किसानी से जुड़े बिलों को पारित कराने के बाद अब संसद में श्रम कानूनों में बदलाव से जुड़े तीन विधेयक पेश किये गये हैं. इन्हें सरकार श्रम सुधार बता रही है तो श्रम संगठन इसे मजदूर विरोधी बता रहे हैं. ये विधेयक कामगारों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें कंपनियों को आसानी से हायर ऐंड फायर यानी नौकरी पर रखने या निकालने की छूट दी जा रही है. आइए जानते हैं कि क्या हैं ये बिल और इन पर क्या कहना है एक्सपर्ट्स का.
सरकार ने लोकसभा में इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड बिल, 2020, कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी बिल 2020 और ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ, ऐंड वर्किंग कंडीशन्स कोड बिल 2020 पेश किया है. इन विधेयकों को लाने के पीछे सोच यह है कि कामगारों की सामाजिक सुरक्षा बढ़ाई जाए. इसके अलावा नियोक्ताओं यानी कारखाना मालिकों, कंपनियों आदि को भी बिना सरकारी इजाजत के कर्मचारियों को रखने और निकालने के लिए ज्यादा आजादी देने की बात भी कही गई है.
हायर ऐंड फायर की ज्यादा आजादी
इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड बिल में यह प्रस्ताव है कि कामगारों के हड़ताल के अधिकार पर और अंकुश लगाया जाए, इसी तरह 300 तक कर्मचारियों वाले प्रतिष्ठानों को बिना किसी सरकारी इजाजत के कर्मचारियों को रखने या निकालने की इजाजत दी जाए, अभी यह सीमा 100 कर्मचारी तक वाले प्रतिष्ठानो को है. इसका काफी विरोध भी हो रहा है. ऐसा कहा जा रहा है कि इससे कंपनियों को मनमानी की छूट मिल जाएगी.
आसान नहीं होगा हड़ताल करना
इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड में हड़ताल के लिए भी नई शर्तें लगा दी गई हैं. इसमें कहा गया है कि हड़ताल पर जाने से पहले आर्बिट्रेशन यानी मध्यस्थता कार्रवाई की एक अवधि होगी. इसके पहले सिर्फ समाधान के लिए समय देने की बात थी. प्रस्ताव में कहा गया है कोई भी व्यक्ति 60 दिन पहले के नोटिस के बिना हड़ताल पर नहीं जा सकता और इसी तरह अगर किसी ट्राइब्यूनल में मामला चल रहा हो तो भी वह हड़ताल नहीं कर सकता. ऐसे मामले की अंतिम सुनवाई के 60 दिन के बाद ही हड़ताल की जा सकती है. इस तरह से हड़ताल को लगभग असंभव बनाया जा रहा है.
यह इंडस्ट्रियल रिलेशन कोड सभी औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर लागू होगा. फिलहाल सिर्फ जनोपयोगी सेवाओं में ही हड़ताल के लिए छह हफ्ते पहले नोटिस देना पड़ता है. कामगारों से जुड़े दो अन्य कोड में सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने की बात कही गई है. प्रस्ताव के मुताबिक अंतरराज्यीय प्रवासियों मजदूरों को भी कामगारों की परिभाषा में शामिल किया जाएगा. प्रस्ताव के मुताबिक एक नेशनल सोशल सिक्योरिटी बोर्ड बनाया जाएगा, जो केंद्र सरकार को कामगारों के लिए उपयुक्त योजनाएं बनाने का सुझाव देगा.
प्रवासी मजदूरों की चिंता
इसी तरह पेशेगत सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यदर्शा संहिता के द्वारा उन सभी कामगारों को प्रवासी कामगार माना गया है जो एक राज्य से किसी दूसरे राज्य में आये हों और 18,000 रुपये महीना तक कमा रहे हों. अभी तक सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले मजदूरों को ऐसा कामगार माना जाता था.
कामगार विरोधी कानून लाने का आरोप
ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियंस (AICCTU) के महासचिव (दिल्ली राज्य कमिटी) अभिषेक ने कहा कि सरकार खुद कह रही है कि वह मालिकों के हित में कानून बना रही है. यह नियोक्ता के हित में है. उन्होंने कहा, 'जब सरकार ही ऐसा कह रही है कि हम ऐसे कानून बना रहे हैं जहां नियोक्ता का फायदा होगा, मजदूरों के अधिकार कम होंगे. तो बाकी लोग क्या कहें. खुद श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा है कि वह एम्प्लॉयर के फायदे के लिए कानून ला रहे हैं. यह सरासर मजदूर विरोधी कदम है और मालिकों को फायदा पहुंचाने के लिए है.'
मजदूरों के हित वाले प्रावधानों को मजबूत करने की जरूरत
उन्होंने कहा, 'इसमें ट्रेड यूनियन बनाने के अधिकार पर अंकुश लगाया जा रहा है. हड़ताल के लिए सीधे दंड देने की बात कही गई है. श्रमिकों का विरोध करने या हड़ताल का अधिकार होता है. लेकिन अब इसके लिए दंड देने, कानूनी कार्रवाई करने की बात कही गई जो कि सीधे उन्हें धमकी देना है. ऐसे सामाजिक फायदों को खत्म किया जा रहा है जिसमें सरकार को एक पैसा नहीं देना था. ज्यादातर प्रतिष्ठान 300 से कम कर्मचारी रखते हैं. इस तरह 95 फीसदी से ज्यादा कारखाने और प्रतिष्ठान धड़ल्ले से छंटनी कर पाएंगे और उन्हें सरकार से किसी तरह की इजाजत लेने की जरूरत नहीं होगी.
उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब कामगारों के हितों वाले कानूनों को और मजबूत करने की जरूरत थी. सरकार इसे लगातार कमजोर कर रही है.