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रतन टाटा के निधन के बाद अब क्‍या कर रहे हैं शांतनु नायडू? खुद बताया...

शांतनु नायडू का ये जुनूनी प्रोजेक्ट 'बुकीज' है, जो एक साइलेंट रीडिंग की सुविधा प्रोवाइड कराता है.बुकीज, एक पढ़ने वाला समुदाय है, जहां लोग सार्वजनिक स्थानों पर एकत्रित होकर चुपचाप पढ़ते हैं.

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रतन टाटा और शांतनु नायडू
रतन टाटा और शांतनु नायडू

रतन टाटा के अंतिम समय में उनके सबसे करीब शांतनु नायडू थे. अब उन्‍होंने खुद जानकारी दी है कि रतन टाटा के निधन के बाद वे क्‍या कर रहे हैं? और वे किस प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहे हैं. उन्‍होंने लिंक्‍डइन पर इसकी जानकारी दी है. शांतनु नायडू अपने पोस्‍ट के जरिए बताया कि वे एक प्रोजेक्‍ट पर काम कर रहे हैं, जो पहले मुंबई में लॉन्‍च किया गया था और अब इसे जयपुर ले जाने की तैयारी है. 

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शांतनु नायडू का ये जुनूनी प्रोजेक्ट 'बुकीज' है, जो एक साइलेंट रीडिंग की सुविधा प्रोवाइड कराता है.बुकीज, एक पढ़ने वाला समुदाय है, जहां लोग सार्वजनिक स्थानों पर एकत्रित होकर चुपचाप पढ़ते हैं. इसका विस्‍तार अभी तक बेंगलुरु और पुणे में किया जा चुका है. अब टाटा के मार्गदर्शन से नायडू अब अपने मिशन को जयपुर ले जा रहे हैं. 

जयपुर में 8 दिसंबर को होगा कार्यक्रम 
लिंक्डइन पर जयपुर लॉन्च की घोषणा करते हुए नायडू ने अपना उत्साह व्यक्त किया. उन्‍होंने अपने पोस्‍ट में लिखा, "जयपुर, अब समय आ गया है. हम आपको रविवार 8 तारीख को जयपुर बुकीज में देखेंगे. लॉन्च के लिए नीचे साइन अप करें. मैं बहुत उत्साहित हूँ!" 8 दिसंबर को होने वाला यह कार्यक्रम पाठकों को साइलेंट रीडिंग ग्रुप में शामिल होने और खुद को इसमें रजिस्‍टर्ड करने का मौका दे रहा है. 

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इन शहरों में भी विस्‍तार करने की योजना 
बुकीज ने पुणे और बेंगलुरु में पहले ही अपनी पकड़ बना ली है, नायडू दिल्ली, कोलकाता, अहमदाबाद और सूरत में भी विस्तार करने की योजना बना रहे हैं. बेंगलुरु में हाल ही में एक सत्र में नायडू ने परियोजना के उद्देश्य पर अपने विचार साझा किए. "बुकीज हमेशा से ही पढ़ने को वापस लाने के बारे में रहा है. ऐसा लगता है कि पढ़ना मानवीय अनुभव का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है." आज के घटते ध्यान अवधि पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा, "हम तीन मिनट की रील देखते थे. अब हम 1:30 मिनट भी नहीं देख सकते."

अनोखी थी रतन टाटा से दोस्‍ती 
नायडू ने कहा कि आप जो भी काम समुदाय की भावना से करते हैं, उसमें एक बड़ा धक्का होता है जो आपको खुद करने की तुलना में जल्दी आदत बनाने में मदद करता है." नायडू का बुकीज़ के प्रति समर्पण उन मूल्यों को दर्शाता है जो उन्होंने टाटा के साथ अपने समय के दौरान सीधा था. उनकी अनोखी दोस्ती ने एक अमिट छाप छोड़ी, टाटा ने अपनी वसीयत में नायडू का नाम लिया और उनके साथी स्टार्टअप, गुडफेलो को उनके एजुकेशन लोन को माफ करके और अपनी हिस्सेदारी को त्यागकर सपोर्ट किया. 

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गौरतलब है कि अक्टूबर में टाटा के निधन के बाद नायडू ने एक भावुक श्रद्धांजलि साझा की. उन्‍होंने लिखा था, "इस दोस्ती ने अब मेरे अंदर जो खालीपन पैदा कर दिया है, मैं अपना बाकी जीवन उसे भरने की कोशिश में बिता दूंगा. प्यार के लिए दुख की कीमत चुकानी पड़ती है. अलविदा, मेरे प्यारे प्रकाशस्तंभ." 

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