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Success Story: दो-दो बार खत्म होने वाला था बिजनेस, फिर पकड़ ली नई राह, आज 1400 करोड़ के हैं मालिक

घर के कंफर्ट जोन से बाहर किस्मत तलाशने के इरादे से निकले कमल शारदा के हाथ बड़ा अवसर 1978 में लगा. आज शारदा समूह ने अपने पैर स्टील और ऊर्जा से अलहदा क्षेत्रों में भी फैलाए हैं. समूह डेयरी और एग्रो में भी बड़े पैमाने पर वह मौजूद है.

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कमल किशोर शारदा
कमल किशोर शारदा

अपने जैसे कई दूसरे लोगों की तरह कमल किशोर शारदा (Kamal Kishore Sarda) के दादा करीब 100 साल पहले राजस्थान के नागौर से आज के छत्तीसगढ़ में राजनांदगांव आए. घर के कंफर्ट जोन से बाहर किस्मत तलाशने के इरादे से की गई यह यात्रा शारदा परिवार के लिए फलदायी रही.

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कमल शारदा ने अपनी मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से गोल्ड मेडल हासिल करते हुए पूरी की. इस इंस्टीट्यूट को पहले विश्वेश्वरैया रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज के नाम से जाना जाता था. फिर करियर की शुरुआत नागपुर में पारिवारिक मिल्कियत वाली एक रोलिंग मिल में काम से हुई.

जब हाथ लगा बड़ा मौका

बड़ा अवसर उन्हें 1978 में हाथ लगा. रायपुर से कोई 25 किमी दूर भानपुरी स्थित इस्पात संयंत्र रायपुर एलॉय ऐंड स्टील लिमिटेड को उसके मालिक मिस्टर तेजपाल ने कमल शारदा को देने की पेशकश की. तेजपाल उनके लिए हमेशा पितातुल्य थे. उनके खुद के बच्चे अमेरिका जाकर बस गए थे, इसीलिए तेजपाल यह फैक्ट्री शारदा को देने के लिए प्रेरित हुए. शारदा ने 350 कर्मचारियों के साथ इसका अधिग्रहण कर लिया.

कारखाने में एलॉय स्टील या मिश्रित इस्पात बनाया जाता था, जिसका कारोबार 1990 के दशक तक अच्छा चला. फिर कई वजहों से इसे जबरदस्त धक्का लगा. इतना कि यह कुछेक सालों में बंद होने के कगार पर आ गया. तभी दूरदृष्टि के धनी शारदा ने एक अन्य क्षेत्र का सहारा लिया, जिसके बारे में उनका अंदाज था कि आने वाले दिनों में यह अच्छा प्रदर्शन करेगा और वह था-खनन. शारदा ने कच्चा माल हासिल करने के लिए कोयले की खदानें हासिल करने को अर्जी दी.

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ऊर्जा क्षेत्र में सफर का आगाज

कुछ साल बाद महाराष्ट्र के ऊर्जा विभाग ने बिजली के तीन कारखाने बिक्री के लिए रखे, जिन्हें शारदा ने खरीद लिया. इनमें से तीसरे को चलाने के लिए दो उन्होंने बाद में बेच दिए, लेकिन यह ऊर्जा क्षेत्र में शारदा के सफर की शुरुआत थी. इस बीच स्टील क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा काफी अधिक हो गई थी जिससे बहुत मुश्किल हो रही थी.

उसी समय वर्ष 2000 में छत्तीसगढ़ वजूद में आया. तब मुख्यमंत्री अजित जोगी ने शारदा से रिपोर्ट तैयार करने को कहा कि इस क्षेत्र में नई जान कैसे फूंकी जा सकती है. पैनी नजर से तैयार शारदा की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने पूरा का पूरा स्वीकार कर लिया और कुछ साल बाद क्षेत्र में नई जान आने के संकेत मिलने लगे.

ग्रुप ने फिर स्टील में विस्तार किया और पहले स्थापित अपने एक कैप्टिव बिजली संयंत्र का इस्तेमाल करने के लिए सिल्तारा में लौह अयस्क संयंत्र की स्थापना की. 2012-13 में ग्रुप ने छत्तीसगढ़ से बाहर कदम रखते हुए विशाखापत्तनम में भी लौह अयस्क संयंत्र लगाया. यह यात्रा तब से और सघन ही हुई है.

जब पर्यावरण चौतरफा चर्चा में है और हरित ऊर्जा समय की जरूरत, ऐसे में शारदा ग्रुप पनबिजली को भविष्य के कारोबार के तौर पर देखता है. सिक्किम में 113 मेगावाट की पनबिजली परियोजना का काम शुरू किया गया है तो 25 मेगावाट का संयंत्र छत्तीसगढ़ में और एक अन्य उत्तराखंड में आ रहा है.

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डेयरी और एग्रो में भी कारोबार

शारदा समूह ने अपने पैर स्टील और ऊर्जा से अलहदा क्षेत्रों में भी फैलाए हैं. समूह डेयरी और एग्रो में भी बड़े पैमाने पर वह मौजूद है. 2014 में खरोरा में 2,000 गायों के साथ अत्याधुनिक डेयरी लगाई. 'अर्ध-सहकारी मॉडल’ पर आधारित यह डेयरी स्कूलों और जलापूर्ति परियोजनाओं की शक्ल में समूह की सीएसआर गतिविधियां चलाने में मदद करती है.

यही नहीं, यह स्थानीय कृषि अर्थव्यवस्था को भी सहारा देती है क्योंकि दूध के अलावा खुराक के लिए बड़ी मात्रा में मक्का स्थानीय किसानों से खरीदा जाता है. समूह ने वनस्पति बीज उगाने के क्षेत्र में भी पैर फैलाए और इससे जुड़े अनुसंधान और विकास के लिए 40 वैज्ञानिकों को साथ लिया है. अभी तक समूह ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, आंध्र प्रदेश और इंडोनेशिया में निवेश किया है और उसके करीब 20,000 कर्मचारी हैं. कमल किशोर शारदा की कुल संपत्ति 1,400 करोड़ रुपये है.

बीएसई और एनएसई में सूचीबद्ध कंपनी शारदा एनर्जी ऐंड मिनरल्स के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर कमल किशोर शारदा कहते हैं, ''भारत को लेकर हम बहुत आशावान हैं.’’ उनके बेटे पंकज कंपनी के संयुक्त एमडी हैं और पिता के साथ काम करते हैं. हाल के वक्त में समूह ने अपने खनन के काम का विस्तार करते हुए राजनांदगांव में लौह अयस्क की खदान हासिल की है. यहीं से यह सब 100 साल पहले शुरू हुआ था.

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