महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार ने शनिवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की. करीब 50 मिनट चली इस बैठक में पवार ने नए बने सहकारिता मंत्रालय से जुड़ी अपनी चिंताओं को रखा.
इसके अलावा उन्होंने को-ओपरेटिव बैंकों के परिचालन में RBI के बढ़ते दखल को लेकर भी मोदी से बात की. इस मामले में शरद पवार का 17 जुलाई का एक पत्र भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने सहकारी बैंकों से जुड़े विभिन्न मुद्दों को रखा है.
को-ऑपरेटिव सोसायटी बनाना संवैधानिक अधिकार
शरद पवार ने अपनी चिट्ठी में लिखा कि ‘सहकारी संस्था’ शब्द का जिक्र संविधान के अनुच्छेद- 19 (1)(c) में किया गया है. इसे संविधान में 97वां संशोधन कर जोड़ा गया. इससे देश के सभी नागरिकों को सहकारी संस्था बनाने का अधिकार मिला.
वहीं लोगों के बीच सहकारी संस्थानों को लेकर भरोसा बढ़े. इसके लिए संविधान में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के तहत अनुच्छेद-43 B सरकारों को को-ऑपरेटिव संस्थाओं के स्वैच्छिक तरीके से बनने, स्वायत्त तरीके से चलने, लोकतांत्रिक नियंत्रण रखने और पेशेवर प्रबंधन को बढ़ावा देने के निर्देश दिए गए.
लेकिन हाल में बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट में संशोधन के माध्यम से को-ऑपरेटिव बैंकों के परिचालन में RBI का दखल बढ़ा है.
को-ऑपरेटिव सोसायटी राज्य का विषय
शरद पवार ने अपने पत्र में ये भी कहा कि देश के संविधान की अनुसूची-8 की दूसरी लिस्ट में को-ऑपरेटिव सोसायटी का गठन, नियमन और उन्हें खत्म करना राज्य का विषय है.
बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट में संशोधन कर धारा 4A, 4F, 4G, 4J, 4L, 4M और 4Q जोड़ी गई हैं. ये धाराएं सीधे तौर पर को-ऑपरेटिव बैंकों के परिचालन में हस्तक्षेप कर रही है और एक्ट के ये प्रावधान असंवैधानिक हैं.
राज्यों के को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट से टकराव
शरद पवार ने ये भी कहा कि को-ऑपरेटिव बैंक के बोर्ड मैनेजमेंट, निदेशकों की नियुक्ति और बर्खास्तगी, शेयर कैपिटल को जारी करने और रिफंड करने , सीईओ की नियुक्ति और ऑडिट इत्यादि को लेकर RBI को दी गई शक्तियां एक्सेसिव रेग्युलेशन बन सकती हैं.
वहीं बैंकिंग रेग्युलेशन एक्ट के नए प्रावधान अलग-अलग राज्यों के को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट के प्रावधानों को ओवररूल करते हैं जो बोर्ड के गठन, चेयरमैन के चुनाव और मैनेजिंग डायरेक्टर की नियुक्ति से जुड़े हैं.
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