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चीन में सख्त COVID-19 प्रतिबंधों के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए हैं. इस वजह से काम-काज ठप हो गया है और इसका असर क्रू़ड ऑयल की कीमतों पर दिखना शुरू हो चुका है. चीन क्रूड ऑयल का सबसे बड़ा आयातक है. वहां हो रहे प्रदर्शनों की वजह से कच्चे तेल की सप्लाई प्रभावित हुई, जिसकी वजह से ग्लोबल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतें गिरी हैं. बीते दिन ब्रेंट क्रूड 2.43 डॉलर या 2.9% गिरकर 81.20 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया था. WTI गिरकर 71 डॉलर और MCX पर क्रूड 6100 रुपये के नीचे फिसल गया. इस तरह क्रूड ऑयल 10 महीने के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया.
कितना गिर सकता है क्रूड का भाव?
निसान सिक्योरिटीज में जनरल मैनेजर (रिसर्च) हिरोयुकी किकुकावा ने कहा- 'चीन में बढ़ते कोविड-19 मामलों के कारण लगे कड़े प्रतिबंध ने फ्यूल की डिमांड को प्रभावित किया है.' उन्होंने कहा कि WTI की ट्रेडिंग रेंज 70 डॉलर से लेकर 75 डॉलर तक गिरने की उम्मीद है. उत्पादन पर आगामी ओपेक देशों की बैठक के परिणाम और रूसी तेल पर अगर अमेरिका समेत G7 देश प्राइस कैप लगाते हैं, तो मार्केट में क्रूड की कीमतों में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है.
तेल मार्केट में मंदी
चीन राष्ट्रपति शी जिनपिंग की जीरो-कोविड पॉलिसी पर अड़ा हुआ है, जबकि दुनिया के ज्यादातर देशों ने प्रतिबंधों को हटा लिया है. चीन की सड़कों पर कोविड के सख्त प्रतिबंधों के खिलाफ प्रदर्शन चल रहा है. शंघाई में रविवार रात सैकड़ों प्रदर्शनकारी और पुलिस के बीच झड़प हो गई थी. एमोरी फंड मैनेजमेंट इंक के सीईओ टेत्सु एमोरी ने कहा- 'चीन में मांग को लेकर बढ़ती चिंताओं और तेल उत्पादकों के स्पष्ट संकेतों की कमी के कारण तेल बाजार में मंदी के सेंटिमेंट उभर रहे हैं.
4 दिसंबर को होने वाली है बैठक
टेत्सु एमोरी ने कहा कि जब तक ओपेक+ उत्पादन कोटा में और कटौती पर सहमत नहीं होता या अमेरिका अपने रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार को फिर से लोड करने के लिए आगे नहीं बढ़ता है, तब तक तेल की कीमतों में और गिरावट आ सकती है. पेट्रोलियम निर्यातक देशों का संगठन (OPEC) और रूस सहित उसके सहयोगी, जिन्हें ओपेक+ के नाम से जाना जाता है. उनकी बैठक 4 दिसंबर को होने वाली है. अक्टूबर में ओपेक+ ने 2023 तक अपने उत्पादन लक्ष्य में 2 मिलियन बैरल प्रति दिन कटौती करने पर सहमति जताई थी.
रूस के तेल की कीमतों पर प्राइस कैप
ग्रुप ऑफ सेवन ( G7) और यूरोपीय संघ रूस के तेल पर 65-70 डॉलर प्रति बैरल के बीच प्राइस कैप लगाने पर विचार कर रहा है. यूक्रेन पर हमले के बाद से पश्चिमी देश रूस पर कई तरह प्रतिबंध लगा चुके हैं. उसके तेल पर मार्केट कैप लगाकर ये देश रूस को वित्तीय रूप से कमजोर करने की कोशिश कर कर रहे हैं.
क्या है प्राइस कैप?
यूक्रेन के साथ युद्ध के कारण रूस कई आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. इसमें से अधिकतर प्रतिबंध अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने लगाए हैं. प्राइस कैप इसी आर्थिक प्रतिबंध का हिस्सा है. इसके तहत रूसी तेल की कीमतों का निर्धारण G7 में शामिल देश करेंगे. अभी रूस अपनी कीमतों पर तेल बेच रहा है. अगर प्राइस कैप 65 से 70 डॉलर के बीच रहता है तो भारत के लिए यह वर्तमान जैसी ही स्थिति होगी.