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सुप्रीम कोर्ट से सहारा समूह को लगा झटका

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सहारा समूह की रियल एस्टेट कम्पनी को निर्देश दिया कि निवेशकों से डिबेंचर (ऋण पत्र) के रूप में उगाहे गए 17,000 करोड़ रुपये 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटा दिए जाएं.

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सहारा समूह की रियल एस्टेट कम्पनी को निर्देश दिया कि निवेशकों से डिबेंचर (ऋण पत्र) के रूप में उगाहे गए 17,000 करोड़ रुपये 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटा दिए जाएं.

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न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति जे.एस. खेहर की पीठ ने सहारा की याचिका खारिज करते हुए ये निर्देश दिए. सहारा ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के उस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें निवेशकों का धन लौटने के लिए कहा गया था.

न्यायालय ने इस आदेश के क्रियान्वयन की निगरानी के लिए सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.एन. अग्रवाल की नियुक्ति की है. न्यायालय ने कहा है कि यदि सहारा धन लौटाने के आदेश का पालन करने में विफल हुआ तो सेबी रियल एस्टेट से जुड़ी सहारा कम्पनी की सम्पत्तियां जब्त करने सहित उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी.

न्यायालय ने रियल एस्टेट व हाउसिंग से सम्बंधित सहारा समूह की कम्पनियों की ओर से दायर एक याचिका पर 14 जून को अपना आदेश सुरक्षित कर लिया था. सहारा ने एक न्यायाधिकरण के उस आदेश के खिलाफ यह याचिका दायर की थी, जिसमें धन लौटाने का निर्देश दिया गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने तीन सप्ताह की बहस के बाद अपना आदेश सुरक्षित किया था.

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बहस में सहारा की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन और गोपाल सुब्रह्मण्यम ने प्रतिभूति अपीली न्यायाधिकरण के 18 अक्टूबर, 2011 के आदेश पर आपत्ति जताई थी. न्यायाधिकरण ने सहारा इंडिया रियल एस्टेट कॉर्प लिमिटेड (एसआईआरईसीएल) और सहारा हाउसिंग इनवेस्टमेंट कॉर्प लिमिटेड को ब्याज सहित कुल 19,400 करोड़ लौटाने के निर्देश दिए थे.

सहारा समूह ने तर्क दिया था कि निवेशकों से लिए गए धन की प्रकृति निजी लेन-देन की थी और ऐसे में किसी शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने की बाध्यता लागू नहीं होती. सहारा ने यह भी तर्क दिया था कि निवेशकों की ओर से किसी शिकायत के बगैर सेबी उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकता.

लेकिन सेबी ने न्यायालय में कहा था कि निवेशकों के संरक्षण के लिए सुविकसित प्रारूप से बाहर जाकर इस कम्पनी ने बड़ी मात्रा में धन उगाही की. जबकि यह प्रारूप निवेशकों को नियंत्रण व संतुलन तथा वैधानिक संरक्षण मुहैया कराता है.

इसके पहले एक सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश एस.एच. कपाड़िया ने याचिकाकर्ता कम्पनियों से यह बताने के लिए कहा था कि निवेशकों से धन कैसे उगाहा गया. कम्पनियों से यह बताने के लिए भी कहा गया था कि निवेशकों का धन किस तरह खर्च किया गया.

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