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12 साल में पहली बार अमेरिका को तगड़ा झटका, फिच ने रेटिंग पर चलाई कैंची!

फिच ने अमेरिका की रेटिंग को AAA से घटाकर AA+ कर दिया है. यानी अब अमेरिका के पाले में फिच की तरफ से दी जाने वाली टॉप रेटिंग नहीं है. 12 साल यानी 2011 के बाद अमेरिका की रेटिंग को पहली बार किसी रेटिंग एजेंसी ने घटाया है.

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संकट में अमेरिकी अर्थव्यवस्था
संकट में अमेरिकी अर्थव्यवस्था

जिस अमेरिका की इकोनॉमी का परचम दुनियाभर में लहराता है, जिसके शेयर मार्केट (Share Market) की चाल देखकर तमाम देशों के शेयर बाजारों की चाल तय होती है, जिस अमेरिका की ताकत उसकी शक्तिशाली अर्थव्यवस्था (Economy) है, अब उसपर से दुनिया की दिग्गज रेटिंग एजेंसी फिच (Fitch) का भरोसा डगमगा गया है. फिच ने अमेरिका की रेटिंग को AAA से घटाकर AA+ कर दिया है. यानी अब अमेरिका के पाले में फिच की तरफ से दी जाने वाली टॉप रेटिंग नहीं है. 12 साल यानी 2011 के बाद अमेरिका की रेटिंग को पहली बार किसी रेटिंग एजेंसी ने घटाया है. फिच ने ये कदम अमेरिका के कमजोर होते फाइनेंशियल हालात और बढ़ते कर्ज को देखकर उठाया है. 

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क्यों घटी अमेरिका की रेटिंग?
दुनिया की तीन बड़ी स्वतंत्र एजेंसियों में शामिल फिच का कहना है कि अमेरिका में बीते 20 साल में गवर्नेंस के हालात काफी खराब हुए हैं. फिच की तरफ से दी जाने वाली रेटिंग की दुनियाभर में मान्यता है. ये देशों के साथ-साथ अलग अलग कंपनियों की क्रेडिट साख का भी आकलन करती है. लेकिन फिच के इस आकलन को अमेरिकी वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने मनमानी करार दिया है. येलेन ने कहा है कि एजेंसी ने 2018 से 2020 के पुराने डेटा के आधार पर ये रेटिंग दी है जो मौजूदा हालात को बयान नहीं करती है. 

निवेशकों के लिए रेटिंग महत्वपूर्ण
रेटिंग्स के घटने का असर सबसे पहले निवेशकों के फैसलों पर होता है. ये निवेशक क्रेडिट रेटिंग्स को बेंचमार्क मानते हैं क्योंकि इसी से ये अनुमान लगाया जाता है कि किसी कंपनी या सरकार के इंस्ट्रूमेंट्स में पैसा लगाना कितना सुरक्षित या कितना जोखिम भरा है. ऐसे में रेटिंग घटना अमेरिका के लिए बुरी खबर है, क्योंकि अमेरिकी सरकार के इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश को सबसे सुरक्षित माना जाता है. इसकी वजह अमेरिका की अर्थव्यवस्था के बड़े आकार के साथ ही इसमें दूसरे देशों के मुकाबले ज्यादा स्थिरता होना है.

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इस साल अमेरिका पर मंडराया था डिफॉल्ट का संकट!
फिच की इस रेटिंग घटाने की एक वजह अमेरिका में डेट सीलिंग पर चली असमंजस की स्थिति भी थी. दरअसल, इस साल सरकार की उधारी को लेकर भारी राजनीतिक गतिरोध देखने को मिला था. जून में अमेरिकी सरकार डेट सीलिंग को बढ़ाकर 31.4 ट्रिलियन डॉलर करने में कामयाब रही थी. लेकिन उससे पहले भारी राजनीतिक ड्रामा भी देखने को मिला था. इसी वजह से अमेरिका पहली बार डिफॉल्ट होने के कगार पर पहुंच गया था. फिच का कहना है कि डेट सीलिंग बढ़ाने को लेकर बार-बार पैदा हो रहीं राजनीतिक अड़चनों से अमेरिका के वित्तीय प्रबंधन की क्षमता को लेकर दुनिया का भरोसा डगमगा रहा है. 2023 में अमेरिका का घाटा जीडीपी के 6.3 प्रतिशत पहुंचने की आशंका है जो 2022 में 3.7 प्रतिशत था. साथ ही डेट टु जीडीपी रेश्यो भी बढ़ने की आशंका है. बढ़ती ब्याज दरों की वजह से ब्याज पहले ही महंगा हो गया है. 2017 में किए गए टैक्स कट्स की मियाद 2025 में पूरी हो रही है जिससे आगे दबाव बढ़ने की आशंका है.

अमेरिकी रेटिंग घटने से मचेगी हलचल!
अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग घटाने का फिच का ये फैसला सबसे पहले तो मॉर्गेज रेट्स पर असर डाल सकता है. इससे निवेशक अमेरिकी ट्रेजरीज की बिक्री कर सकते हैं जिससे यील्ड में बढ़ोतरी होगी और सबकुछ महंगा होने की आशंका है. कई तरह के कर्जों की ब्याज दर इसी के आधार पर तय की जाती है. फिच के रेटिंग घटाने के बाद अमेरिका स्विट्जरलैंड और जर्मनी से नीचे आ गया है. वहीं अब ये रेटिंग के लिहाज से ऑस्ट्रिया और फिनलैंड के बराबर हो गया है. इसके पहले 2011 में एसएंडपी ने भी अमेरिका की रेटिंग को परफेक्ट क्रेडिट रेटिंग AAA से घटाकर AA+ कर दिया था जो तबसे इसी स्तर पर बरकरार है. 

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महंगा ब्याज बढ़ाएगा रेटिंग्स पर दबाव!
फिच ने आगे के लिए अनुमान जताकर कहा है कि फेड रिजर्व सितंबर में ब्याज दरों में एक और बढ़ोतरी कर सकता है. अगर ऐसा हुआ तो फिर रेटिंग्स पर दबाव बढ़ सकता है. इसके साथ ही फिच ने आगाह किया है कि अगर सरकार खर्च से जुड़े मुद्दों और मैक्रोइकनॉमिक पॉलिसी का समाधान करने में नाकाम रही तो आने वाले दिनों में देश की रेटिंग को और कम किया जा सकता है. अमेरिका का कर्ज संकट भी लगातार बढ़ता जा रहा है और आशंका है कि 2033 तक देश का कुल कर्ज बढ़कर जीडीपी का 118 प्रतिशत हो जाएगा जो फिलहाल 98 प्रतिशत है.

 

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