scorecardresearch
 

Sri Lanka Crisis: खाना नहीं, तेल नहीं, दवाई नहीं, स्कूल-कॉलेज बंद... 3 महीने में ऐसे बिगड़े हालात

आजादी के बाद श्रीलंका के सामने यह अब तक का सबसे बड़ा संकट है. कोरोना महामारी के कारण पर्यटन के प्रभावित होने और ऑर्गेनिक फार्मिंग को लेकर सरकार के अदूरदर्शी फैसलों ने संकट को विकराल बनाने में योगदान दिया. आइए जानते हैं कि बीते तीन महीनों में श्रीलंका की स्थिति कैसे धीरे-धीरे खराब होती चली गई...

Advertisement
X
गंभीर संकट में फंसा श्रीलंका (Photo: Reuters)
गंभीर संकट में फंसा श्रीलंका (Photo: Reuters)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • देश छोड़कर भाग चुके हैं श्रीलंका के राष्ट्रपति
  • प्रधानमंत्री के घर को भीड़ ने लगा दी आग

Sri Lanka Crisis Explained: पड़ोसी देश श्रीलंका पिछले कुछ महीने से संकटों का सामना कर रहा है. आर्थिक मोर्चे (Sri Lanka Economic Crisis) पर दिक्कतों से शुरू हुआ संकट अब राजनीतिक अस्थिरता (Sri Lanka Political Crisis) के हालात पैदा कर चुका है. हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि प्रधानमंत्री के घर को लोगों ने आग लगा दिया, जबकि राष्ट्रपति के आधिकारिक आवास पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा है. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे (Sri Lanka President Gotabaya Rajapaksa) इस बीच देश छोड़कर बाहर निकल चुके हैं और फिलहाल उनकी स्थिति का पता नहीं है. इन सब के बीच आईएमएफ के साथ राहत पैकेज (IMF Bailout Package) को लेकर चल रही बातचीत के अधर में लटकने का खतरा सामने आ गया है.

Advertisement

इन कारणों से विकराल हुआ संकट

इस पूरे संकट की शुरुआत विदेशी कर्ज के बोझ के कारण हुई. कर्ज की किस्तें चुकाते-चुकाते श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार (Sri Lanka Forex Reserve Crisis) समाप्त होने की कगार पर पहुंच गया. स्थिति ऐसी हो गई कि श्रीलंका में डीजल-पेट्रोल और खाने-पीने की चीजों की कमी हो गई. बेहद जरूरी दवाएं तक पड़ोसी देश में समाप्त हो गईं. सरकार को पेट्रोल पंपों पर सेना तैनात करने की जरूरत पड़ गई. हालांकि इससे भी स्थिति में सुधार नहीं आया और हालात लगातार बिगड़ते चले गए. बताया जा रहा है कि आजादी के बाद श्रीलंका के सामने यह अब तक का सबसे बड़ा संकट है. कोरोना महामारी के कारण पर्यटन के प्रभावित होने और ऑर्गेनिक फार्मिंग को लेकर सरकार के अदूरदर्शी फैसलों ने संकट को विकराल बनाने में योगदान दिया. आइए जानते हैं कि बीते तीन महीनों में श्रीलंका की स्थिति कैसे धीरे-धीरे खराब होती चली गई...

Advertisement

अप्रैल से बिगड़ने लगे हालात

श्रीलंका के सामने संकट तो खैर पहले से ही पैदा हो रहा था, लेकिन इस साल अप्रैल की शुरुआत में इसके साफ संकेत दिखने लग गए. देश भर में बड़े स्तर पर हो रहे विरोध को देखते हुए राजपक्षे सरकार ने एक अप्रैल को आपातकाल का ऐलान कर दिया. इसके साथ ही सुरक्षाबलों को संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार करने व उन्हें हिरासत में लेने का अधिकार मिल गया. इसके चंद दिनों बाद 03 अप्रैल को मंत्रिमंडल के लगभग सभी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे और तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे (Mahinda Rajapksa) सरकार में बिलकुल अलग-थलग पड़ गए. इसी दिन श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के गवर्नर ने आईएमएफ से बेलआउट पैकेज की अपील की. हालांकि एक दिन बाद ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

जरूरी दवाएं भी हो गईं समाप्त

कैबिनेट के ज्यादातर सदस्यों के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति राजपक्षे ने अली साबरी को नया वित्त मंत्री नियुक्त किया. साबरी भी पद पर नहीं बने रह पाए और एक ही दिन में इस्तीफा दे दिया. सरकार के कई सहयोगियों ने समर्थन वापस ले लिया, जिससे राजपक्षे सरकार अल्पमत में आ गई. अंतत: 05 अप्रैल को सरकार ने आपातकाल हटाने का फैसला लिया. इस बीच श्रीलंका में आवश्यक दवाओं की कमी हो गई. 10 अप्रैल को डॉक्टरों ने चेताया कि दवाओं की कमी के कारण श्रीलंका में कोरोना वायरस से भी बुरे हालात पैदा हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि इस संकट के चलते श्रीलंका में महामारी से भी ज्यादा मौतें हो सकती हैं.

Advertisement

एक प्रदर्शनकारी की मौत से फैली हिंसा

राजपक्षे सरकार ने 12 अप्रैल को स्वीकार किया कि अब श्रीलंका के पास 51 बिलियन डॉलर का कर्ज चुकाने की क्षमता नहीं है. साथ ही सरकार ने ये भी कहा कि उसके पास जरूरी चीजें खरीदने लायक भी विदेशी मुद्रा भंडार नहीं बचा है. 19 अप्रैल को इस संकट से बिगड़ने की दिशा में बड़ी घटना हुई. पुलिस की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत हो गई. श्रीलंका के मौजूदा संकट में किसी की जान जाने का यह पहला मामला था. इसके एक दिन बाद यानी 20 अप्रैल को आईएमएफ ने कहा कि पैकेज के लिए श्रीलंका को अपने विदेशी कर्ज का रिस्ट्रक्चर करना चाहिए.

फूंक दिए गए कई सांसदों के घर

09 मई को एक ऐसी घटना हुई, जिसने संकट को हिंसक मोड़ दे दिया. सरकार समर्थक भीड़ ने विरोध कर रहे लोगों पर हमला कर दिया. इस घटना में नौ लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों लोग घायल हो गए. इसके बाद सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी भी हिंसक हो गए. कई सांसदों के घर फूंक दिए गए. हालात हाथ से बाहर निकलते देख तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने पद से इस्तीफा दे दिया. भीड़ ने कोलंबो स्थित उनके आवास पर अटैक कर दिया. उन्हें सुरक्षाकर्मी किसी तरह से बचाने में कामयाब हुए. इसके बाद वेटरन पॉलिटिशियन रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री बनाया गया.

Advertisement

देश छोड़कर जा चुके हैं राष्ट्रपति राजपक्षे

यूनाइटेड नेशंस ने 10 जून को श्रीलंका मसले पर राय प्रकट की और इसे मानवीयता का संकट बताया. यूएन ने कहा कि खाने-पीने की चीजों की कीम के चलते श्रीलंका की 75 फीसदी से ज्यादा आबादी का भोजन कम हो गया है. इसके बाद पिछले महीने के अंत में 27 जून को श्रीलंका सरकार ने कहा कि अब देश में ईंधन नहीं बचा है. इसका हवाला देकर पेट्रोल की बिक्री बंद कर दी गई. इस महीने की शुरुआत में एक जुलाई को सरकार ने एक बयान जारी कर कहा कि महंगाई लगातार नौवें महीने बढ़कर रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गई है. 09 जुलाई को भीड़ ने राष्ट्रपति राजपक्षे के आवास पर अटैक कर दिया. राजपक्षे के बारे में बताया जा रहा है कि अभी श्रीलंका में नहीं हैं. प्रधानमंत्री विक्रमसिंघे के घर को भी भीड़ ने आग लगा दी. इसके बाद विक्रमसिंघे ने भी पद से इस्तीफा दे दिया. राष्ट्रपति राजपक्षे इस सप्ताह 13 जुलाई को इस्तीफे का ऐलान करने वाले हैं.

 

Advertisement
Advertisement