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फॉर्मूला देने को राजी सरकार, मगर अन्य कंपनियों के लिए आसान नहीं Covaxin का उत्पादन, लग सकते हैं कई महीने 

सरकारी कंपनी भारत बायोटेक की वैक्सीन टेक्नोलॉजी के मामले में ढील देते हुए सरकार ने इसका फॉर्मूला दूसरी कंपनियों को देने की बात कही है. तीन पीएसयू को इसका जिम्मा भी सौंपा गया है.  लेकिन निजी कंपनियां कई वजहों से कोवैक्सीन के उत्पादन में रुचि नहीं दिखा रहीं.

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दूसरी कंपनियों को भी मिलेगी कोवैक्सीन की टेक्नोलॉजी
दूसरी कंपनियों को भी मिलेगी कोवैक्सीन की टेक्नोलॉजी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • कोवैक्सीन का उत्पादन बढ़ाने की कोशिश
  • दूसरी कंपनियों से भी मांगा गया सहयोग

देश में कोविड वैक्सीन की किल्लत को देखते हुए सरकार ने इनके उत्पादन में तेजी लाने के हरसंभव प्रयास शुरू किए हैं. इसी के तहत सरकारी कंपनी भारत बायोटेक की कोवैक्सीन  (Covaxin) टेक्नोलॉजी के मामले में ढील देते हुए सरकार ने इनका फॉर्मूला दूसरी कंपनियों को देने की बात कही है. तीन पीएसयू को इसका जिम्मा भी सौंपा गया है. 

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कोवैक्सीन के उत्पादन को बढ़ाने के लिए कई राज्यों की तरफ से फॉर्मूले को दूसरी वैक्सीन उत्पादक कंपनियों को देने की मांग के बीच नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने 13 मई को कहा  कि Bharat Biotech इस प्रस्ताव का स्वागत करती है . इस सरकार इस प्रयास में अपना पूरा सहयोग करेगी. 

लेकिन निजी कंपनियां कई वजहों से कोवैक्सीन के उत्पादन में रुचि नहीं दिखा रहीं. यही नहीं, पीएसयू के लिए भी उत्पादन जल्द शुरू कर पाना इतना आसान नहीं लगता. असल में देश में कुछ ही ऐसी कंपनियां हैं जिनके पास इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन की प्रोसेस को हैंडल करने की क्षमता है, जिसका इस्तेमाल कोवैक्सीन में किया जाता है. 

बायोकॉन की चेयरपर्सन किरण मजूमदार शॉ ने इस बारे में ट्वीट भी किया था. उन्होंने कहा था कि उनकी यह जानने में दिलचस्पी है कि देश में कितनी कंपनियां कोवैक्सीन के उत्पादन के लिए आगे आ रही हैं. 

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टेक्नोलॉजी का मसला

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार वैक्सीन बनाने वाली एक प्रमुख कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने कहा, 'दरअसल, कोई जीवित वायरस से जुड़ा काम नहीं करना चाहता है. कोई इसके लिए तैयार नहीं होगा. यही वजह है कि ज्यादातर कंपनियां प्रोटीन आधारित वैक्सीन बनाना पसंद करती हैं. हालांकि अगर कोरोना की महामारी की बात करें तो सबसे अच्छा तरीका यह है कि जीवित वायरस को लेकर इसे निष्क्रिय किया जाए.' 

गौरतलब है कि भारत बायोटेक के को​वैक्सीन में जीवित वायरस को लेकर इसे निष्क्रिय करने की तकनीक अपनाई गई है, जबकि कोविशील्ड प्रोटीन आधारित वैक्सीन है. 

आठ महीने लग जाएंगे उत्पादन शुरू करने में! 

शांता बायोटेक के संस्थापक के आई वाराप्रसाद रेड्डी ने कहा कि सबसे पहले तो यह समझना होगा कि वैक्सीन के मामले में कोई फॉर्मूला नहीं होता है. यह प्रोसेस और टेक्नोलॉजी का मामला है. अगर किसी को फॉर्मूला मिल भी जाए तो उसे उत्पादन शुरू करने में कम से कम 8 महीने से लेकर एक साल का समय लग जाएगा. जीवित वायरस को हैंडल करने के लिए लोगों को ट्रेनिंग देने में कम से कम छह महीने का समय लग जाएगा. इसके लिए बायोसेफ्टी लेवल 3 BSL-3 के प्लांट की स्थापना की जरूरत होती है, जिसमें कई महीने लग जाते हैं.

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जानकारों का कहना है कि एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड या फाइजर बायोएनटेक या मॉडर्ना की वैक्सीन का उत्पादन करना भारत में आसान हो सकता है. इसकी वजह यह है कि इसके लिए बीएसएल-3 फैसिलिटीज की जरूरत नहीं पड़ती है. आरएनए आधारित वैक्सीन बनाना आसान है. इसके लिए बड़ी संख्या में संक्रमण वायरस की जरूरत नहीं पड़ती है.


 

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