
करीब सात दशक के बाद एअर इंडिया (Air India) की घर वापसी हो गई है. गुरुवार को टाटा संस (Tata Sons) के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन (N. Chandrasekaran) एअर इंडिया के हेडक्वार्टर पहुंचे, जहां सौंपने की औपचारिक प्रक्रिया पूरी हुई. इससे पहले एन चंद्रशेखरन ने पीएम मोदी (PM Modi) से मुलाकात की. 'महाराजा' से जुड़ीं कई दिलचस्प कहानियां हैं.
1. Air India का मालिकाना हक मिलने के बाद नए मालिक को इससे जुड़े नाम और लोगो (LOGO) को अभी 5 साल तक संभाल कर रखना होगा. टाटा ग्रुप ने 18000 करोड़ रुपये की सबसे ज्यादा बोली लगाकर एअर इंडिया को अपने नाम किया है.
2. एअर इंडिया को सबसे पहले जेआरडी टाटा (JRD Tata) ने 1932 में टाटा एअरलाइंस के नाम से लॉन्च किया था. 1946 में इसका नाम बदल कर एअर इंडिया कर दिया गया. उसके बाद साल 1954 में सरकार ने टाटा से एअर इंडिया को खरीदकर उसका राष्ट्रीकरण कर दिया.
3. आजादी के वक्त देश में कुल 9 छोटी-बड़ी विमानन कंपनियां थीं. साल 1954 में इसका राष्ट्रीकरण कर दिया गया. सभी कंपनियों को मिलाकर दो कंपनियां बनाई गईं, घरेलू सेवा के लिए इंडियन एयरलाइंस और विदेश के लिए एअर इंडिया. वर्ष 1953 तक एअर इंडिया का स्वामित्व टाटा समूह के पास था और इसके चेयरमैन जेआरडी टाटा थे.
4. मोरारजी देसाई सरकार ने अचानक 1 फरवरी 1978 को एअर इंडिया की नींव रखने वाले तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा को पद से हटने का आदेश दे दिया था. इस आदेश के साथ ही सरकार ने जेआरडी टाटा को इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया के बोर्ड से हटा दिया था. उस समय इंदिया गांधी सत्ता से बाहर थीं.
5. जब मोरारजी देसाई सरकार ने जेआरडी टाटा चेयरमैन पद से हटाया तो इस फैसले पर इंदिरा गांधी ने दुख जताया था और जेआरडी टाटा को खत लिखकर एअर इंडिया में उनकी भूमिका की खूब तारीफ की थी, आप एअर इंडिया के संस्थापक और पालक थे. इंदिरा गांधी के खत को पढ़कर जेआरडी टाटा भावुक हो गए थे. फिर 1980 में जब इंदिरा गांधी सत्ता में लौटीं तो उन्होंने जेआरडी टाटा को इंडियन एयरलाइंस और एअर इंडिया के बोर्ड में शामिल कर दिया. लेकिन चेयरमैन का पद जेआरडी टाटा को नहीं मिल सका.
6. साल 1954 को विमानन कंपनी का राष्ट्रीयकरण किया गया था. तब से लेकर साल 2000 तक यह सरकारी एयरलाइन कंपनी मुनाफे में थी. पहली बार 2001 में कंपनी को 57 करोड़ रुपये का घाटा हुआ. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि 2005 में 111 विमानों की खरीद का फैसला एअर इंडिया की आर्थिक संकट की सबसे बड़ी वजह थी. इस सौदे पर 70 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. कहा जाता है कि इतने बड़े सौदे से पहले विचार नहीं किया गया कि ये कंपनी के लिए व्यावहारिक होगा या नहीं. नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इस सौदे पर सवाल उठाए थे. हालांकि सौदे को लेकर खूब राजनीति हुई थी.
7. साल 2007 में एअर इंडिया में इंडियन एयरलाइंस का विलय कर दिया गया. विलय के वक्त संयुक्त घाटा 771 करोड़ रुपये का था. विलय से पहले इंडियन एयरलाइंस महज 230 करोड़ रुपये के घाटे में थी, उम्मीद की जा रही थी कि जल्द फायदे में आ जाएगी. जबकि एअर इंडिया कंपनी विलय से पूर्व करीब 541 करोड़ रुपये नुकसान में थी. ये वित्त वर्ष 2006-07 की रिपोर्ट थी. विलय के बाद कंपनी कर्ज में और डूबती गई.
8. एअर इंडिया प्रबंधन का ढुलमुल रवैया भी बर्बादी का एक कारण रहा. एअर इंडिया की फ्लाइट्स अक्सर लेट लतीफी का शिकार होती रहीं. कर्मचारियों में हड़ताल आम बात हो गई. जिस वजह से सेवाएं प्रभावित हुईं. कुप्रबंधन और सरकारी सेवा में तत्परता की वजह से एयर इंडिया का बेजा इस्तेमाल हुआ. साल 2018 एअर इंडिया के पास सिर्फ 13.3 प्रतिशत मार्केट शेयर था. एअर इंडिया के विमानों को उन रूटों को लगातार रखा गया, जिसपर प्राइवेट कंपनियां ने सेवा देने से इनकार कर दिया.