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बिजनेस

कड़वा हुआ बनारसी पान का स्वाद, लॉकडाउन में करोड़ों का नुकसान

कड़वा हुआ बनारसी पान का स्वाद, लॉकडाउन में करोड़ों का नुकसान
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लॉकडाउन का असर देश के सभी तरह के व्यापार पर देखने को मिला है. क्या छोटे, क्या बड़े हर वर्ग के व्यापारियों को इसका नुकसान उठाना पड़ा है. इन्हीं में से एक है मशहूर बनारसी पान का कारोबार. सात हफ्तों का वक्त बीत जाने के बाद बनारसी पान के कारोबार पर इसका जबरदस्त असर देखने को मिला है. अब तक करोड़ों रुपए के नुकसान को झेल चुका ये कारोबार अभी भी स्पष्ट दिशा-निर्देशों के अभाव में असमंजस में है.

(Photo Aajtak)
कड़वा हुआ बनारसी पान का स्वाद, लॉकडाउन में करोड़ों का नुकसान
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पान ना केवल एक वनस्पति या खाद्य सामग्री है, बल्कि एक संस्कार भी है. सनातनी परंपरा या शुभ कामों में पान के बगैर किसी भी काम के शुभारंभ की कल्पना भी नहीं की जा सकती है तो मिले जुले मजहब वाले बनारस में पान एक सत्कार का भी जरिया है. लॉकडाउन के 7 हफ्तों के बाद की स्थिति ये है कि देश के सभी कोनों और विदेश में भी पहुंच रखने वाला बनारसी पान अब वेंटिलेटर पर जा चुका है.

(Photo Aajtak)
कड़वा हुआ बनारसी पान का स्वाद, लॉकडाउन में करोड़ों का नुकसान
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इस बारे में और जानकारी देते हुए पान कारोबारियों की 1952 से बनाई गए संगठन श्री बरई सभा काशी के महामंत्री अंजनि चौरसिया ने बताया कि देश के अलग-अलग हिस्सों से हरे पान का पत्ता वाराणसी के चेतगंज स्थित पानदरीबा मंडी में आता है. जहां हिटिंग प्रकिया से गुजारकर हरे पत्तों को सफेद किया जाता है. लॉकडाउन की शुरुआत में ही हरे पान के डंप पड़े रहने की वजह से 20 करोड़ तक का नुकसान हो चुका है और कारोबार रुक जाने से अलग से प्रतिदिन 25-30 लाख के टर्नओवर की चपत लग रही है. उन्होंने कहा कि पान में कई औषधीय गुण होते हैं.
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हार्टिकल्चर में विशेष छूट के बावजूद पानदरीबा मंडी को बंद करना पान कारोबारियों की सोच के परे हैं. वहीं, पान कारोबारी दीपक चौरसिया ने बताया कि पान के होलसेल कारोबार से 20-25 हजार व्यापारी जुड़े हैं और फुटकर दुकानदारों की संख्या लाखों में हैं. पुराने रखे पान सड़ चुके हैं. लोगों का जीवकोपार्जन तक करना मुश्किल हो चुका है. जिला प्रशासन ने इसलिए रोक लगाई है कि पान को थूकने से कोरोना फैलने का खतरा है.

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पान कारोबारी बबलू चौरसिया बताते हैं कि घरों पर ही हरे पान को बनारसी सफेद पान का स्वरूप दिया जाता रहा है, जो दुनिया में मशहूर है, लेकिन दो महीने से लॉकडाउन के चलते मजदूरों को बैठाकर तनख्वाह देनी पड़ रही है. ये विडंबना है कि सूबे में 21 पान दरिबाओं को खोलने की छूट मिली है, लेकिन स्थानीय स्तर पर रोक के चलते मंडी बंद है. एकल फुटकर की पान की दुकानों को खोलने की छूट है, लेकिन सप्लाई चेन वाली मंडियों के बंद होने से उनको भी मैटेरियल कहां से मिलेगा?

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बनारस के चेतगंज के जियापुर इलाके में सैकड़ों वर्षों की पुरानी परंपरा के तहत लगने वाली पान मंडी सूनी पड़ी हुई. मंडी में सैकड़ों डोलचियां या तो खाली पड़ी है या तो फिर उनमें पड़े-पड़े पान सड़ चुके हैं. उसी मंडी के बाहर आजीविका के लिए पान बेचने के मजबूर एक छोटे पान विक्रेता विनोद ने बताया कि अभी उनकों पान बेचने की इजाजत नहीं है, लेकिन जीवकोपार्जन के लिए मंडी के बाहर पान बेच रहे हैं.

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