि, इस सेक्टर में धीमी ही सही लेकिन ग्रोथ देखने को मिली. PMI पर 50 से अधिक का नंबर ग्रोथ जबकि इससे नीचे का नंबर कॉन्ट्रैक्शन को दिखाता है.
रिकवरी हो रही है स्लो
सर्वे दिखाता है कि एशिया की तीसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी की रिकवरी में सुस्ती आ रही है. रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध (Russia-Ukraine War) की वजह से पैदा हुई अनिश्चितता के चलते तेल की कीमतों में उछाल से कंज्यूमर स्पेंडिंग पर असर पड़ा है. जीडीपी ग्रोथ में कंज्यूमर स्पेंडिंग का योगदान सबसे ज्यादा होता है.
S&P Global में एसोसिएट डायरेक्टर (इकोनॉमिक्स) पॉलियाना डी लिमा ने कहा, "फाइनेंशियल ईयर 2021-22 के आखिर में भारत में मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ कमजोर पड़ गई. नए ऑर्डर और प्रोडक्शन के लिहाज से कंपनियों की ग्रोथ सॉफ्ट रही."
उन्होंने कहा कि महंगाई से जुड़े दबाव के साथ स्लोडाउन का असर देखने को मिला है. हालांकि, 2021 के आखिर के मुकाबले इनपुट कॉस्ट में कम तेजी देखने को मिली.
हालांकि, राहत भरी खबर ये रही कि फैक्ट्रियों ने पिछले चार महीने में पहली बार अपने कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई. इसी बीच लागत में वृद्धि अब भी चिंता की वजह बनी हुई है.