सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को अपने फैसले में कहा था कि लोन मोरेटोरियम को और नहीं बढ़ाया जा सकता और न ही इस दौरान ब्याज को पूरी तरह से माफ किया जा सकता है. लेकिन साथ ही कोर्ट ने कहा कि मोरेटोरियम की सुविधा लेने वाले किसी भी लोन पर ब्याज पर ब्याज नहीं वसूली जा सकती है.
सूत्रों की मानें तो सुप्रीम कोर्ट के ब्याज पर ब्याज नहीं लेने के फैसले से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSBs) पर 1800 से 2000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. हालांकि कोर्ट ने ब्याज को पूरी तरह से माफ नहीं करने का फैसला देकर बैंकों को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने कहा कि वह आर्थिक नीतियों में दखल नहीं दे सकता.
जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की बेंच ने यह फैसला सुनाया था. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वह इकोनॉमिक पॉलिसी मामलों में दखल नहीं दे सकता. वह यह तय नहीं करेगा कि कोई पॉलिसी सही है या नहीं. कोर्ट केवल यह तय कर सकता है कि कोई पॉलिसी कानून सम्मत है या नहीं.
बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक, मोरेटोरियम की शुरुआत में करीब 60% ग्राहकों ने इस सुविधा का लाभ उठाया था. लेकिन लॉकडाउन में छूट के साथ ही मोरेटोरियम लेने वालों की संख्या घटकर 40% रह गई थी. जबकि 25% कॉरपोरेट ने लोन मोरेटोरियम की सुविधा का लाभ लिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के पक्ष को समझते हुए कहा कि कोरोना महामारी से सिर्फ कंपनियों को ही नहीं, सरकार को भी नुकसान हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सरकार और रिजर्व बैंक पर और दबाव नहीं बना सकता.
सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार बैंकों को मोरेटोरियम सुविधा की अवधि की ब्याज पर ब्याज की छूट देनी होगी. ऐसे में एक अनुमान के मुताबिक बैंकों पर करीब 2000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा. कोविड-19 के आर्थिक प्रभाव से निपटने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मार्च से अगस्त 2020 के दौरान मोरेटोरियम की सुविधा दी थी.
साल 2020 में मार्च-अगस्त के दौरान मोरेटोरियम योजना का लाभ बड़ी संख्या में लोगों ने लिया, लेकिन उनकी शिकायत थी कि अब बैंक बकाया राशि पर ब्याज के ऊपर ब्याज लगा रहे हैं. यहीं से मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. जिसपर कोर्ट ने ब्याज पर ब्याज नहीं लेने का फैसला सुनाया. सरकार के इस प्रस्ताव में 2 करोड़ रुपए तक के MSME लोन, एजुकेशन लोन, होम लोन, क्रेडिट कार्ड बकाया, कार-टू व्हीलर लोन और पर्सनल लोन शामिल हैं.