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बिजनेस

चीन का विकल्प एक देश नहीं, भारत भी दावेदार, लेकिन ये चुनौतियां

चीन का विकल्प एक देश नहीं, भारत भी दावेदार, लेकिन ये चुनौतियां
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कोरोना संकट के बाद चीन से कई कंपनियां बाहर निकल सकती हैं. उनका ठिकाना कहां होगा, ये बड़ा सवाल है, दावेदारों में एक भारत भी है. लेकिन उद्योग भी समझ चुके हैं कि चीन का विकल्प एक देश नहीं हो सकता है. जो एक साथ सस्ते श्रम, बुनियादी ढांचे और कम लागत की सुविधा दे सके. इसलिए अब दुनिया में कई छोटे-छोटे चीन होंगे जहां ये कंपनियां अपना नया ठिकाना बनाएंगी. खासकर अमेरिकी कंपनियां चीन से निकलने की फिराक में हैं. (Photo:File)
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ग्लोबल एजेंसी नोमुरा की ताजा रिपोर्ट कहती है कि चीन से निकलने वाली कंपनियों में केवल एक-दो ही भारत की तरफ रुख करेंगी. भारत निवेश लाने की होड़ में आगे इसलिए नहीं है क्योंकि चीन से सस्ती श्रम लागत के बावजूद श्रम कानूनों के तहत कर्मचारियों को निकालने-रखने की आजादी नहीं है. (Photo:File)
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कोविड वाली बेकारी के बाद यह आजादी मिलने की उम्मीद न के बराबर है. वहीं स्वदेशी के दबाव और देशी कंपनियों की लामबंदी के बाद कई उत्पादों पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाकर भारत ने आयात को महंगा और खुद को प्रतिस्पर्धा से बाहर कर लिया है. (Photo:File)
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निर्यात और आरसीईपी में भारत के प्रवेश पर सरकारी समिति की रिपोर्ट बताती है कि भारत में उदारीकरण सिमट रहा है. ग्लोबल इकोनॉमिक फ्रीडम इंडेक्स के 186 देशों में भारत 129वें नंबर पर है. (Photo:File)
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ताजा आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, जिन उद्योगों में सरकार का दखल ज्यादा है वही सबसे ज्यादा पिछड़े हैं. कोरोना संकट के बाद इंस्पेक्टर राज बढ़ने का खतरा है. (Photo:File)
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सरकार के वैचारिक सलाहकारों को आत्मनिर्भरता की नई परिभाषा पचाने में दिक्कत हो रही है. उनको लगता है कि अपनी जरूरत भर का निर्माण और आयात सीमित रखना ही आत्मनिर्भरता है. (Photo:File)
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चीन से कंपनियों के संभावित पलायन पर रोबो बैंक का अध्ययन (कोविड से ठीक पहले) बताता है कि ऑटोमोटिव, खिलौने, कंप्यूटर रोबोटिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, पैकेजिंग, टेक्नोलॉजी हार्डवेयर, फुटवियर, गारमेंट कंपनियां दुनिया के अन्य देशों में जाना चाहती हैं. अमेरिकन चैम्बर के मुताबिक, करीब 25 फीसद अमेरिकी कंपनियां दक्षिण पूर्व एशिया में रहना चाहती हैं जबकि 8-10 फीसद अन्य देशों में जाएंगी. (Photo:File)
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वहीं अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी सहित दुनिया में जो मुल्क आत्मनिर्भर हैं वह अपनी जरूरत से ज्यादा उत्पादन करते हैं. अब आत्मनिर्भरता का मतलब भरपूर उत्पादन और विदेशी मुद्रा भंडार की ताकत है इसी से किसी देश की करेंसी की साख और पूंजी की आपूर्ति तय होती है. (Photo:File)
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चीन से उखड़ती कंपनियां भारत के बाजार में सिर्फ माल बेचने नहीं आएंगी. वे यहां नया चीन बनाना चाहेंगी जहां से पूरी दुनिया में निर्यात हो सके. जैसे चीन की मोबाइल हैंडसेट कंपनियों के आने के बाद भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात बढ़ गया. यह कंपनियां तगड़ी सौदेबाजी करेंगी, चौतरफा उदारीकरण और पूरी तरह मुक्त बाजार उनकी प्रमुख शर्तें होंगी. अब वही जीतेगा जो खुल कर खेलेगा. (यह कंटेंट इंडिया टुडे हिंदी के संपादक अंशुमान तिवारी की एक रिपोर्ट से ली गई है)
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