16 मार्च को पेश होने वाले बजट के बाद महंगाई डायन का रूप विकराल और विकराल हो जाएगा. हाय रे महंगाई, अजी ये सब छोड़िए और सोचिए कि कैसे चलेगा आपका चूल्हा चौका. महंगाई ने आपकी जेब में आग लगा दी है. फिर भी बजट के वक्त आपकी उम्मीदें लहलहा उठी होंगी. आप सोच रहे होंगे कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की सुटकेस से राहत का पिटारा निकलेगा. लेकिन ठहरिए, आपको राहत देने के नाम पर तो उनकी नींद पहले से उड़ी हुई है.
तो आप तैयार हो जाइए. प्रणब दा इशारा कर रहे हैं कि महंगाई के भंवर में आपकी कमाई की नैय्या डूबने वाली है. उन्हें नींद नहीं आ रही है अपने बिगड़े बजट से. सब्सिडी के मारे सरकार का खर्चा रुपय्या में आ गया और आमदनी रह गयी चवन्नी की चवन्नी.
सरकार को कुछ नहीं दिखता तो आपकी जेब दिखती है. और इसकी भूमिका तो सरकार पांच-छह महीने पहले ही बना चुकी थी. प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष सी रंगराजन ने पिछले साल के सितंबर में ही कहा था कि आने वाला साल और मुश्किलों भरा होगा.
सरकार खर्चे की दुहाई देती है, राजकोषीय घाटा यानी फिस्कल डिफिसिट की टीस लेकर बैठ जाती है. लेकिन इससे आपका क्या वास्ता. आप तो अपनी मेहनत की कमाई का एक हिस्सा बतौर टैक्स सरकार की झोली में डाल देते हैं. कोई नई चीज खरीदने जाते हैं तो उसपर से अलग टैक्स चुकाते हैं कभी सेल्स टैक्स और वैट, तो कभी सर्विस टैक्स के रूप में. ऊपर से बची-खुची कमाई महंगाई डायन खाए जात है.
एक साल में दूध 34 रुपये से बढ़कर 38 रुपये प्रति लीटर हो गया यानी 11.76 फीसदी ज्यादा तो सरसों का तेल 79 रुपये से बढ़कर 92 रुपये यानी 16.45 फीसदी की वृद्धि. दिल्ली में सीएनजी 29 रुपये 30 पैसे से बढ़कर 35 रुपये 45 पैसे हो गया यानी 20.98 फीसदी ज्यादा तो पेट्रोल 58 रुपये 37 पैसे से बढ़कर 65 रुपये 64 पैसे यानी 12.45 फीसदी की बढ़ोत्तरी.
महंगाई पर सरकार नहीं बोलती, लेकिन यूपी और पंजाब के चुनावों में मिली शिकस्त ने सोनिया गांधी को बोलने पर मजबूर कर दिया.
सोनिया गांधी ने 7 मार्च को कहा था कि विधानसभा चुनाव 2012 में हमारी हार की एक वजह महंगाई भी हो सकती है.
तो क्या सरकार इस बजट में बेलगाम महंगाई को रोकने के लिए कुछ करेगी. फिलहाल ऐसी उम्मीद करना बेमानी ही लगता है. वो इसलिए कि 2014 मे होने है लोकसभा चुनाव, और सरकार के पास बस यही एक मौका है कुछ कडे कदम उठाने का. ये कदम आपको तो नागवार गुजर सकते है लेकिन सरकार मानती है कि देश की अर्थव्यव्स्था इससे ही पटरी पर लौटेगी.
प्रणब मुखर्जी के लिए कठोर कदम उठाना आसान होता अगर यूपी में मुलायम थोड़ा कमजोर पड़ गए होते और नई सरकार की चाभी कांग्रेस के हाथ में होती. और तब टीएमसी केंद्र को आंखें नहीं दिखाती.
इससे सरकार दुविधा में है. दादा यानी प्रणब मुखर्जी अगर गठबंधन की फांस को समझते हुए दीदी यानी ममता बनर्जी के सामने झुकते हैं तो वित्त मंत्रालय की हालत पतली होगी. लेकिन कड़ा कदम उठाते हैं तो आपकी जेब पतली होगी.
फिर तो आप खुद को पतला करने के लिए जिम जाएंगे या फिर अपने दोस्त को बेहतरीन कॉफी पिलाना चाहेंगे. महंगाई आपके सिर पर नाचेगी. उस वक्त भी, जब आप डॉक्टर से अपनी सेहत पर सलाह ले रहे होंगे.
अभी तक केवल 16 फीसदी सर्विसेज़ ही सर्विस टैक्स के दायरे में आती हैं, यानी 84 फीसदी सेवाएं ऐसी हैं जो सर्विस टैक्स में आ सकती हैं. सरकार की एक नेगेटिव लिस्ट आने के बाद 22 को छोड़कर सारी सेवाएं सर्विस टैक्स के दायरे में आ जाएंगी.
उत्तर प्रदेश और पंजाब के चुनावों में कांग्रेस जनता का गुस्सा झेल चुकी है. इसीलिए आम लोगों को बहलाने के लिए निगेटिव लिस्ट के ज़रिए उन सर्विसेज़ को शामिल किया जा सकता है जिससे गरीब तबके को टैक्स की मार ना सहनी पड़े जैसे मेट्रो में सफर
नेगेटिव लिस्ट के 3 अहम कारण है. पहला कि गरीब तबके की सेवाओं को करों का भार ना उठाना पडे ,सर्विस टैक्स का दायरा बढ़ाया जाए जिससे सरकार की झोली मे पैसा आए औऱ जीएसटी के लिए मंच तैयार हो सके.
जीएसटी यानी गुड्स सेल्स टैक्स और वैट यानी वैल्यू ऐडेड टैक्स को लेकर राज्य और केंद्र के बीच गर्मागर्मी चलती रहती है. लेकिन आम बजट के बाद आनेवाली गर्मी आपकी पसीने छुड़ा देगी.कच्चे माल की ऊंची कीमत और गिरते हुए रुपये ने वाशिंग मशीन, फ्रिज और माइक्रोवेव बनाने वाली कंपनियों के छक्के छुड़ा रखे हैं. बढ़ती महंगाई ने कंज्यूमर ड्यूरेबल्स बनाने वाली कंपनियों पर भी बुरा असर डाला है. मुफ्त में तोहफे देकर बिक्री बढ़ाने के बजाय कंपनियों को अपने प्रोडक्ट्स की कीमतें एक साल के ही अंदर 4 -5 बार बढ़ानी पडी.
इसीलिए कंपनियां भी प्रणब दा से गुहार कर रही हैं कि
-सेंट्रल सेल्स टैक्स को 2 फीसदी से घटाकर 1 फीसदी किया जाए.
-नई तकनीक की खोज पर कस्टम ड्यूटी जीरो कर दी जाए.
-एनर्जी एफिशियेंट प्रोडक्ट बनाने वाली यूनिट्स को कस्टम ड्यूटी में छूट मिले.
-मोबाइल के टैक्स मॉड्यूल पर सरकार विचार करे.
ताकि इन प्रोडक्ट्स की कीमत लोगों की जेब के दायरे में आ सके. पहुंच से बाहर होते प्रोडक्ट को खरीदने के लिए पहले खरीदार लोन लेने लगे थे लेकिन ऊंची ब्याज दरों के कारण खरीदार अब लोन लेने से भी डरने लगे हैं. ऐसे में कंपनियों को उम्मीद है कि सरकार ऐसे कुछ कदम उठाये जिससे कंज्यूमर ड्यूरेबल्स लोगों के घर में आसानी से जगह बना सकें.
सरकार के पास एक बड़ा सेक्टर खेती का है. वो जानती है कि कृषि सेक्टर से करीब 58 फीसदी लोग जुड़े हैं. इसलिए महंगाई रोकने के लिए कमर्शियल खेती को बढ़ावा मिलना चाहिए. लेकिन इस पर वैट, सर्विस टैक्स और डायरेक्ट टैक्स को रोकना होगा.
माना कि सरकार के पास कोई जादुई छडी नही है कि महंगाई को कम करे, लेकिन 9 फीसदी की विकास दर हासिल करने के लिए कृषि को बढ़ावा देना ज़रुरी है. वो इसलिए भी क्योकि अगर कृषि की विकास दर 4 फीसदी होगी तभी देश की विकास दर 9 फीसदी के करीब पहुंच सकती है. और वैसे भी अगर पैदावार बढ़ जाएगी तो महंगाई को तो कम होना ही पडेगा.
एक तरफ सोनिया गांधी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स औऱ ऊपर से वित्त मंत्री की साफगोई. वैसे खाद्य सुरक्षा बिल पर तो आम आदमी की बांछे खिल जानी चाहिए लेकिन जब आप महंगाई के चलते खुद अपने और अपने बच्चो के खाने मे कटौती कर रहे हो तो ऐसे प्रोजेक्टस के लिए अतिरिक्त कर देना कम ही सुहाता है.
उसपर से वित्त मंत्री की बातें सुनकर तो यही लगता है कि इस बजट में जोर का झटका और जोर से लगेगा. इंडस्ट्री सेक्टर से सरकार ज्यादा टैक्स की दरकार रखती है. इसका मतलब ये हुआ कि साल 2008-09 की मंदी के वक्त उद्योगों को जो राहत मिली थी, वो इस बार खत्म हो सकती है. ऐसे में उन पर एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स बढ़ेंगे. यानी चीजें और महंगी होंगी. तो सरकार और इंडस्ट्री की इस टक्कर में पिसेंगे आप.
सरकार का रोना ये है कि खजाना खाली है और उम्मीदों का बोझ जरूरत से ज्यादा है. खुद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के मुताबिक राजकोषीय घाटा 4 लाख 34 हजार 933 करोड़ रुपये का है. पिछले बजट में सब्सिडी करीब एक लाख चालीस हजार करोड़ रुपये की थी और इस साल सब्सिडी की वजह से बजट का ग्राफ एक लाख करोड़ रुपये ऊपर जा सकता है. सरकार विनिवेश और टैक्स से भी इतना पैसा जुटा नहीं पाई कि सब्सिडी का खर्चा पूरा कर सके. सरकार की मुसीबत ये है कि टेलीकॉम स्पेक्ट्रम की नीलामी भी अदालती चक्कर में फंस गयी.
सरकार अपनी खाली जेब का हवाला दे रही है और जनता अपनी महंगाई का. इन सबके बीच लोगों के लिए थोड़ी सी राहत रिजर्व बैंक लेकर आया है.
उसने कैश रिजर्व रेशियो में 0.75 फीसदी की कटौती करके उसे 4.75 फीसदी पर पहुंचा दिया है. इस कटौती से होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन के सस्ते होने की उम्मीद जतायी जा रही है.
आरबीआई ने मार्च मे यानि वित्त वर्ष के अंत में ये फैसला लिया है. ऐसे में बैंकों द्वारा लोन सस्ता किये जाने की संभावना चालू वित्त वर्ष में कम ही लग रही है. हालांकि इसके बावजूद लोन सस्ते होने की उम्मीदों को सिरे से नकारा नहीं जा सकता है.
सरकार ब्लैक मनी का पता लगाने के लिए वेल्थ टैक्स का दायरा बढ़ाना चाहती है. फाइनैंशल ईयर 2012-13 के बजट में इनमें से कुछ प्रस्तावों को शामिल किया जा सकता है. 1 करोड़ रुपए से ज्यादा के एसेट पर एक फीसदी वेल्थ टैक्स लग सकता है. अभी 30 लाख रुपए से ज्यादा के एसेट पर वेल्थ टैक्स लगता है.
वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी पहले ही ये कह चुके हैं कि काला धन का पता लगाने और उसे कंट्रोल करने के लिए वेल्थ टैक्स का दायरा बढ़ाया जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो डिजाइनर कपड़े, मशहूर पेंटिंग्स, 50 हजार रुपये से ज्यादा कीमत की घड़ियां, ब्रांडेड फर्नीचर भी वेल्थ टैक्स के दायरे में आ सकते हैं. इन सभी चीजो के साथ ही विदेशी बैंकों में डिपॉजिट औऱ स्कल्पचर्स को वेल्थ टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है. इनके अलावा बड़ी आलीशान कारें, यॉच, हेलिकॉप्टर, एयरक्राफ्ट और आर्कियोलॉजिकल कलेक्शंस भी वेल्थ टैक्स के दायरे में आ सकते हैं. इनके लिए 2 लाख रुपए से ज्यादा कैश पर भी वेल्थ टैक्स लगाया जा सकता है. साथ ही शहरी जमीन और फार्म हाउस को भी वेल्थ टैक्स के तहत लाया जा सकता है.
सरकार को उम्मीद है कि अगले फाइनैंशल ईयर में वह इन प्रस्तावों पर संसद की मंजूरी हासिल कर लेगी. इनमें से कुछ को संसद की मंजूरी मिलने से पहले ही इस बार बजट में शामिल किया जा सकता है. यानि दिल और जेब दोनो थामकर इंतजार किजिए प्रणव दा के बजट का.