RBI Annual Report: रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट (RBI Report) से पता चला है कि कोरोना के बुरे प्रभावों के बाद भी बैंकों की एसेट क्वालिटी (Asset Quality) सुधर गई है. यह बैंकों के ग्रॉस एनपीए (Gross NPA) में लगातार कमी आने से हुआ है. हालांकि जब आंकड़ों पर गौर करें तो कुछ अलग बात निकलकर सामने आती है. एसेट क्वालिटी में आए इस सुधार का कारण फंसे लोन की बढ़ी रिकवरी (Bad Loan Recovery) नहीं बल्कि इन्हें बही-खाते से पूरी तरह निकाल देना (Write-Off) है.
छह साल के निचले स्तर पर ग्रॉस एनपीए
इस सप्ताह जारी रिजर्व बैंक की वित्त वर्ष 2020-21 (FY21) की सालाना रिपोर्ट के अनुसार, ग्रॉस एनपीए का अनुपात (Gross NPA Ratio) इधर कुछ सालों में लगातार कम हुआ है. यह अनुपात वित्त वर्ष 2019-20 (FY20) के अंत में यानी मार्च 2020 में 8.2 फीसदी था, जो साल भर बाद मार्च 2021 में कम होकर 7.3 फीसदी पर आ गया. यह सितंबर 2021 तक और कम होकर 6.9 फीसदी पर आ गया. बैंकों के ग्रॉस एनपीए में 2018 के बाद लगातार कमी आ रही है. यह करीब छह साल के सबसे निचले स्तर पर आ चुका है.
आंकड़ों की बाजीगरी से साफ हुआ लोन बुक
आरबीआई की Report on Trend and Progress of Banking in India की रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रॉस एनपीए में कमी आने का मुख्य कारण लोन को राइट-ऑफ किया जाना है. एब्सॉल्यूट टर्म में देखें तो ग्रॉस एनपीए मार्च 2020 में 8,99,803 करोड़ रुपये था, जो मार्च 2021 में कम होकर 8,37,771 करोड़ रुपये पर आ गया. इस दौरान एनपीए में 4 लाख करोड़ की भारी-भरकम तेजी आई, लेकिन दूसरी ओर बैंकों ने रिकॉर्ड 2.08 लाख करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को राइट-ऑफ भी किया.
राइट ऑफ हुए लोन में सरकारी बैंकों का इतना योगदान
2020-21 के दौरान राइट ऑफ किए गए लोन में टॉप5 सरकारी बैंकों का हिस्सा ही 89,686 करोड़ रुपये रहा. इनमें एसबीआई (SBI) ने 34,402 करोड़ रुपये, यूनियन बैंक (UBI) ने 16,983 करोड़ रुपये, पंजाब नेशनल बैंक (PNB) ने 15,877 करोड़ रुपये और बैंक ऑफ बड़ौदा (BoB) ने 14,782 करोड़ रुपये के फंसे कर्ज को राइट-ऑफ किया. राइट ऑफ किए गए कुल लोन में सरकारी बैंकों (PSB) का हिस्सा करीब 75 फीसदी रहा. पिछले 10 साल का आंकड़ा देखें तो राइट-ऑफ किए गए कर्ज 10.72 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच जाते हैं. आरबीआई ने यह जानकारी इसी साल एक आरटीआई के जवाब में दी थी.
क्या होता है राइट-ऑफ?
किसी कर्ज को राइट-ऑफ करने का मतलब होता है कि बैंक उसे वसूल करने की हरसंभव कोशिश कर चुके हैं और अब रिकवरी की संभावनाएं न के बराबर हैं. जब ऐसे कर्ज को राइट-ऑफ कर दिया जाता है तो वह बैंक के बट्टे खाते में चला जाता है यानी हिसाब-किताब से बाहर हो जाता है. इससे बैंकों का ग्रॉस-एनपीए वाला हिस्सा बही-खाते में कम तो हो जाता है, लेकिन कर्ज डूबने में कोई कमी नहीं आती है. कायदे बताते हैं कि किसी लोन को राइट-ऑफ कर दिए जाने का मतलब यह नहीं होता कि उसकी वसूली के प्रयास नहीं किए जाएंगे, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि ऐसे प्रयास खोजने पर भी नहीं मिल पाते हैं.