'लिखते-लिखते लव हो जाए...' ये वाला एड तो बचपन में आपने टीवी पर देखा ही होगा और जिस पेन के लिए यह एड चला था, उससे लिखा भी होगा? दरअसल, हम बात कर रहे हैं Rotomac Pen की. कुछ साल पहले इस कंपनी का पूरे भारत में जलवा था. हर कोई इसके कलम का दीवाना था. ये सस्ते से लेकर महंगे पेन बनाती थी. लेकिन Rotomac कंपनी की ये हैसियत ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई और एक बड़े स्कैम में फंसकर बर्बाद हो गई, जिसकी शायद कल्पना भी नहीं थी. आइए जानते हैं इस कंपनी की शुरुआत से अंत तक की पूरी कहानी...
पान पराग (Pan Parag) कंपनी के मालिक मनसुखभाई कोठारी के बेटे विक्रम कोठारी (Vikram Kothari) रोटोमैक कंपनी के मालिक थे. 90 के दशक में पान पराग कंपनी की शुरुआत करने वाले मनसुखभाई कोठारी (Mansukhbhai Kothari) ने ही अपने कारोबार विस्तार के दौरान रोटोमैक कंपनी की नींव रखी थी. कारोबार बंटवारे के बाद विक्रम कोठारी को Rotomac कंपनी की कमान मिली थी. ये कलम हर किसी के जेब में रहती थी. इस कंपनी के लिए विज्ञापन सलमान खान, रवीना टंडन जैसे स्टार करते थे. लेकिन कर्ज का जाल इस कंपनी को ऐसा ले डूबा कि देखते ही देखते कंपनी बर्बाद हो गई और करीब 3700 करोड़ रुपये का स्कैम उभरकर सामने आया.
कैसे हुई थी रोटोमैक की शुरुआत?
विक्रम कोठारी के पिता मनसुखभाई कोठारी (Mansukhbhai Kothari) 16 साल की उम्र में गुजरात से कानपुर किसी कारोबार की शुरुआत के लिए आए थे. अपनी शुरुआती दिनों में उन्होंने कानपुर में साइकिल पर पान मसाला बेचना शुरू किया. सालों तक ये काम करने के बाद उन्हें पारले प्रोड्क्टस का डिस्ट्रीब्यूशन मिल गया, फिर क्या था? मनसुखभाई कोठारी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और फिर अपने डिस्ट्रीब्यूशन को बढ़ाते चले गए. फिर कोठारी ने खुद का कारोबार शुरू करने की ठान ली और कुछ सालों के बाद 1983 में कोठारी पोडक्ट्स लिमिटेड नाम से कंपनी बनाई.
कोठारी प्रोडक्ट्स लिमिटेड का प्रमुख ब्रांड पान पराग था, जिसने कंपनी को बड़ी कामयाबी दिलाई. इसका एक एड- 'बरातियों का स्वागत पान पराग से करें' काफी पॉपुलर हुआ. कंपनी के इस एड को शमी कपूर ने किया था, जिसके बाद हर किसी के जुबां पर पान पराग चढ़ गया. फिर मनसुख कोठारी ने अपने कारोबार का विस्तार शुरू कर दिया. इनके दो बेटे विक्रम कोठारी और दीपक कोठारी, पान मसाला कारोबार को बढ़ाने में पिता की मदद करते थे. पान पराग के फेमस होने के बाद मनसुख कोठारी ने साल 1992 में रोटोमैक (Rotomac) कंपनी की नींव रखी. इसके साथ ही मिनरल वाटर ब्रांड, रियल एस्टेट, ऑयल इंडस्ट्री, स्कूल और एजुकेशन सेक्टर तक मनसुख कोठारी ने अपने कारोबार का विस्तार किया.
साल 1999 में हुआ बंटवारा
साल 1999 में दोनों भाइयों के बीच कारोबार का बंटवारा हो गया. विक्रम कोठारी (Vikram Kothari) के हिस्से में रोटमैक कंपनी आई, जो स्टेशनरी का कारोबार करती थी. वहीं छोटे भाई दीपक कोठारी पान मसाला के कारोबार में थे. साल 1997 में विक्रम कोठारी को बेस्ट इंवेस्टर्स के तौर पर सम्मानित किया गया था. साल 2005 में इनकी कंपनी 100 करोड़ के क्लब में शामिल हो गई थी. सलमान खान, रवीना टंडन जैसे कई स्टार रोटोमैक का एड करते थे. हर जुबां पर रोटमैक और हर जेब में रोटोमैक कलम होती थी.
कंपनी पर बढ़ता गया कर्ज
स्टेशनरी कारोबार में शामिल रोटोमैक कंपनी की कामयाबी के बाद भी इसकी स्थिति तब बिगड़ने लगी, जब विक्रम कोठारी की योजना फेल होने लगी. विक्रम कोठारी बैंकों से भारी कर्ज लेने लगे और इसे अलग-अलग कारोबार में अग्रेसिव तरीके से लगाने लगे, जिसका असर ये हुआ कि ना तो वह बिजनेस चला और ना ही किसी तरह का फायदा ही हुआ. धीरे-धीरे करके कंपनी पर कर्ज बढ़ता गया.
कैसे कंपनी हो गई बर्बाद?
कंपनी के पतन की शुरुआत भारी कर्ज से हुई. कंपनी के प्रमोटर विक्रम कोठारी पर फर्जी तरीके से लोन लेने और कर्ज ना चुकाने का आरोप लगा. विक्रम कोठारी ने सात बैंकों से लोन ले रखा था, लेकिन चुका नहीं पाए थे. सबसे पहला लोन साल 2008 में 200 करोड़ रुपये का था, इसके बाद साल 2010 में 520 करोड़ का था. फिर इसी तरह हर साल लोन लेने का सिलसिला बढ़ता गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक कोठारी किसी और नाम से लोन लेते और वह पैसा कहीं और लगाते थे. देखते ही देखते लोन की रकम बढ़कर 2,919 करोड़ रुपये हो गई और इसका इन्टरेस्ट 776 करोड़ रुपये हो गया. यानी कुल बकाया 3995 करोड़ रुपये हो गया, जिसे चुका पाना कंपनी के लिए आसान बात नहीं रही.
इन सात बैंकों से लिया था इतना कर्ज
सीबीआई ने किया स्कैम का खुलासा
भारी कर्ज नहीं चुका पाने के कारण रोटमैक का कारोबार ठप हो गया. इधर, कंपनी को बर्बाद होता देख विक्रम कोठारी के विदेश जाने की चर्चाएं होने लगी, जिसके बाद सीबीआई ने बड़ा एक्शन लिया और कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी को गिरफ्तार कर लिया. फिर कंपनी के कर्ज और अन्य चीजों को लेकर जांच शुरू हुई, जिसमें करीब 3700 करोड़ रुपये का स्कैम सामने आया.
2022 में विक्रम कोठारी का निधन
सीबीआई के गिरफ्तार करने के बाद विक्रम कोठारी दो साल तक जेल रहे. यहां इनका स्वास्थ्य खराब होने लगा, जिस कारण कोर्ट ने इनकी जमानत याचिका को मंजूदी दे दी. हालांकि साल 2022 में विक्रम कोठारी का निधन हो गया. वहीं कंपनी का वजूद साल 2020 में ही खत्म हो गया, जब कंपनी के ब्रांड नेम रोटोमैक को 3.5 करोड़ में बेच दिया गया.