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रूस-यूक्रेन संघर्ष (Russia-Ukraine conflict) अभी भी जारी है. लंबे समय तक खिंचे इस युद्ध ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया है और विश्व व्यापार (Global Business) पर इसका सीधा असर पड़ा है. सबसे तेजी से बढ़ती इकोनॉमी भारत भी इससे अछूता नहीं है. देश के आयात-निर्यात (India's Export-Import) के आंकड़े बदले हैं और बजट 2023 से पहले पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में भी आने वाले समय में इसके पड़ने वाले प्रभाव पर चिंता जताई गई थी.
वैश्विक मंदी में रूस-यूक्रेन युद्ध का रोल
रूस-यूक्रेन युद्ध वैश्विक स्तर पर मंदी (Global Recession) के खतरे में इजाफा करने के लिए का एक महत्वपूर्ण कारक साबित हुआ है. सप्लाई चेन में रुकावट और ग्लोबल डिमांड कमजोर होने का खामियाजा सभी देशों को भुगतना पड़ रहा है. विश्व व्यापार संगठन ने भी अनुमान जाहिर किया है कि 2023 में वैश्विक व्यापार में केवल एक फीसदी की वृद्धि होगी, जो 2022 की तुलना में कम है. अब सवाल ये कि क्या वैश्विक मंदी ने भारत के विदेशी व्यापार को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया है? आइए समझते हैं...
आंकड़ों पर दिख रहा युद्ध का असर
कमोडिटी की कीमतों (Comodity Price) में वैश्विक गिरावट ने दिसंबर 2022 के लिए भारत के निर्यात और आयात के आंकड़ों को प्रभावित किया. दिसंबर 2022 तक भारत का आयात (India's Import) 3.5 फीसदी कम आंका गया था. वहीं दूसरी ओर निर्यात (Export) भी पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 12.2 फीसदी कम दर्ज किया गया था. एक ओर जहां सोना, चांदी और इलेक्ट्रॉनिक सामान जैसी वस्तुओं के आयात में गिरावट आई, तो निर्यात किए जाने वाले पेट्रोलियम, रत्न और आभूषण समेत इंजीनियरिंग सामान सहित 30 प्रमुख सेक्टर्स में से 19 में एक साल पहले की तुलना में कमी दर्ज की गई.
ग्लोबल मंदी का वैश्विक बाजार पर असर
जैसा कि वैश्विक बाजार मंदी (Recession In Global Market) की चपेट में हैं और तमाम वस्तुओं की अंतरराष्ट्रीय कीमतें भारत के व्यापार संतुलन को आकार देती हैं और निकट भविष्य में घरेलू अर्थव्यवस्था का निर्धारण भी करती हैं. ग्लोबल डिमांड में कमी, कड़े वित्तीय उपायों और रूस-यूक्रेन के बीच जारी संघर्ष से पैदा हुए अनिश्चित भू-राजनीतिक हालातों ने भारत की व्यापार गतिशीलता को आकार देना शुरू कर दिया है. इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2022 की दूसरी छमाही में ऊर्जा की कीमतों में तेजी से गिरावट आई है और दिसंबर में रूस भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता बन गया, इसके बाद इराक और सऊदी अरब का स्थान रहा है.
रूस बना तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता
भारत, दुनिया में सबसे तेजी से आगे बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था (Indian Economy) है और अधिक ऊर्जा और क्रूड ऑयल समेत अन्य सामानों की डिमांड करती है. जरूरत का अधिकांश हिस्सा (लगभग 85 फीसदी) आयात किया जाता है. रूस-यूक्रेन संघर्ष से पहले भारतीय क्रूड बास्केट का 60 फीसदी से अधिक मध्य-पूर्वी क्रूड से आयात किया जाता था. जबकि बाकी उत्तरी अमेरिका (14 फीसदी) पश्चिम अफ्रीकी (12 फीसदी ), लैटिन अमेरिका (5 फीसदी) और रूसी क्रूड का हिस्सा केवल एक फीसदी था. युद्ध के जोर पकड़ने के बाद भी भारत, रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखे हुए है. यही नहीं रूस दिसंबर में भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता बन गया.
वैश्विक बाजार में भारत की भूमिका अहम
S&P ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस ग्लोबल ट्रेड एनालिटिक्स सूट फोरकास्टिंग डेटा वैश्विक व्यापार में भारत की बढ़ती भूमिका को प्रदर्शित करता है. इसके मुताबिक, 2005 और 2021 के बीच, भारत के निर्यात के मूल्य में 279.5 फीसदी की वृद्धि हुई. वहीं आयात में 301.6 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया. अमेरिका, यूएई और भूमि चीन से 2021 में भारत के व्यापार का करीब 30 फीसदी हिस्सा संबंधित था. अप्रैल-दिसंबर 2022 में अमेरिका को भारत का निर्यात सबसे अधिक 59.6 अरब अमरीकी डॉलर था. इसके बाद यूएई, नीदरलैंड, बांग्लादेश और सिंगापुर का नाम आता है.
आयात-निर्यात में ये बदलाव
वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो दिसंबर 2022 में भारत का आयात पिछले साल की समान अवधि में 60.3 बिलियन डॉलर के मुकाबले कम होकर 58.2 अरब डॉलर रहा. यानी सालाना आधार पर इसमें 3.5 फीसदी की गिरावट आई. इसके लिए सबसे बड़ी जिम्मेदार सोने और चांदी के आयात में भारी गिरावट रही. ये घटकर 1.3 अरब डॉलर रह गया है, जो साल-दर-साल 73 फीसदी की कमी को दर्शाता है. अप्रैल-दिसंबर 2022 के आंकड़ों के मुताबिक, चीन भारत का शीर्ष आयात स्रोत रहा था. पड़ोसी मुल्क से आयात करीब 12 फीसदी इजाफे के साथ बढ़कर 75.87 अरब डॉलर हो गया. निर्यात की बात करें तो भारत ने दिसंबर 2022 में माल निर्यात से 34.5 अरब डॉलर की कमाई की थी, जो पिछले 13 महीनों में दूसरी सबसे कम निर्यात आय थी.
इकोनॉमिक सर्वे में जताई थी चिंता
संसद में बजट-2023 (Budget-2023) पेश किए जाने से एक दिन पहले सामने रखे गए आर्थिक सर्वेक्षण (Economic Survey) में भी विदेशी व्यापार, मंदी के साये को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी. इसमें कहा गया था कि यदि ग्लोबल इकोनॉमी रफ्तार नहीं पकड़ती है, तो फिर अगले वित्तीय वर्ष 2023-24 में निर्यात की गति भी और धीमी हो जाएगी. सर्वे में आशंका जाहिर की गई थी कि निर्यात वृद्धि चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में ज्यादा धीमी हो सकती है और वैश्विक मंदी के खतरे के बीच इसमें आगे भी कमजोरी रहने की संभावना है.