साल 1981 में नारायण मूर्ति और नंदन निलेकणि ने अपने 5 अन्य दोस्तों के साथ मिलकर पुणे में इंफोसिस कंपनी की शुरुआत की थी. एक उम्मीद और विश्वास के साथ ये सातों दोस्त पटनी कंप्यूटर्स को छोड़कर इंफोसिस कंसल्टेंट प्राइवेट लिमिटेड की नींव रखी थी. उस वक्त महज 250 डॉलर की पूंजी से इस कंपनी की शुरुआत हुई थी.
नारायण मूर्ति और नंदन निलेकणि के साथ इंफोसिस की शुरुआत करने वाले 5 दोस्तों में एस गोपालकृष्णन, एसडी शिबुलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा थे. आज कंपनी एक नई बुलंदी पर है. लेकिन इस बीच एक ऐसी खबर आई, जिसने इंफोसिस के निवेशकों को हिलाकर रख दिया है.
दरअसल आज की तारीख में इंफोसिस देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है. लेकिन जिस तरह से मंगलवार को इंफोसिस के शेयर टूट रहे थे एक बार तो लोगों को सत्यम कंप्यूटर्स की याद आ गई. इंफोसिस में गड़बड़ी की खबर आग की तरह फैल गई, और फिर बीएसई पर कंपनी का शेयर 15.94 फीसद गिरकर 645.35 रुपये पर आ गया. जबकि एनएसई पर यह 15.99 फीसदी घटकर 645 रुपये प्रति शेयर रह गया.
इस खबर से इंफोसिस के शेयर में एक दिन के दौरान 6 साल की सबसे बड़ी गिरावट है. इस गिरावट में कंपनी की मार्केट कैप 3.28 लाख करोड़ रुपये से गिरकर 2.83 लाख करोड़ रुपये पर आ गई है.
कंपनी के एक व्हिसलब्लोअर समूह ने आरोप लगाया है कि सलिल पारेख और निलांजन रॉय ने अनैतिक तरीके से आय बढ़ाने की कोशिश की है. व्हिसलब्लोअर की शिकायत के बाद सोमवार को इस मसले को ऑडिट समिति के सामने रखा गया.
वहीं इंफोसिस के चेयरमैन नंदन नीलेकणि ने शेयर बाजार को दी सूचना में कहा कि समिति ने स्वतंत्र आंतरिक ऑडिटर ईकाई और कानूनी फर्म शारदुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी से स्वतंत्र जांच के लिए बातचीत शुरू कर दिया है. उन्होंने बताया कि इस बाबत 20 और 30 सितंबर 2019 को दो अज्ञात शिकायतें प्राप्त हुई थीं.
यह मामला सामने आते ही इंफोसिस के CEO सलिल पारिख और CFO नीलांजन रॉय कदाचार के आरोपों से बुरी तरह से घिर गए हैं. इन दोनों पर आरोप है कि कंपनी का मुनाफा ज्यादा दिखाने के लिए इन्होंने निवेश नीति और एकाउंटिंग में छेड़छाड़ किया है और ऑडिटर को अंधेरे में रखा है.
व्हिसलब्लोअर समूह ने इस बाबत अमेरिका के नियामक सिक्यूरिटीज एंड एक्सचेंज कमीशन को भी 3 अक्टूबर को एक पत्र लिखा है. बता दें, व्हिसिलब्लोअर उस शख्स को कहा जाता है जो किसी संस्थान में होने वाली गलतियों को उजागर करता है.
कंपनी का इतिहास
दरअसल, नारायण मूर्ति और उनके दोस्तों के पास इंफोसिस कंपनी की नींव रखने के लिए पास पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने टाटा इंडस्ट्रीज में कार्यरत अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10,000 रुपये उधार लिए थे. मूर्ति का घर ही कंपनी का मुख्यालय बना और 1983 में इसका मुख्यालय बेंगलुरु स्थानांतरित किया गया था.
सन 1983 में उन्हें न्यूयॉर्क की कंपनी डेटा बेसिक कॉर्पोरेशन से पहला ऑर्डर मिला था. आज इन्फोसिस इंडियन आईटी इंडस्ट्री का पर्याय है. इस समय कंपनी के कर्मचारियों की संख्या 50 हजार से अधिक है और 12 देशों में कंपनी की शाखाएं हैं.
इंफोसिस 1993 में पहली बार आईपीओ लेकर आई थी और उसके बाद 14 जून 1993 को यह शेयर बाजार पर लिस्ट होने वाली पहली आईटी कंपनी थी. इंफोसिस जब आईपीओ लेकर आई थी तो इसका इश्यू प्राइस 95 रुपये था, लेकिन शेयर बाजार में लिस्ट होने के दिन ही इसका शेयर 145 रुपये पर लिस्ट हुआ.
साल 1999 में इंफोसिस ने 100 मिलियन डॉलर का आंकड़ा छू लिया. इसी साल यह नैस्डेक में लिस्टेड होने वाली भारत की पहली आईटी कंपनी बन गई थी. पिछले 26 सालों में कंपनी स्टॉक्स में रिटर्न, रेवेन्यू ग्रोथ और अन्य फाइनेंशियल पैमाने पर खरी उतरी है.