आयकर विशेषज्ञों का मानना है कि आसमान छूती महंगाई के इस दौर में वेतनभोगियों के लिए मानक कटौती की सुविधा को फिर से बहाल किये जाने की जरूरत है.
वित्त वर्ष 2006-07 का बजट पेश करते समय तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने कर स्लैब में बदलाव करते हुये 1,00,000 रुपये की सालाना आय को कर मुक्त कर दिया था. इसके साथ ही उन्होंने स्टैंडर्ड डिडक्शन को समाप्त कर दिया था.
आयकर विशेषज्ञ सुभाष लखोटिया ने इस बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘इस समय देश की सारी जनता महंगाई के बोझ तले दबी है. वेतनभोगी वर्ग भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ है. हम सरकार से लगातार मांग करते आ रहे हैं कि वेतनभोगियों को मानक कटौती की सुविधा मिलनी ही चाहिए.’
वर्ष 1975-76 में जहां सकल आय पर 3,500 रुपये या वेतन का 20 प्रतिशत जो भी कम हो, उसे मानक कटौती के तौर पर कुल आय में से कम कर दिया जाता था. धीरे-धीरे वेतनभोगियों के लिए मानक कटौती की सीमा भी बढ़ती रही. वर्ष 2005-06 तक मानक कटौती की सीमा 5,00,000 रुपये से कम की आमदनी वालों के लिए सकल वेतन का 40 प्रतिशत या 30,000 रुपये, जो भी कम हो कर दी गई थी. पांच लाख से अधिक की सालाना आय वालों के लिए यह सीमा 20,000 रुपये थी. {mospagebreak}
एक अन्य आयकर विशेषज्ञ सत्येंद्र जैन ने कहा, ‘निश्चित रूप से वेतनभोगियों को मानक कटौती की छूट मिलनी चाहिए.’ आम आदमी महंगाई के बोझ तले दबा है. उसने अपने खर्चे कम कर दिये हैं. ऐसे में सरकार स्टैंडर्ड डिडक्शन बहाल कर वेतनभोगियों की व्ययक्षमता बढ़ा सकती है.
मानक कटौती यानी स्टैण्डर्ड डिडक्शन को लेकर लगातार अभियान चलाने वाले गवर्नमेंट पोस्ट ग्रैजुएट कॉलेज नोएडा के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ आर के गुप्ता का कहना है कि आयकर अधिनियम 1961 के तहत आयकर निवल आय पर लगना चाहिये सकल आमदनी पर नहीं. गुप्ता का कहना है कि आज ईंधन के दाम काफी बढ़ गए हैं.
वेतनभोगियों को दफ्तर आने-जाने और कारोबार से जुड़े दूसरे काम पर वेतन का एक अच्छा-खासा प्रतिशत खर्च करना पड़ता है, इसके बावजूद सरकार ने यह सुविधा वापस ले ली है. प्रो. गुप्ता ने प्रत्यक्ष कर संहिता विधेयक 2010 के बारे में वित्त पर स्थायी समिति के चेयरमैन को ज्ञापन भी भेजा है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश पी एन भगवती ने आयकर पर लिखी अपनी किताब में भी लिखा है कि आयकर छूट सीमा बढ़ाने के नाम पर मानक कटौती को खत्म नहीं किया जा सकता.