विश्व भर की चुनिंदा अर्थव्यवस्थाओं के शेयर बाजार का मूड, बढ़ती कीमतें, जंग से जूझती दुनिया. ये ऐसे संकेतक हैं जो मंदी का इशारा करते हैं. इसी बीच अमेरिका में ट्रंप की आमद ने टैरिफ वॉर का नया दौर शुरू कर दिया है. मंदी की चर्चा होते ही लोगों को याद आती है 1929 की महामंदी.
पहले विश्व युद्ध के बाद आई इस मंदी ने दुनिया की आर्थिक कमर तोड़ दी थी.
जब मंदी की चर्चा होती है तो रिसेशन, डिप्रेशन, स्टैगनेशन जैसे शब्द खूब सुनने को मिलते हैं. आइए समझते हैं कि ये शब्द क्या है?
Recession या मंदी
मंदी एक ऐसी आर्थिक स्थिति है जिसमें किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों (6 महीने) तक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में गिरावट दर्ज की जाती है. यह अर्थव्यवस्था में सामान्य मंदी की स्थिति को दर्शाता है. ये ऐसी स्थिति होती है जब GDP में गिरावट होती है, बेरोजगारी में वृद्धि होती है. लोग खर्चे कम कर देते हैं और निवेश कम हो जाता है, कंपनियों के मुनाफे में कमी होती है. शेयर बाजार में लगातार गिरावट की स्थिति होती है.
अगर हाल की बात करें तो पिछले चार दशकों में 1990 के मध्य में, 1980 की दशक के शुरुआत में, 2008 में आई आर्थिक शिथिलता मंदी के दायरे में आती है. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष मंदी के कई कारण बताता है जैसे बुनियादी चीजों के दाम में भारी इजाफा, उदाहरण के लिए कच्चा तेल, वित्तीय बाजार की हलचलें, जैसे 2008 का लेहमान ब्रदर्स संकट.
मंदी आमतौर पर चक्रीय होती है और यह आर्थिक चक्र (Business Cycle) का एक हिस्सा है. यह कुछ महीनों से लेकर 1-2 साल तक चल सकती है. 2008 की वैश्विक वित्तीय मंदी जो अमेरिका में सबप्राइम मॉर्गेज संकट से शुरू हुई और पूरी दुनिया में फैल गई.
भारत में भी COVID-19 महामारी के दौरान 2020 में तकनीकी मंदी देखी गई, जब लगातार दो तिमाहियों तक GDP में गिरावट दर्ज की गई.
Depression या अवसाद
अवसाद एक गंभीर और लंबे समय तक चलने वाली मंदी है, जिसमें अर्थव्यवस्था में गहरी गिरावट और व्यापक आर्थिक संकट देखा जाता है. यह मंदी की तुलना में अधिक गंभीर और लंबी अवधि तक चलने वाली स्थिति है, जिसमें GDP में भारी गिरावट, उच्च बेरोजगारी, और सामाजिक अस्थिरता शामिल हो सकती है.
इस स्थिति में GDP में 10% या उससे अधिक की गिरावट हो सकती है. बेरोजगारी दर छलांग लगाती है और 20-30% तक पहुंच जाती है. बैंकों और व्यवसाय अपना धंधा जारी नहीं रख पाते हैं और बड़ी संख्या में दिवालियेपन की नौबत आ जाती है.
आय की कमी से जूझ रहे उपभोक्ता खर्चे में कमी कर देते हैं. इस दौरान देश में सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिलती है और कई सरकारें तो गिर जाती हैं.
1929-1939 की "महामंदी (Great Depression)" इसी कैटेगरी का आर्थिक संकट था. जो अमेरिका और यूरोप से शुरू हुआ और पूरी दुनिया को प्रभावित किया. इस दौरान अमेरिका की GDP में 30% की गिरावट आई और बेरोजगारी दर 25% तक पहुंच गई थी.
भारत में ऐसी गंभीर स्थिति अब तक नहीं देखी गई है, लेकिन वैश्विक अवसाद का भारत पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता जरूर है.
डिप्रेशन की वजह युद्ध, भयानक महामारी, शेयर बाजार में भारी गिरावट जैसे अभूतपूर्व संकट हैं.
Stagnation या ठहराव
Stagnation या ठहराव आर्थिक चक्र की एक ऐसी स्थिति है जिसमें अर्थव्यवस्था में विकास दर बहुत धीमी या न के बराबर होती है, लेकिन इसमें मंदी जैसी गिरावट नहीं देखी जाती.
यह स्थिति आमतौर पर उच्च बेरोजगारी और कम मुद्रास्फीति (या कभी-कभी "मुद्रास्फीति के साथ ठहराव", जिसे Stagflation कहते हैं) के साथ जुड़ी होती है. इस फेज में GDP वृद्धि दर बहुत कम या स्थिर होती है. बेरोजगारी दर उच्च स्तर पर बनी रहती है. उत्पादकता में कमी और नवाचार नहीं देखने को मिलता है.
ठहराव आमतौर पर लंबे समय तक चल सकता है और अर्थव्यवस्था को "जड़ता" की स्थिति में ले जाता है. हालांकि यह स्थिति मंदी से अलग है, क्योंकि इसमें सक्रिय गिरावट नहीं होती, लेकिन विकास भी नहीं होता है.
Trumpsession
TRUMPSESSION एक ऐसा शब्द है जो आधिकारिक आर्थिक शब्दावली का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह एक अनौपचारिक या नवनिर्मित शब्द है. यह शब्द डोनाल्ड ट्रंप और "recession" (मंदी) को मिलाकर बनाया गया है, जिसका अर्थ है "ट्रंप से जुड़ी मंदी" या "ट्रंप की नीतियों के कारण होने वाली मंदी". यह शब्द मुख्य रूप से ट्रंप की आर्थिक नीतियों, विशेष रूप से उनके टैरिफ वॉर और अन्य नीतियों के प्रभावों को लेकर चर्चा में आया है.