अमेरिका और चीन के बीच छिड़े ट्रेड वॉर (US-China Trade War) ने दुनिया में हलचल मचा रखी है. चीन के 84 फीसदी टैरिफ के जवाब में अब अमेरिका ने ड्रैगन पर 125 फीसदी का भारी-भरकम टैरिफ लगाने का ऐलान किया है. दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियों के बीच छिड़ी इस जंग का असर वैश्विक अर्थव्यवस्था (Global Economy) पर पड़ने की आशंका जाहिर की जा रही है. खास बात ये है कि एक ओर जहां अमेरिका राष्ट्रपति ने चीन पर टैरिफ बढ़ाने का ऐलान किया है, तो वहीं दूसरी ओर अन्य देशों को टैरिफ से 90 दिन की छूट दे दी है. इस बीच टॉप इकोनॉमिस्ट का मानना है कि ट्रंप का हाई टैरिफ (Trump Tariff) का सबसे बड़ा और सीधा निशाना चीन ही है.
चीन है अमेरिका का मैन टारगेट!
सीएनएन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा तमाम देशों के खिलाफ शुरू किया गया बड़ा ट्रेड वॉर फिलहाल एक ही टारगेट पर फोकस नजर आ रहा है और वो China है. इसमें बताया गया कि चीन को छोड़कर अन्य देशों पर रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariff) लागू होने के कुछ घंटे बाद ही ट्रंप ने तीन महीने की रोक की घोषणा कर दी, लेकिन चीन पर 125 फीसदी का टैरिफ बम फोड़ दिया, जिससे दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच टकराव गहरा गया.
चीन और अमेरिका के बीच टैरिफ वॉर (China-US Tariff War) की गति चौंकाने वाली नजर आई है. एक सप्ताह के दौरान, चीनी आयात पर ट्रंप का टैरिफ 54% से बढ़कर पहले 104% हुआ और अब 125% हो गया है. वहीं चीन ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए सभी अमेरिकी आयातों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाकर इसे 84% तक कर दिया है. चीन ने यहां तक कह दिया है कि वह अमेरिकी दबाव के आगे झुकने के बजाय अंत तक लड़ेगा.

ग्लोबल इकोनॉमी पर दिख सकता है असर!
रिपोर्ट में इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट में एशिया के लिए प्रमुख अर्थशास्त्री निक मार्रो ने कहा है कि चीन और अमेरिका के बीच यह टकराव एक ऐतिहासिक दरार पैदा करता है, जो कहीं न कहीं दोनों अर्थव्यवस्थाओं के लिए परेशानी का सबब बनेगा. यही नहीं इससे न केवल चीन और अमेरिका की अर्थव्यवस्था पर, बल्कि ग्लोबल इकोनॉमी (Global Economy) प्रभाव देखने को मिलेगा. बर्लिन स्थित थिंक टैंक MERICS के प्रमुख इकोनॉमी एनालिस्ट जैकब गुंटर का मानना है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिंगपिंग लंबे समय से यह स्पष्ट कर रहे हैं कि देश अमेरिका के साथ लंबे संघर्ष के दौर में प्रवेश करेगा, जिसके लिए उन्होंने काफी व्यापक रूप से तैयारी की है.
इन सवालों से साफ, US का सीधा निशाना चीन
अब सवाल खड़ा होता है कि अगर बीजिंग ने ट्रंप टैरिफ के खिलाफ इतनी तेजी से जवाबी कार्रवाई नहीं की होती, तो क्या अमेरिका राष्ट्रपति चीन पर भी टैरिफ को स्थगित कर दिया जाता. दरअसल, US President के पद पर दोबारा काबिज होने के साथ ही ट्रंप ने टैरिफ वॉर को हवा दे दी थी और उनके निशाने पर चीन के अलावा Canada-Mexico सबसे आगे थे. यही नहीं ट्रंप टैरिफ के जवाब में कनाडा ने भी जवाबी कार्रवाई की थी, लेकिन उसे ट्रंप ने छूट में शामिल किया.
इससे साफ होता है कि अमेरिका का सीधा प्रहार 'दुनिया के कारखाने' के रूप में जाना जाने वाला चीन ही है और जिसका ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग मार्केट में ये 30 फीसदी की हिस्सेदारी रखता है और दशकों से यहां बने सामान अमेरिकी और वैश्विक उपभोक्ताओं की डिमांड को पूरा करते रहे हैं. अमेरिका फर्स्ट का नारा देने वाले ट्रंप सहित कुछ अमेरिकियों के बीच यह भावना भी पैदा हुई कि वैश्वीकरण ने अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग को धराशायी कर दिया है और नौकरियों को छीन लिया है.

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो के चाइनीज सेंटर के डायरेक्टर विक्टर शिह के मुताबिक टैरिफ के पैमाने से लाखों लोग बेरोजगार हो सकते हैं और चीन भर में दिवालियापन की लहर देखने को मिल सकती है. इस बीच, चीन को अमेरिकी निर्यात शून्य के करीब भी पहुंच सकता है.
'चीन नहीं जानता समझौता कैसे किया जाए...'
Donald Trump ने चीन को अन्य देशों के समान छूट न देने के अपने निर्णय को बीजिंग की त्वरित जवाबी कार्रवाई से जोड़ा है और बुधवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि, 'चीन समझौता करना चाहता है, लेकिन वो यह नहीं जानता कि इसे कैसे किया जाए.' वहीं दूसरी ओर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) अमेरिका की धमकियों और कार्रवाई के आगे झुकते नजर नहीं आ रहे हैं और उन्होंने स्वीकार भी कर लिया है कि चुनौती उनके सामने रखी जा चुकी है और वे लड़ाई के लिए तैयार हैं.