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कैसे बनती है हिंडनबर्ग की रिपोर्ट, क्या है नाथन एंडरसन की कहानी... जिनके खुलासों से अडानी के बाद जैक डोर्सी भी भंवर में फंसे

कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट Nathan Anderson ने अपनी नौकरी छोड़ साल 2017 में Hindenburg नाम से अपनी रिसर्च कंपनी शुरू कर दी थी. कंपनी का नाम 6 मई 1937 में न्यू जर्सी के मैनचेस्टर टाउनशिप में हुए हिंडनबर्ग एयरशिप एक्सीडेंट के नाम पर रखा गया है.

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अब तक 18 बड़ी कंपनियों को निशाना बना चुके है हिंडनबर्ग
अब तक 18 बड़ी कंपनियों को निशाना बना चुके है हिंडनबर्ग

अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग (Hindenburg)... साल 2023 की शुरुआत से ही ये नाम सुर्खियों में है. हो भी क्यों न, इसने दुनिया के टॉप-10 अमीरों में शामिल रहे भारतीय अरबपति गौतम अडानी को इतना बड़ा घाटा कराया, जिससे उबरने में उन्हें लंबा समय लगेगा. अडानी का मामला ठंडा पड़ता, इससे पहले ही नाथन एंडरसन (Nathan Anderson) के नेतृत्व वाली फर्म ने ट्विटर के को-फाउंडर जैक डोर्सी की कंपनी Block Inc को लपेटे में ले लिया. अब उसका भी अडानी ग्रुप (Adani Group) जैसा ही हाल है. क्या आप जानते हैं कौन हैं नाथन एंडरसन और कैसे काम करती है उनकी रिसर्च फर्म? 

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नाथन एंडरसन के हाथ कंपनी की कमान
सबसे पहले बात कर लेते हैं हिंडनबर्ग के फाउंडर नाथन एंडरसन (Nathan Anderson) की. अमेरिका की कनेक्टिकट यूनिवर्सिटी (University of Connecticut) से इंटरनेशनल बिजनेस में ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने नौकरी की तलाश शुरू कर दी थी. उनकी ये तलाश एक डाटा रिसर्च कंपनी की दहलीज पर आकर रुकी, यहां एंडरसन को पैसों के इनवेस्टमेंट से जुड़ी रिसर्च का काम मिला था. नौकरी करते हुए उन्होंने डाटा और शेयर मार्केट की बारीकियों को जाना और उन्हें समझ आ गया कि शेयर मार्केट (Share Market) दुनिया के पूंजीपतियों का सबसे बड़ा अड्डा है. 

हवाई हादसे से लिया गया फर्म का नाम
नौकरी करते हुए नाथन एंडरसन समझने लगे थे कि शेयर मार्केट में काफी कुछ ऐसा हो रहा है, जो आम लोगों की समझ से बाहर है. बस यहीं से उनके दिमाग में अपनी रिसर्च कंपनी शुरू करने और कंपनियों की गड़बड़ियों को उजागर कर उन्हें शॉर्ट करने का आइडिया आया. इस पर आगे बढ़ते हुए उन्होंने नौकरी छोड़ साल 2017 में Hindenburg नाम से अपनी कंपनी शुरू कर दी. कंपनी का नाम 6 मई 1937 में न्यू जर्सी के मैनचेस्टर टाउनशिप में हुए हिंडनबर्ग एयरशिप एक्सीडेंट के नाम पर रखा गया है.

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किन मामलों पर रिसर्च करती है हिंडनबर्ग?
नाथन एंडरसन की रिसर्च फर्म Hindenburg का मुख्य काम शेयर मार्केट, इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव्स पर रिसर्च करना है. इस रिसर्च के जरिए कंपनी ये पता लगाती है कि क्या Stock Market में कहीं गलत तरह से पैसों की हेरा-फेरी हो रही है?. कहीं बड़ी कंपनियां अपने फायदे के लिए अकाउंट मिसमैनेजमेंट तो नहीं कर रही हैं?. कोई कंपनी अपने फायदे के लिए शेयर मार्केट में गलत तरह से दूसरी कंपनियों के शेयर को बेट लगाकर नुकसान तो नहीं पहुंचा रही है? इन सब बिंदुओं पर गहन रिसर्च के बाद कंपनी एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर उसे पब्लिश करती है.

शॉर्ट सेलिंग से करती है तगड़ी कमाई
हिंडनबर्ग एक इन्वेस्टमेंट फर्म होने के साथ ही शॉर्ट सेलिंग (Short Selling) कंपनी है. कंपनी की प्रोफाइल पर नजर डालें तो ये एक एक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर है. शॉर्ट सेलिंग के जरिए ये अरबों रुपये की कमाई करती है. अब सवाल ये कि आखिर शॉर्ट सेलिंग होती क्या है? तो बता दें यह एक ट्रेडिंग या इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटजी है. इसमें कोई व्यक्ति किसी खास कीमत पर स्टॉक या सिक्योरिटीज खरीदता है और फिर कीमत ज्यादा होने पर उसे बेच देता है, जिससे उसे जोरदार फायदा होता है.

दूसरे शब्दों में समझें तो Share Market में कोई भी निवेशक किसी कंपनी के शेयर इस रणनीति के तहत खरीदता है कि उसके दाम भविष्य में बढ़ सकते हैं. जब शेयर के दाम बढ़ जाते हैं, वो इन्हें बेच देता है और मुनाफा कमाता है. इसके विपरीत Short Selling में शेयर की खरीद और बिक्री तब की जाती है जब उनके दाम भविष्य में गिरने की संभावना प्रबल होती है. ऐसे में शॉर्ट सेलर अपने पास शेयर न होते हुए भी इन्हें बेचता है. इस तरीके में वो शेयर कंपनी के शेयर को खरीदकर नहीं बेचता, बल्कि उधार लेकर बेचता है. शॉर्ट सेलिंग शेयर की खरीद-बिक्री का अवैध नहीं, बल्कि पूरी तरह से वैध तरीका है, हालांकि इसमें जोखिम ज्यादा होता है. 

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ऐसे समझें शॉर्ट सेलिंग का पूरा खेल
उदाहरण के तौर पर समझें तो अगर किसी कंपनी के शेयर को शॉर्ट सेलर इस उम्मीद से खरीदता है कि भविष्य में 200 रुपये का स्टॉक गिरकर 100 रुपये पर आ जाएगा. इसी उम्मीद में वो दूसरे ब्रोकर्स से इस कंपनी के शेयर उधार के तौर पर ले लेता है. ऐसा करने के बाद शॉर्ट सेलर इन उधार लिए गए शेयरों को दूसरे निवेशकों को बेच देता है, जो इसे 200 रुपये के भाव से ही खरीदने को तैयार बैठे हैं.

वहीं जब उम्मीद के मुताबिक, कंपनी का शेयर गिरकर 100 रुपये पर आ जाता है, तो शॉर्ट सेलर उन्हीं निवेशकों से शेयरों की खरीद करता है. गिरावट के समय में वो शेयर 100 रुपये के भाव पर खरीदता है और जिससे उधार लिया था उसे वापस कर देता है. इस हिसाब से उसे प्रति शेयर 100 रुपये का जोरदार मुनाफा होता है. इसी रणनीति के तहत हिंडनबर्ग कंपनियों को शॉर्ट कर कमाई करती है. 

 

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