रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कॉरपोरेट घरानों को बैंक स्थापित करने की मंजूरी देने की सिफारिश की आलोचना की है. दोनों का कहना है कि आज के हालात में यह निर्णय चौंकाने वाला और बुरा विचार है. राजन और आचार्य ने एक संयुक्त लेख में यह कहा कि इस प्रस्ताव को अभी छोड़ देना बेहतर है.
क्या है मामला
गौरतलब है कि रिजर्व बैंक के द्वारा गठित एक आंतरिक कार्य समूह (IWG) ने पिछले हफ्ते कई सुझाव दिए थे. भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा गठित इंटरनल वर्किंग ग्रुप ने बैंकिंग नियमन कानून में जरूरी संशोधन के बाद बड़ी कंपनियों को बैंकों का प्रमोटर बनने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है. यही नहीं, वर्किंग ग्रुप ने बड़ी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) को बैंकों में तब्दील करने का भी प्रस्ताव दिया है. RBI इस रिपोर्ट के आधार पर अंतिम गाइडलाइंस जारी करेगा.
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क्या हैं बड़े प्रस्ताव
इन सिफारिशों में सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसे गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFC) को बैंकिंग लाइसेंस देने की वकालत की गई है, जिनका एसेट 50,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है और जिनका कम से कम 10 साल का ट्रैक रिकॉर्ड है और साथ ही बड़े औद्योगिक घरानों को भी बैंक चलाने की अनुमति दी जा सकती है.
क्यों हो रही आलोचना
रिजर्व बैंक की समिति की सिफारिशें आने के साथ ही बहस भी शुरू हो गई है. राजन और आचार्य ने एक संयुक्त लेख में यह कहा कि इस प्रस्ताव को अभी छोड़ देना बेहतर है. लेख में कहा गया है, बैंकिंग का इतिहास बेहद त्रासद रहा है. जब बैंक का मालिक कर्जदार ही होगा, तो ऐसे में बैंक अच्छा ऋण कैसे दे पाएगा? जब एक स्वतंत्र व प्रतिबद्ध नियामक के पास दुनिया भर की सूचनाएं होती हैं, तब भी उसके लिये फंसे कर्ज वितरण पर रोक लगाने के लिये हर कहीं नजर रख पाना मुश्किल होता है.
लेख रिजर्व बैंक के कार्य समूह के प्रस्ताव की ओर इशारा करते हुए कहा गया इसमें कहा गया है कि बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में उतरने की मंजूरी दी जाए. भले ही यह प्रस्ताव कई शर्तों के साथ है, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता है: ऐसा अभी क्यों? यह आलेख रघुराम राजन के लिंक्डइन प्रोफाइल पर सोमवार को पोस्ट किया गया.