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ज्यादा EMI भरने को रहें तैयार, आरबीआई फिर बढ़ा सकता है Repo Rate!

Repo Rate वह दर होती है, जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है. यह एक बेंचमार्क होता है, जिसके आधार पर बैंक आम लोगों को दिए जाने वाले लोन की ब्याज दरें तय करते हैं. जब आरबीआई से बैंकों को कर्ज ज्‍यादा दर पर मिलता है, यानी रेपो रेट बढ़ता है, तो आम आदमी के लिए भी सभी तरह के लोन महंगे हो जाते हैं.

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आरबीआई फिर बढ़ा सकता है Repo Rate
आरबीआई फिर बढ़ा सकता है Repo Rate

देश में खुदरा महंगाई (Retail Inflation) एक बार फिर 7 फीसदी पर पहुंच गई है. खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी के चलते इसमें इजाफा देखने को मिला है. ऐसे में महंगाई को काबू में करने के लिए आरबीआई रेपो रेट (Repo Rate) में एक और बड़ा इजाफा कर सकता है. अगर ऐसा होता है, तो बैंक फिर अपने लोन (Loan) महंगे कर सकते हैं. इसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ेगा और आपके लोन की ईएमआई (EMI) बढ़ जाएगी. अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि RBI रेपो दर में 50 आधार अंकों यानी 0.50 फीसदी तक की वृद्धि कर सकता है. 

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50 बीपीएस तक बढ़ सकती है दर
बढ़ती महंगाई (Inflation) के बीच अर्थशास्त्रियों ने अनुमान जताया है कि इसे काबू में लाने के लिए रिजर्व बैंक (RBI) एक बार फिर से कड़ा कदम उठा सकता है. इसके तहत इस महीने के अंत में रेपो रेट (Repo Rate) में एक और बड़ी वृद्धि देखने को मिल सकती है. बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इकोनोमिस्ट्स को उम्मीद है कि नीतिगत दरों में 35 से 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की जा सकती है. यह इस साल की तीसरी वृद्धि होगी. नोमुरा (Nomura) और मॉर्गन स्टेनली (Morgan Stanley) ने भी अपनी रिपोर्टों में रेपो रेट में 35 बीपीएस का इजाफा होने का अनुमान लगाया है.

रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति की अगली बैठक इस महीने के अंत में होने वाली है. रिजर्व बैंक एमपीसी की यह बैठक 28 सितंबर को शुरू होगी और 30 सितंबर को गवर्नर शक्तिकांत दास बैठक में लिए गए फैसलों की जानकारी देंगे.

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आरबीआई के लक्ष्य से ऊपर महंगाई
बात करें देश में महंगाई की, तो Retail Inflation लगतार आठवें महीने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के तय लक्ष्य सीमा से ऊपर बनी हुई है. बीते सोमवार को जारी किए गए खुदरा महंगाई के आंकड़ों को देखें तो अगस्त में यह एक बार फिर से 7 फीसदी पर पहुंच गई है. इससे पहले जुलाई महीने में खुदरा महंगाई में कमी दर्ज की गई थी और यह 6.71 फीसदी पर आ गई थी. वहीं जून में यह 7.01 फीसदी, मई में 7.04 फीसदी और अप्रैल में 7.79 फीसदी रही थी. सरकार ने महंगाई दर को दो से 6 फीसदी के दायरे में रखने का लक्ष्य निर्धारित किया है, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी महंगाई इससे ऊपर बनी हुई है. 

खाद्य वस्तुओं की कीमतों का असर
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के आंकड़ों के अनुसार, खाद्य वस्तुओं (Food Product) की महंगाई दर अगस्त में 7.62 फीसदी रही, जो कि जुलाई में 6.69 फीसदी पर थी. पिछले साल की समान अवधि में फूड प्रोडक्ट पर महंगाई दर 3.11 फीसदी थी. सबसे ज्यादा महंगाई सब्जी, मसालों, फुटवियर और ईंधन-बिजली सेक्टर में दिखाई दी है. ऐसे में बढ़ती महंगाई को काबू में करने लिए आरबीआई की ओर से रेपो रेट में इजाफे का एक और कदम उठाने की आशंका बढ़ गई है. 

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बढ़कर यहां पहुंच जाएगा Repo Rate    
जैसा कि अर्थशास्त्रियों का अनुमान है, उसके मुताबिक अगर रेपो रेट में 50 आधार अंकों या 0.50 फीसदी की तेज वृद्धि होती है, तो फिर नीतिगत दर बढ़कर 5.9 फीसदी पर पहुंच जाएगी. गौरतलब है कि मई और जून के बाद अगस्त बैठक में भी रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (RBI MPC August 2022 Meet) ने पॉलिसी रेपो रेट को बढ़ाने का निर्णय लिया था. इस तरह पिछले 5 महीने में अब तक रेपो रेट 1.40 फीसदी तक बढ़ चुका है और फिलहाल 5.40 फीसदी हो चुका है. विशेषज्ञों की मानें तो मुख्य रूप से उच्च खाद्य कीमतों के कारण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) द्वारा मापी गई मुद्रास्फीति में निरंतर वृद्धि के चलते यह जरूरी हो गया है.

अर्थशास्त्रियों ने कही ये बड़ी बात
ड्यूश बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक दास का कहना है, अब हम उम्मीद करते हैं कि सितंबर के बाद दिसंबर 2022 और फरवरी 2023 में रेपो रेट में 25 बीपीएस की दो और बढ़ोतरी देखने को मिल सकती हैं. वहीं भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष की मानें तो सितंबर में रेपो दर को 35-50 बीपीएस के बीच बढ़ाए जाने का अनुमान है, लेकिन इस महीने के बाद मुद्रास्फीति में कमी आ सकती है. अगर ऐसा होता है, तो विभिन्न बैंक फिर से अपने कर्ज की दरों में बढ़ोतरी कर आम आदमी की जेब पर बोझ बढ़ा सकते हैं. 

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रेपो दर को इस तरह समझें 
रेपो दर का सीधा संबंध बैंक से लिए जाने वाले लोन और ईएमआई से है. दरअसल, रेपो रेट वह दर होती है जिस पर आरबीआई बैंकों को कर्ज देता है, जबकि रिवर्स रेपो रेट उस दर को कहते हैं जिस दर पर बैंकों को आरबीआई पैसा रखने पर ब्याज देती है. रेपो रेट के कम होने से लोन की ईएमआई घट जाती है, जबकि रेपो रेट में बढ़ोतरी से कर्ज महंगा हो जाता है. दूसरे शब्दों में कहें तो रेपो रेट एक तरह का बेंचमार्क होता है, जिसके आधार पर अन्‍य बैंक आम लोगों को दिए जाने वाले लोन के इंटरेस्‍ट रेट तय करती है. जब बैंकों को कर्ज ज्‍यादा ब्‍याज दर पर मिलता है, यानी रेपो रेट बढ़ता है, तो आम आदमी के लिए भी होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन महंगा हो जाता है और उनकी EMI बढ़ जाती है. 


 

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