अमेरिकी डॉलर (Dollar) के मुकाबले भारतीय मुद्रा रुपया (Rupee) में गिरावट का सिलसिला बीते काफी दिनों से जारी है और यह लगातार नए निचले स्तर को छूता जा रहा है. विशेषज्ञों ने इसके 82 रुपये तक टूटने का अनुमान जताया है. हम आपको बता रहे हैं रुपये में गिरावट के बड़े कारण और किस तरह यह आम आदमी के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है?
बुधवार को 9 पैसे टूटकर खुला रुपया
भारतीय मुद्रा (Indian Currency) रुपये में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही है. बुधवार को रुपया शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 9 पैसे गिरकर 79.04 पर आ गया. इससे पिछले कारोबारी सत्र मंगलवार को इसमें बड़ी गिरावट देखने को मिली थी और यह 79.36 के स्तर पर बंद हुआ था, जो कि रुपये का रिकॉर्ड निचला स्तर था. ब्रोकरेज फर्म नोमुरा ने इस वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में डॉलर के मुकाबले रुपये के 82 के स्तर तक टूटने का अनुमान जताया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि करंट अकाउंट डेफिसिट बढ़ने और विदेशी निवेशकों (FII) की बिकवाली से इस पर दबाव और बढ़ने वाला है.
रुपये में गिरावट के बड़े कारण
यह डॉलर के मुकाबले फिसलकर 77.78 तक पहुंच चुका था. इसके टूटने के कई कारण हैं, जिनमें अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US FED) की 50-आधार-बिंदु दर वृद्धि और आने वाले महीनों में और अधिक दरों में बढ़ोतरी के संकेत को बड़ा कारण माना जा रहा है. इसके अलावा विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजारों से लगातार बिकवाली करना भी इसके गिरने की बड़ी वजह है. जबकि, रूस और यूक्रेन के बीच लंबा खिंचता युद्ध और उससे उपजे भू-राजनैतिक हालातों ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाया है.
विदेशी निवेशकों का बड़ा असर
विशेषज्ञों की मानें तो वर्तमान में जो हालात हैं उनमें मंदी (Recession) के डर से वैश्विक बाजारों (Global Market) में कोहराम मचा हुआ है. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जब उथल-पुथल मचती है, तो निवेशक (Investors) डॉलर की ओर अपना रुख करते हैं. डॉलर की मांग बढ़ती है तो फिर अन्य करेंसियों पर दबाव बढ़ जाता है. इसके अलावा कोरोना महामारी (Covid-19) और रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) में लंबे खिच रहे युद्ध की वजह से आपूर्ति में रुकावट आई है, जो कि दुनियाभर में अव्यवस्था पैदा करने वाली है. जब अनिश्चितता का समय होता है तो लोग सुरक्षित ठिकाना खोजते हैं और डॉलर की ओर आकर्षित होते हैं. विदेशी निवेशकों (FII) की बिकवाली से विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है और डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जबकि रुपये की मांग कम हो जाती है.
देश में Import पर होगा ज्यादा खर्च
गौरतलब है कि भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर है. अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता और इनका अधिकतर कारोबार डॉलर में होता है. अगर रुपये में इसी तरह गिरावट जारी रही तो देश में आयात महंगा हो जाएगा. विदेशों से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय है, मतलब मोबाइल और अन्य गैजेट्स पर महंगाई बढ़ेगी और आपको ज्यादा खर्च करना होगा.
Inflation बढ़ाने में रुपये की भूमिका
भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल (Crude Oil) विदेशों से खरीदता है और इसका भुगतान डॉलर में होता है. डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च करना होगा. इससे माल ढुलाई महंगी होगी, जिसके चलते हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी. यानी रुपये के टूटने से कई क्षेत्रों में बड़ा असर देखने को मिल सकता है. इसमें तेल की कीमतों से लेकर रोजमर्रा के सामनों की कीमतों में इजाफा दिखाई देगा.