सर रतन टाटा को टाटा समूह में परोपकार का रतन कहा जा सकता है. वह जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे थे और नवल टाटा के पिता यानी टाटा समूह के मौजूदा चेयरमैन रतन नवल टाटा के दादा थे. अल्पायु में दुनिया छोड़ देने वाले रतनजी की आज जयंती है. उन्होंने अपनी छोटी-सी जिंदगी में परोपकार के बड़े काम किये और टाटा समूह में इसकी विरासत छोड़कर गये.
उन्हें टाटा समूह को खड़ा करने वाले 'चार महान' लोगों में से एक माना जाता है, तीन अन्य लोग हैं-जमशेदजी टाटा, दोराबजी टाटा और रतनजी दादाभाई टाटा. सर रतन टाटा 'रतनजी' के नाम से लोकप्रिय थे. रतनजी टाटा का जन्म 20 जनवरी 1871 को हुआ था.
वह एक परोपकारी थे और भारत में गरीबी पर अध्ययन के अगुआ लोगों में से थे. उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी. रतनजी टाटा के निधन के बाद उनकी पत्नी नवजबाई टाटा ने अपने रिश्ते के ही एक अनाथ बच्चे नवल को गोद लिया. टाटा समूह के मौजूदा चेयरमैन रतन टाटा इन्हीं नवल टाटा के बेटे हैं.
कारोबार को दिया विस्तार
रतनजी ने बॉम्बे के सेंट जैवियर्स कॉलेज से पढ़ाई की. वह अपने बड़े भाई सर दोराबजी टाटा से 12 साल छोटे थे. उन्होंने साल 1896 में टाटा ऐंड सन्स को एक पार्टनर के रूप में जॉइन किया. साल 1904 में अपने पिता के निधन के बाद उन्होंने फ्रांस की कंपनी ली यूनियन फायर इंश्योरेंस कंपनी का कारोबार देखना शुरू किया, जिसकी भारत में टाटा ऐंड संस एजेंट थी. उन्होंने ट्रेडिंग फर्म टाटा ऐंड कंपनी का प्रभार भी मिला जो कपास, सूत, रेशम,मोती, चावल आदि का कारोबार करती थी.
उनके कार्यकाल में ही 1912 में साची में टाटा आयरन ऐंड स्टील कंपनी का कार्य शुरू हुआ. उनके कार्यकाल के दौरान ही मुंबई के पास 1915 में पनबिजली का एक विशाल प्रोजेक्ट शुरू किया गया जिससे मुंबई के उद्योगों को आगे चलकर बिजली मिलने में काफी सहूलियत हुई और उनका उत्पादन विस्तार हुआ. उन्होंने परोपकारी कार्यों के लिए ही एक ट्रस्ट फंड की स्थापना की जो आज टाटा ट्रस्ट का दूसरा सबसे बड़ा फंड है.
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गांधीजी का सहयोग
लेकिन सामाजिक और परोपकारी कार्यों में उनकी खास रुचि थी. उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी के नस्लवाद विरोधी आंदोलन काे नैतिक और आर्थिक मदद की. उस समय उन्होंने इसके लिए 1.25 लाख रुपये का दान किया. वह स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक गोपाल कृष्ण गोखले के दोस्त थे. उन्होंने गोखले के सामाजिक कार्यों में मदद के लिए 10 साल तक सालाना 10,000 रुपये की मदद की.
गरीबी पर अध्ययन
यही नहीं उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (LSE) में गरीबी पर अध्ययन के लिए एक चेयर की स्थापना के लिए सालाना 400 पाउंड की मदद की. अब यह चेयर 'सर रतन टाटा फाउंडेशन' के रूप में स्थापित है. साल 1912 में सर रतन की मदद से ही एलएसई में समाज अध्ययन विभाग की स्थापना हुई.
पाटलिपुत्र में खुदाई
उन्होंने 1913 से 1917 के बीच पाटलिपुत्र (पटना) में पहले पुरातात्विक खुदाई के लिए फंडिंग की. इस खुदाई में ही सम्राट 100 स्तंभों वाला मौर्यकालीन दरबार मिला.
उनके सहयोग से ही 1905 में मैसूर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक ऐंड मेडिकल रिसर्च की स्थापना की गयी. उन्होंने बाम्बे नगर निगम द्वारा शुरू किये गये किंग जॉर्ज पंचम एंटी ट्यूबरकुलोसिस लीग के लिए दस साल तक सालाना 10 हजार रुपये का दान दिया. उनकी समाज सेवा को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने 1916 में उन्हें नाइटहुड यानी सर की उपाधि दी.
अल्पायु में निधन
रतनजी महज 47 साल तक इस दुनिया में रहे. 5 सितंबर 1918 को इंग्लैंड के सेंट आइव्स में उनका निधन हो गया. उनकी वसीयत के मुताबिक उनकी ज्यादातर संपत्ति परोपकारी कार्यो के लिए दे दी गयी. साल 1919 में 80 लाख रुपये के फंड से उनके नाम पर सर रतन टाटा ट्रस्ट की स्थापना की गयी.