दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की विकास दर सबसे तेज गति से बढ़ रही है. इस विकास दर को बढ़ाने में सरकारी खर्च में हुए इजाफे से लेकर घरेलू खपत तक का बड़ा रोल है. तरक्की की इस रफ्तार में कारोबार जगत का भी बेहद महत्वपूर्ण रोल है. खास बात है कि बड़ी कंपनियों के मुकाबले छोटी कंपनियों का प्रदर्शन अर्थव्यवस्था को ज्यादा हैरान कर रहा है.
आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक साल में छोटी और मझोली कंपनियों के शेयरों ने 60 फीसदी रिटर्न दिया है, जो सेंसेक्स के 23 परसेंट के रिटर्न के मुकाबले ढाई गुना से भी ज्यादा है. खास बात है कि ये तेजी हवा-हवाई नहीं है बल्कि बुनियादी मजबूती की वजहों से दर्ज की जा रही है.
छोटी कंपनियों के बेहतर तिमाही नतीजे
Nuvama Institutional Equities के एक एनालिसिस में दावा किया गया है कि इन छोटी कंपनियों की कमाई पिछली तिमाही में 29 फीसदी बढ़ी है जो बड़ी कंपनियों की विकास दर से करीब करीब दोगुनी है. भारत में छोटी कंपनियों के ताकतवर होने की एक वजह ये भी है कि कई उभरते सेक्टर्स में छोटी कंपनियों में ही निवेश की संभावनाएं मौजूद हैं.
मिसाल के तौर पर इलेक्ट्रिक वाहन कंपनी या नई तकनीक वाली कंपनियों में निवेशकों को बड़ी कंपनियों में खास कुछ नहीं मिलेगा. उन्हें यहां पर विकल्प के तौर पर छोटी कंपनियां ही मौके मुहैया करा सकती हैं.
विदेशी निवेशक हुए आकर्षित
इसी तरह भारतीय शेयरों में बढ़ती ट्रेडिंग एक्टिविटीज भी निवेशकों को आकर्षित कर रही हैं. पिछले महीने डे ट्रेडिंग वैल्यू रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया जो हांगकांग से भी ज्यादा था. छोटे शेयरों की इस गतिविधि में बड़े शेयरों के मुकाबले ज्यादा हिस्सेदारी रही. विदेशी निवेशकों को वो बाजार ज्यादा लुभाते हैं जहां पर लिक्विडिटी की कमी नहीं होती. भारतीय शेयर बाजार के शानदार प्रदर्शन ने कई और शेयरों को इस मानदंड के दायरे में ला दिया है.
विदेशी निवेशकों की भारत की बड़ी कंपनियों में तो पहले से ही बड़ी हिस्सेदारी है लेकिन अब छोटी कंपनियों में भी उनकी मौजूदगी बढ़ रही है. ICICI सिक्योरिटीज के मुताबिक भारत के मिड-कैप शेयरों में विदेशी निवेश एक साल पहले के 14 फीसदी से बढ़कर दिसंबर तक 17 परसेंट हो गया. इसी तरह, स्मॉल-कैप शेयरों में उनकी हिस्सेदारी 8 परसेंट से बढ़कर 9 फीसदी हो गई है इस दौरान फाइनेंशियल, औद्योगिक और आईटी सेक्टर में सबसे ज्यादा निवेश आया है.