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रेल बजट से क्या है जनता की उम्मीदें?

रेल बजट में किराया नहीं बढ़ेगा ये हर कोई जानता है. लेकिन क्या मुसाफिरों के लिए इतना ही काफी है. कुछ नई गाड़ियां, कुछ नए रूट और कुछ ऐसी स्कीमें जिनसे रेलवे का भला नहीं होने वाला. क्या इतने भर से पब्लिक खुश हो जाएगी?

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रेल बजट में किराया नहीं बढ़ेगा ये हर कोई जानता है. लेकिन क्या मुसाफिरों के लिए इतना ही काफी है. कुछ नई गाड़ियां, कुछ नए रूट और कुछ ऐसी स्कीमें जिनसे रेलवे का भला नहीं होने वाला. क्या इतने भर से पब्लिक खुश हो जाएगी? ज़ाहिर है सही किराया के अलावा जनता चाहती है कि
 - सफर में उसे कुछ बेहतर सहूलियतें भी मिलें
- गाड़ियां टाइम पर चलें और इसके लिए किसी की जवाबदेही हो.
- रेल हादसों से बचाव के लिए सिक्योरिटी इक्विपमेंट्स लगाए जाएं.
- ट्रेनों में मुसाफिरों के साथ लूटमार की घटनाएं बंद हों.
- स्टेशनों और ट्रेनों में साफ-सफाई हो।.
- लंबी दूरी की ट्रेनों में मेडिकल सुविधाएं  हो.
- ट्रेनों में ऐसा खाना न हो, जिससे बीमार पड़ जाएं
- पहले लालू और अब ममता धड़ाधड़ नई ट्रेनें शुरू करने का एलान कर रहे हैं. लेकिन नई पटरियां बिछाने की याद किसी को नहीं है।
  वैसे इन उम्मीदों से ज्यादा बड़ा मसला ये है कि क्या ममता रेलवे को दिवालिया होने से बचा पाएंगी मुसाफिरों को सुविधाएं भी तभी मिलेंगी जब रेलवे की माली हालत ठीक हो ममता को वित्त मंत्रालय से करीब 40 हजार करोड़ रुपये मांगने पड़े.  लेकिन ये पैसे नहीं मिले ममता की अगुवाई में रेल की कमाई तेजी से गिरी है और खर्चे बढ़े हैं
इस बात को आप ऐसे समझ सकते हैं कि रेलवे हर 100 रुपये कमाने के लिए 95 रुपये खर्च करती है तकनीकी भाषा में इसे ऑपरेटिंग रेशियो कहते हैं
- 2007-08 में ये अनुपात सौ रुपये पर 76 रुपये का था।
- रेलवे के इतिहास में पहली बार इस साल सप्लायरों को पेमेंट नहीं मिली है
रेल बजट में ममता कोई ऐलान भी करेंगी तो उसका अमल आसान नहीं है पिछले बजट में उन्होंने कोलकाता मेट्रो को 11 हजार करोड़ रुपये देने की बात कही थी जबकि हकीकत ये है कि रेलवे के पास सिर्फ 5000 करोड़ का रिजर्व है जाहिर है ऐसे में ज्यादा उम्मीद न ही रखें तो अच्छा है भारतीय रेल का क्या है, वो पहले भी भगवान भरोसे चलती थी, आगे भी ऐसे ही चलेगी.

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